बाबा रामदेव का 'भूमि योग' और बीजेपी शासित राज्यों में जमीन अधिग्रहण का अद्भुत खेल

बीजेपी शासित कई राज्यों में साम्राज्य बढ़ा चुके रामदेव और पतंजलि की नजर अब महाराष्ट्र के विदर्भ में 600 एकड़ जमीन पर है, जहां किसान पहले ही बड़े कृषि संकट का शिकार हैं।

बाबा रामदेव और बालकृष्ण
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रश्मि सहगल

मसूरी का जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट अत्यंत लोकप्रिय और आकर्षक  पर्यटक स्थल है। यह कभी 19वीं सदी के सर्वेयर-जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट का घर हुआ करता था। उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड ने पार्किंग सुविधाओं, पहुंच मार्गों, हेलीपैड, लकड़ी की पांच कॉटेज, दो म्यूजियम और एक वेधशाला (ऑब्जरवेटरी) के निर्माण के लिए एशियाई विकास बैंक से 23.5 करोड़ रुपये का कर्ज लिया। 142 एकड़ में फैली, 30,000 करोड़ रुपये के अनुमानित बाजार मूल्य वाली यह प्रमुख संपत्ति अब 1 करोड़ रुपये सालाना फीस पर 15 साल के पट्टे पर एक ऐसी कंपनी को दी जा चुकी है, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण नियंत्रक हिस्सेदार हैं।  

एवरेस्ट एस्टेट के संचालन की बोली लगाने वाली तीनों कंपनियों में एक ही (बहुमत) शेयरधारक थे आचार्य बालकृष्ण, जो लंबे समय से बाबा रामदेव के व्यापारिक साझेदार हैं। 2022 में बोली लगाने के समय, बालकृष्ण के पास प्रकृति ऑर्गेनिक्स और भारुवा एग्री साइंस दोनों में 99 प्रतिशत और राजस एयरोस्पोर्ट्स में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। जुलाई 2023 में राजस एयरोस्पोर्ट्स को कांट्रैक्ट मिलने के बाद कंपनी में बालकृष्ण की हिस्सेदारी बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई।

सब कुछ संदिग्ध है और थमने का नाम नहीं ले रहा? लगातार मेहरबान उत्तराखंड सरकार ने राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स को सब्सिडी वाली हवाई सफारी सेवाएं देने की सिफारिश तो की ही, लैंडिंग शुल्क भी माफ कर दिया है। ऐसे में भाई-भतीजावाद और नियामक पक्षपात पर उठते सवालों की कड़ी और तल्खी बढ़नी ही थी। राज्य सरकार ने पतंजलि समूह के चतुराई भरे उस स्पष्टीकरण की आड़ लेकर आरोप तत्काल खारिज भी कर दिए, कि किसी निवेशक की ‘निष्क्रिय शेयरधारिता’ का मतलब ‘सक्रिय मिलीभगत’ नहीं होता।

उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता यशपाल आर्य ने बिना किसी लाग-लपेट के इसे 25 साल पुराने राज्य का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। उन्होंने कहा, “जमीन सौंदर्यीकरण पर एडीबी से मिले 23 करोड़ रुपये का कर्ज खर्च करने के बाद, सरकार ने इसे 15 साल के लिए एक निजी कंपनी को सौंप दिया, वह भी पूरी अवधि के लिए सिर्फ 15 करोड़ रुपये के लीज रेंट पर।” उनका इशारा भी है कि कुछ लोगों के लिए विकास की आड़ में सार्वजनिक संपत्तियों को चुपचाप निजी हाथों में सौंपने का शगल अब किस हद तक जा पहुंचा है।

पतंजलि समूह ने आयुर्वेद से शुरुआत कर एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) और फिर पर्यटन तक आश्चर्यजनक उछाल मारी है। ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ अभियान और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कोशिशों के पीछे प्रमुख चेहरों में रहे बाबा रामदेव और उनके पतंजलि समूह को एक के बाद एक बीजेपी शासित राज्यों द्वारा गौशालाओं, आयुर्वेद, स्वास्थ्य और योग केन्द्रों के लिए भूमि हस्तांतरण में मदद मिलने से भारी लाभ हुआ।


बाबा रामदेव जहां समूह का सार्वजनिक चेहरा बने हुए हैं, आचार्य बालकृष्ण के हाथ में भारत की सबसे तेजी से बढ़ती 6,199 करोड़ रुपये की उपभोक्ता वस्तु कंपनी के कारोबार का स्वामित्व है।

मई 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद से ही समूह को अप्रत्याशित लाभ मिलने लगा। अक्तूबर 2014 में रामदेव को असम में ‘गौवंश के संरक्षण और संवर्धन’ के लिए 1,200 एकड़ अविकसित जमीन मुफ्त दी गई। हिमाचल प्रदेश में तब की बीजेपी सरकार ने सोलन जिले में 30 एकड़ जमीन न सिर्फ 33 साल के पट्टे पर, बल्कि महज एक रुपये के सांकेतिक भुगतान पर सौंप दी।

कांगड़ा और हमीरपुर में ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहल पर ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के नाम पर जमीन दी गई। कंडाघाट में हर्बल संसाधन केन्द्र विकसित करने के लिए 96 बीघा जमीन 99 साल के पट्टे पर दी गई। जनविरोध में 2013 में यह पट्टा रद्द जरूर हुआ लेकिन 2017 में इसका नवीनीकरण हो गया। आज बारह साल बाद यह जमीन बिना इस्तेमाल के पड़ी है।

2016 में, बाबा रामदेव को मध्य प्रदेश के धार जिले में खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के लिए 40 एकड़ जमीन 88 प्रतिशत की छूट के साथ दे दी गई। उसी वर्ष, महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नागपुर में 600 एकड़ जमीन 75 प्रतिशत की रियायती दर पर आवंटित कर दी, जिस पर एक खाद्य प्रसंस्करण इकाई, एक संतरा प्रसंस्करण सुविधा, एक आयुर्वेदिक केन्द्र और यहां तक कि एक मल्टी-मॉडल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनना था।

नागपुर में हुए शिलान्यास समारोह में कई बीजेपी दिग्गजों की मौजूदगी में राजनीतिक संरक्षण के खेल का खुला प्रदर्शन दिखा। कहानी यह कि आचार्य बालकृष्ण केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की ओर मुखातिब होकर कहते दिखे कि “हमें एक सड़क चाहिए” तो गडकरी कथित तौर पर तत्काल जवाब देने से नहीं चूके कि वह तो इस इलाके से होकर एक राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का फैसला पहले ही कर चुके हैं। महाराष्ट्र के तत्कालीन (और जैसा कि वर्तमान में भी होता है) मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे “अविकसित” जमीन बताकर सौदे को उचित ठहराया।

पतंजलि समूह ने जमीन की ऐसी बेलगाम भूख में तमाम आक्रामक हथकंडे अपनाए, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बाजार भाव से 25 प्रतिशत कम पर 300 एकड़ जमीन आवंटित करने का दबाव डालना भी शामिल है। यह अलग बात है कि योगी आदित्यनाथ की रामदेव से अदावत जग जाहिर है, क्योंकि योगी उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। राजस्थान के करौली जिले में, समूह स्थानीय तौर पर ‘मंदिर माफी’ नाम की जमीन पर एक योग केन्द्र-सह-फ़ूड पार्क स्थापित कर रहा है। पूर्व महाराजाओं द्वारा शुरू की गई इस योजना में जिस जमीन का जिक्र है, उसकी न तो बिक्री हो सकती है और न पट्टे पर दिया जा सकता है। यह सिर्फ मंदिरों के लिए है। आमतौर पर धार्मिक मामलों पर मुखर रहने वाले हिन्दू दक्षिणपंथी भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।


पांच दशक पूर्व उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के एक बड़े अभियान के तहत, तेलीवाला गांव (जिला हरिद्वार) के प्रत्येक दलित परिवार को छह बीघा कृषि भूमि इस शर्त के साथ आवंटित की गई थी कि उसे बेचा नहीं ही जा सकता था, और अगर पट्टे पर देना भी हुआ, तो सिर्फ अन्य दलितों को दे सकते थे। पतंजलि समूह ने इस प्रतिबंध को भी दरकिनार करते हुए 2005 से 2010 के बीच ‘दान’ के जरिये 600 बीघा जमीन अपने नाम करा ली। यह जमीन अब औषधीय जड़ी-बूटियों, गन्ने और गौशालाओं के काम आ रही है। पतंजलि मालामाल हो गया और दलित परिवार भूमिहीन हो गए।

हरियाणा के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील अरावली क्षेत्र के एक वनाच्छादित गांव मंगर में, समूह ने 400 एकड़ से ज्यादा जमीन का अधिग्रहण किया है। 2014 और 2016 के बीच हुए इन लेन-देन में ‘शामलात देह’ या सामान्य ग्राम भूमि के रूप में वर्गीकृत जमीन शामिल थी, जो कानूनी तौर पर सामुदायिक उपयोग के लिए थी। अधिग्रहण की यह प्रक्रिया अपने आप में  खतरे की घंटी है। शेल कंपनियों के एक नेटवर्क ने, जिनमें से ज्यादातर ने शून्य राजस्व की रिपोर्ट दी, शुरुआत में मूल भूस्वामियों के साथ पावर ऑफ अटॉर्नी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिनमें से कई दावे विवादित थे। भू-स्वामित्व में बदलाव के बाद पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण इन कंपनियों में बहुसंख्यक हितधारक बनकर उभरे।

दरअसल, हरियाणा की बीजेपी सरकार पतंजलि के भूमि हड़पो कारोबार में पूरी मददगार बनकर खड़ी है। हरियाणा विधानसभा ने पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1990 में संशोधन करके अरावली पहाड़ियों में हजारों एकड़ जमीन रियल एस्टेट डेवलपमेंट और खनन के लिए खोल दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ‘दिल्ली का फेफड़ा’ तबाह करने के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और संशोधित अधिनियम के तहत आगे की किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी।

1996 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए मसौदा क्षेत्रीय योजना 2041 में अरावली पहाड़ियों, यमुना, गंगा, काली, हिंडन और साहिबी सरीखी प्रमुख सहायक नदियों के साथ-साथ महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्रों जैसे पशु अभयारण्य और बड़खल झील, सूरजकुंड, दमदमा झील (सभी हरियाणा में) तथा राजस्थान में सिलिसेढ़ झील जैसे प्रमुख जल निकायों को कानूनी संरक्षण से बाहर रखा गया है। मसौदा योजना में पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील इन क्षेत्रों में निर्माण की सीमा भी हटा दी गई है। मौजूदा 2021 योजना के तहत, इन क्षेत्रों में निर्माण कार्य सिर्फ  0.5 प्रतिशत भूमि तक ही सीमित था, लेकिन यह रोक अब चुपचाप हटाई जा चुकी है।


मतलब यह कि पंचायती जमीन, ‘गैर मुमकिन पहाड़’ (खेती के अयोग्य) और वन भूमि औने-पौने दाम हासिल कर लेने वाले रामदेव के पतंजलि समूह जैसे ताकतवर रियल एस्टेट दिग्गज अब इन संपत्तियों को व्यावसायिक और आवासीय उद्देश्यों के लिए भी विकसित कर सकते हैं। यह सब तब है जब सुप्रीम कोर्ट 7 अप्रैल 2022 को अपने आदेश में सभी पंचायती जमीन पंचायतों को वापस कर देने का आदेश दे चुका है।

गुरुग्राम स्थित विश्लेषक चेतन अग्रवाल बताते हैं, “एनसीआर में सक्रिय रियल एस्टेट लॉबी ने जमीन के ऐसे बैंक बना लिए हैं जिन पर पहले निर्माण नहीं हो सकता था क्योंकि प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्रों में निर्माण पर ‘0.5 प्रतिशत जमीन’ की सीमा थी। सीमा हटाने से निर्माण की होड़ मच गई है, खासकर तब से जब क्षेत्रीय योजना 2041 ने प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र को न सिर्फ सीमित कर दिया है, नियम भी शिथिल कर दिए हैं।”

बाबा की नवीनतम महत्वाकांक्षा महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में एक दुग्ध प्रसंस्करण इकाई, एक फूड पार्क और एक हर्बल औषधि इकाई स्थापित करने की है। उनकी नजर विदर्भ में 600 एकड़ जमीन पर भी है, जहां किसान लगातार एक के बाद एक बड़े कृषि संकटों से जूझ रहे हैं।

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