आखिर बाबा रामदेव को गुस्सा क्यों आता है !

टैरिफ टेररिज़्म और इकोनॉमिक कॉलोनाइजेशन जैसे भारी भरकम शब्दों से पतंजलि के मालिक बाबा रामदेव अपनी झुंझलाहट जता रहे हैं।

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नवजीवन डेस्क

पॉलिटिकल कॉलोनाइजेशन...इकोनॉमिक कॉलोनाइजेशन....इंटलेक्चुअल कॉलोनाइजेशन...टैरिफ टेरेरिज्म....

यह शब्द वैश्विक अर्थव्यवस्था या राजनीति पर हुए किसी शिखर सम्मेलन में नहीं सुने गए, बल्कि इन शब्दों का इस्तेमाल किया है बाबा रामदेव ने। वही बाबा रामदेव जो योग सिखाते हैं, पतंजलि नाम से तमाम आयुर्वेद प्रोडक्ट बनाते हैं और हजारों करोड़ का कारोबार करते हैं, हिंदुत्व का परचम लहराते हैं और सनातन का जाप लगाते हैं। लेकिन सवाल है कि इतना सबकुछ होने-पाने के बाद भी क्यों गुस्से में नजर आ रहे हैं और ऐसे भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अभी तक तो बाबा की शब्दावली बहुत सतही और लहजा मसखरेपन वाला रहा है। लेकिन बाबा तो कोई और ही भाषा बोल रहे हैं। चलिए सबसे पहले बता देतें कि उन्होंने क्या कहा।

‘वैसे तो हमने पॉलिटिकल कॉलोनाइजेशन भी देखा है...इकोनॉमिक कॉलोनाइजेशन भी देखा है... और इंटलेक्चुअल कॉलोनाइजेशन का नया दौर दुनिया में चल रहा है...इसी के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का जबसे उदय हुआ है, उन्होंने टैरिफ टेररिज्म का नया विश्व कीर्तिमान रच दिया है। पूरी दुनिया के विकसित देशों को वह जिस तरह से डरा रहे हैं, धमका रहे हैं, उन्होंने लोकतंत्र की मर्यादाओं की धज्जियां उड़ा दीं। न डब्ल्यूटीओ को मान रहे हैं, न यूएनओ को मान रहे हैं, वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ को अपने ऑकार्डिंग चला रहे हैं...अपने डॉलर की कीमत बढ़ा दी है और विकासशील और गरीब देशों की करेंसी की कीमत घटा दी है, यह एक तरह का आर्थिक आतंकवाद है, यह टैरिफ टेररिज्म है, यह दुनिया को एक अलग दौर में लेकर जा रहे हैं, एक तरफ ट्रंप, दूसरी तरफ पुतिन, उधर शी जिनपिंग और किम जॉंग उन का तो पता ही नहीं कि वह कब क्या कर बैठें. ऐसी परिस्थितियों में भारत को शक्तिशाली देश बनना होगा, नहीं तो दुनिया के कुछ मुल्क दुनिया को अपने हिसाब से ले जाना चाहते हैं, इसलिए हम सब भारतीयों को एकजुट होकर इन ताकतों का जवाब देना होगा।“

बाबा के बयान को सुन भी सकते हैं नीचे दिए लिंक में

आखिर इतना सबकुछ बोलते हुए बाबा रामदेव इतने खिसियाए और परेशान से क्यों हैं। क्यों गुस्सा फूट सा पड़ रहा है। जवाब है पतंजलि और उसके प्रोडक्ट। मसला है पतंजलि प्रोडक्ट की अमेरिका और उससे जुड़े बाज़ारों में खपत का। वहां पतंजलि नमक से लेकर केश कान्ति और दंत कान्ति तक सब बिकता है। ओवरसीज़ फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी से जुड़ा राष्ट्रवादी हिन्दू डायस्पोरा इन्हें खरीद कर खुद को धर्म सेवा करने की श्रेणी में पाता है, गोरे और मुसलमान भी खरीदते ही हैं। लेकिन अब इन प्रोडक्ट्स की कीमत में अमेरिका में बसे भारतवंशियों के लिए इजाफा हो जाएगा, क्योंकि अप्रैल शुरु होते ही डोनाल्ड ट्रंप इन प्रोडक्ट्स पर ‘जैसे को तैसा’ टैरिफ लगाने वाले हैं।

बाबा की बेचैनी जायज़ है। इसका कारण है कि बाबा की पतंजलि अमेरिका में कम से कम 9000 जगहों पर विभिन्न चैनलों से अपने उत्पाद बेचती है। इनमें फ्यूचर ग्रुप के साथ उसकी साझेदारी भी है जो अमेरिका में हर महीने करीब 3.4 मिलियन डॉलर का पतंजलि का सामान अमेरिकी बाजार में खपाता है। पतंजलि ने यूएस एफडीए में रिजस्ट्रेशन करा रखा है। अगर ट्रम्प का टैरिफ पतंजलि पर भी लागू होगा तो बाबा को नुकसान उठाना पड़ेगा, इसलिए  वे बिलबिलाए हुए हैं।


लेकिन हैरानी है कि टैरिफ मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रम्प को धिक्कारने का साहस बाबा रामदेव ने किया है, और वह उन शब्दों में कि जियो-पॉलिटिक्स और इकॉनमिक्स पर उनकी पकड़ और विश्व दृष्टि देख कर दांतो तले उंगली दबा लें।

बाबा का गुस्सा शायद इसलिए भी है कि टैरिफ के मुद्दे पर भारत सरकार का स्टैंड अभी तक साफ ही नहीं है। अभी तक जो कुछ भी कहा गया है वह ट्रम्प ने ही कहा है। ट्रम्प कभी इंडिया को एक्सपोज करने की बात करते हैं तो कहते हैं कि भारत उनके देश को लूट रहा है। वैसे इस दौरान कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका का चक्कर भी लगा आए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ के मुद्दे पर ट्रम्प से तो दूर, उनकी किसी कायदे के अफसर तक से बात नहीं हुई। रोचक बात यह भी है कि जब गोयल अमेरिका में किसी भी तरीके से टैरिफ पर कोई बात शुरु करने की कोशिश में ही लगे थे, ट्रम्प के टैरिफ टेररिज्म के आर्किटेक्ट अमेरिका के कॉमर्स मंत्री (सेक्रेटरी) हॉवर्ड लुतनिक भारत के एक टीवी चैनल पर वीडियो कॉल से जुड़कर इस बाबत पूछे गए सवालों पर ठहाका लगा रहे थे। उन्होंने इस कॉल के दौरान जो कुछ बोला उसका लब्बोलुआब यही था कि टैरिफ तो जवाबी ही होगा, बस प्रेम बना रहे।

बाबा को गुस्सा क्यों आता है, इसका मोटा-मोटी जवाब तो मिल गया। लेकिन बाबा के इस जियो पॉलिटिकल ज्ञान के पीछे आखिर है कौन? क्योंकि बाबा ने जिस नजरिए को टैरिफ के बहाने सामने रखा है, वह नजरिया तो बड़े-बड़े नेताओं के पास नहीं है, और बीजेपी वालों के पास तो सबसे कम ही होगा।

या फिर टैरिफ को जस्टिफाइ करने की ही तैयारी कर ली गई है?

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