मोदी-शाह की कार्यशैली और ‘बदलाखोरी’ से बादल परिवार वाकिफ, अब अकाली-बीजेपी गठबंधन कहने भर को बचा है!

दिल्ली और हरियाणा में तो अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट गया लेकिन पंजाब में कहने भर को कायम है। पंजाब बीजेपी के वरिष्ठ नेता अब और ज्यादा ऊंचे सुर में कह रहे हैं कि अगर अकाली गठबंधन कायम रखना चाहते हैं तो उन्हें बदले हालात के मद्देनजर बीजेपी को ‘बड़े भाई’ के तौर पर मान्यता देनी ही होगी।

फोटो: सोशल मीडिया
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अमरीक

हरियाणा के बाद दिल्ली में भी गठजोड़ टूटने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि अकाली-बीजेपी गठबंधन औपचारिक रूप से अब कितने दिन का मेहमान है और इसे बाकायदा तोड़ने की पहल कौन करेगा? बीते 22 सालों से दोनों दल साथ हैं। भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के बीच पति-पत्नी का अटूट रिश्ता बताया जाता रहा है लेकिन अब नौबत तलाक तक आ गई है। दरअसल, गठबंधन विधिवत तोड़ने की पहल न करने की दोनों दलों की अपनी अपनी मजबूरियां और राजनीति है। वैसे दोनों पार्टियों के कतिपय नेता वेंटिलेटर पर आए इस रिश्ते को जिंदा रखने की कवायद अभी भी कर रहे हैं। बेशक ‘गठबंधन धर्म’ तो तार- तार हो ही चुका है।

शिरोमणि अकाली दल की कमान बादल घराने के हाथों में है और अकाली सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल की बहू और प्रधान सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और बादलों के खास सिपहसालार बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की बहन हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय मंत्री हैं। यही सबसे बड़ी वजह है कि बादल कुनबा तमाम अंतर्विरधों और फजीहत के बावजूद बीजेपी को अंतिम अलविदा नहीं कह पा रहा। इसके पीछे सत्ता मोह के अलावा भी बहुत कुछ है। बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर ईडी की तलवार तो लटक ही रही है, साथ ही सत्ता में रहते नशा सौदागरी के गंभीर आरोप जिन्न बनकर ऐसी बोतल में बंद हैं जिन्हें सीबीआई जब चाहे बाहर निकाल सकती है।


इसके अलावा श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की घटनाओं में अकाली दल की संदेहास्पद भूमिका की विभिन्न एजेंसियों की जांच का शिकंजा भी ऐन सिर पर है। पंजाब में अकालियों सहित सभी इस सच से बखूबी वाकिफ हैं। प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के कई करीबी भी शक के दायरे में रहे हैं। ऐसे अकालियों में खौफ पसरा हुआ है कि बंद फाइलें खुलीं तो अंजाम क्या होगा और दोनों बादल अच्छी तरह जानते हैं कि बात निकलेगी तो कितनी दूर तक जाएगी।

वहीं अनुभवी बड़े बादल नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कार्यशैली और 'बदलाखोरी' के अंदाज से वाकिफ हैं। जिस नागरिकता संशोधन विधेयक के नाम पर दिल्ली में गठजोड़ तोड़ने की बात की जा रही है, पहले पहल शिरोमणि अकाली दल ने अपनी परंपरागत विचारधारा को धता बताकर न केवल सार्वजनिक तौर पर उसका समर्थन किया था बल्कि लोकसभा में भी उसके पक्ष में वोट दिया था। सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल ने तो यहां तक कह दिया था कि सीएए लागू करवाने में उनका बड़ा हाथ है ताकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थी सिखों को भारत में मान्यता मिल सके। दोनों समेत समूची अकाली लीडरशिप ने इस पर खामोशी तब अख्तियार की जब पंजाब में चप्पे-चप्पे में सीएए के खिलाफ लोग एकजुट होकर खड़े हो गए। विधानसभा से लेकर सड़कों तक बादलों को धिक्कारा गया। हरसिमरत कौर बादल तो बतौर केंद्रीय मंत्री खामोश रहीं लेकिन सुखबीर सिंह बादल ने अचानक 'शर्त' रख दी कि शिरोमणि अकाली दल सीएए का 'संपूर्ण समर्थन' तब करेगा, जब मुसलमानों को भी इस में शुमार किया जाएगा। अकाली दल की इस संपूर्ण समर्थन की अवधारणा भी दरअसल मौकापरस्ती की बुनियाद पर टिकी है।


यह अकाली दल की मजबूरी ही मानी जाएगी कि राज्यों को ज्यादा अधिकार देने की वकालत करने वाला सियासी संगठन अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का भी समर्थन करता रहा और अब भी उसका विरोध नहीं कर रहा है। जिस मंत्रिमंडल की संयुक्त मोहर 370 रद्द करने पर लगी है। उसमें हरसिमरत कौर बादल भी शामिल हैं। शिरोमणि अकाली दल आज अपने इतिहास के सबसे नाजुक मोड़ पर है। जिन नेताओं के दम पर प्रकाश सिंह बादल ने इसे मजबूत करके 5 बार सत्ता हासिल की, वे धीरे-धीरे दल से अलहदा होते गए या हाशिए पर डाल दिए गए। इसलिए भी कि समकालीन अकाली दल प्रकाश सिंह बादल का नहीं बल्कि सुखबीर सिंह बादल और बिक्रमजीत सिंह मजीठिया का है जो शासन व्यवस्था अथवा राजनीति को धन कमाने का जरिया मानते हैं। जो धार्मिक संस्थाएं शिरोमणि अकाली दल की हिमायत से चल रही हैं, उन्हें भी कारपोरेट ढंग से चलाया जा रहा है।

सुखबीर और मजीठिया की सियासी शैली को अकाली दल का कैडर वोटर भी बीते विधानसभा चुनाव में नामंजूर कर चुका है। बीजेपी तो शुरू से ही खुलेआम कहती रही है कि विधानसभा चुनाव में गठबंधन हार के पीछे अकालियों से अवाम का बड़े पैमाने पर खफा होना है। इस भावना की मुखर अभिव्यक्ति प्रदेश बीजेपी के नवनियुक्त प्रधान अश्विनी शर्मा की ताजपोशी के वक्त खुलकर सामने आई जब वरिष्ठ नेताओं ने अपने बूते पर पंजाब में सरकार बनाने का दावा किया और गठबंधन तोड़ने की बात कही। माना जा रहा है कि ऐसा आलाकमान के इशारे पर किया गया ताकि शिरोमणि अकाली दल को आईना दिखाया जाए और सुखबीर सिंह बादल की हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी कारगुजारियों का तीखा जवाब दिया जाए।

सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई में शिरोमणि अकाली दल ने जो हरियाणा में किया, ठीक वही अब दिल्ली में बीजेपी ने किया है। यानी टिकट बंटवारे और चुनाव चिन्ह को लेकर अकाली दल की फजीहत करके। कांग्रेस का यह कटाक्ष मौजूद है कि अकाली दल को 'खाली दल' बना दिया गया है।


दिल्ली और हरियाणा में तो अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट गया लेकिन पंजाब में कहने भर को कायम है। पंजाब बीजेपी के वरिष्ठ नेता अब और ज्यादा ऊंचे सुर में कह रहे हैं कि अगर अकाली गठबंधन कायम रखना चाहते हैं तो उन्हें बदले हालात के मद्देनजर बीजेपी को 'बड़े भाई' के तौर पर मान्यता देनी ही होगी और सीटों का बंटवारा हमारी शर्तों पर होगा। अब तक बीजेपी 'छोटे भाई' की भूमिका में रही है और सीटों का बंटवारा प्रकाश सिंह बादल की मर्जी से होता रहा है। अब बीजेपी पूरी रणनीति के साथ इस स्थापति को बदलना चाहती है। यह कवायद शीर्ष नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति के बगैर संभव नहीं।

यह कोई अचानक नहीं है। पिछले लंबे अरसे से आरएसएस की गतिविधियां पंजाब में जोर पकड़े हुए हैं। शिरोमणि अकाली दल इससे खफा है और अपने 'इलाके' में इससे एतराजयुक्त हस्तक्षेप मानता है लेकिन खुलकर विरोध नहीं करता। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार आरएसएस पर प्रतिबंध की बात कही तो अकाली दल ने तब भी किसी के संग की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। जबकि जत्थेदार के फरमान को पहला जोरदार समर्थन शिरोमणि अकाली दल की ओर से ही मिलता है। पंथक सियासत का काफी दारोमदार इस पर खड़ा है। प्रश्न यह है कि पंजाब में अकाली-बीजेपी गठबंधन पूरी तरह से टूटता है तो गैर कांग्रेसी राजनीति किस दशा-दिशा को हासिल होगी? बीजेपी शहरी वोटरों पर अपना कब्जा मानती है तो ग्रामीण पंजाब को अकाली अपना मूल जनाधार। सत्ता का रास्ता गठबंधन यहीं से पकड़ता रहा है। हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में शहरी और ग्रामीण मतदाताओं ने दोनों को दरकिनार किया। अकाली-बीजेपी गठबंधन टूटने की सूरत में सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को होना तय है। बेशक आम आदमी पार्टी भी कहीं न कहीं फायदे में रहेगी लेकिन उसका गंभीर अक्स पंजाब में लगातार धुंधला हुआ है।

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