कंटीली तारें, कीलें और बंदूक के साये... मोदी सरकार ने फिर अंग्रेजों के दमन की याद दिलाईः रणदीप सुरजेवाला

सुरजेवाला ने कहा कि सरकार ये भी समझ ले कि ये तो किसानों की लड़ाई का आगाज है। अभी तो बस पंजाब और हरियाणा के किसान न्याय मांगने, दरवाजा खटखटाने आए हैं। जब पूरे देश के किसान की कुमुक दिल्ली आएगी, तो फिर अंजाम क्या होगा?

मोदी सरकार ने फिर अंग्रेजों के दमन की याद दिलाई
मोदी सरकार ने फिर अंग्रेजों के दमन की याद दिलाई
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नवजीवन डेस्क

किसानों का 'दिल्लीर चलो' मार्च शुरू हो गया है। प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए सरकार ने दिल्ली की सीमाओं को पूर तरह सील कर दिया है। पिछले कई दिनों से किसानों को रोकने की तैयारी कर रहे प्रशासन ने दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसानों को रोकने के लिए कंटीली तारें लगाने के साथ जमीन में बड़ी-बड़ी कीलें बिछाई हैं। कई जगह सीमाओं पर कई फुट गहरा और चौड़ा गड्ढा खोद दिया गया है, ताकि किसान उसे पार न कर सकें।

किसानों के खिलाफ सरकार की इस कार्रवाई पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने हमला बोला है। कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि दिल्ली के सारे बॉर्डर इस तरह सील कर दिये गए हैं, जैसे ये दुश्मन देशों के बॉर्डर हों। हरियाणा-पंजाब, दिल्ली से सटे राजस्थान और उत्तर प्रदेश से सटे दिल्ली के पड़ोसी जिलों में इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से बंद कर दी गई हैं वो भी तब जब बोर्ड की परीक्षाएं छात्रों के सिर पर हैं।

रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेस में कहा कि जब भी इतिहास लिखा जाएगा, तब मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल को किसानों के खिलाफ क्रूरता, बर्बरता, दमन और दंशकाल के रूप में जाना जाएगा। आज, बीजेपी की केंद्र सरकार और हरियाणा-राजस्थान-उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों ने देश की राजधानी को एक ‘पुलिस छावनी’ में तब्दील कर रखा है, जैसे कि किसी दुश्मन ने दिल्ली की सत्ता पर हमला बोल दिया हो। दिल्ली के चौतरफा, खासतौर पर हरियाणा, क्योंकि वो दो-तिहाई हिस्सा है, वहां क्या मंजर है सबको पता है।

सुरजेवाला ने कहा कि सोनीपत में कुंडली और बहादुरगढ़ में टीकरी दिल्ली बॉर्डर पर सीमेंट के बैरिकेड, बड़े-बड़े बोल्डर, रोड-रोलर और कंटेनर्स लगा उन्हें सील कर दिया गया है। यही हाल यूपी और राजस्थान बॉर्डर का भी है। जहां दिल्ली की चौतरफा ‘किलेबंदी’ की गई है, वहां सड़कों पर ‘‘कीलें-बंदी’’ कर दी गई है। यानी कीलें और नश्तर दिल्ली की चौतरफा सड़कों पर जमीन में गाड़ दिए गए हैं। यही नहीं, कंटीले तारों की दीवारें बना दी गई हैं। पड़ोस में हरियाणा की बीजेपी सरकार ने पंजाब और हरियाणा के बीच, रतिया और बुडलाडा रोड के बीच दस फीट गहरी और पंद्रह फीट चौड़ी खाई खोद दी है। जैसे दो दुश्मन देशों के बीच में बनाते हैं।


सुरजेवाला ने आगे कहा कि हाँसी, हरियाणा में जो है, उसके निकट राष्ट्रीय राजमार्ग पर मैय्यड़ टोल है, सरकार ने वहां जेसीबी मशीनें लगा 50-50 फुट गहरे गड्ढे बना दिए गए हैं। सीमेंट बैरियर पर सीमेंट भरकर एक कंक्रीट की दीवार एनएच पर खड़ी कर दी गई है। कैथल हरियाणा में खाई खोदकर कंटेनर्स, डम्प्ड व्हीकल्स, सीमेंट बैरिकेड्स लगाकर एक पूरी दीवार खड़ी कर दी गई है। पंजाब और हरियाणा के बीच घग्गर नदी है और घग्गर नदी का पुल है, उस पुल पर लोहे के बड़े-बड़े कंटेनर्स के साथ कीलें और नश्तर गाड़ दिए गए हैं। पुल को खोदकर, कंटीली तारबंदी कर दी गई है, बड़े-बड़े पिलर्स और पुराने वाहनों की चैसियां लगाकर पूरा बॉर्डर सील कर दिया गया है, जैसे ये कोई हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बॉर्डर हो, या दो दुश्मन देशों का बॉर्डर हो।

सुरजेवाला ने आगे कहा कि पूरे हरियाणा-पंजाब, पड़ोस में दिल्ली से सटे राजस्थान और इधर उत्तर प्रदेश के पड़ोस में दिल्ली से सटे जिलों में इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से बंद कर दी गई हैं, शटडाउन कर दी गई हैं, वह भी तब जब बोर्ड एग्ज़ाम बिल्कुल सिर पर हैं और बच्चों को हर रोज आवश्यकता है। दिल्ली के चारों तरफ के जिलों में मौखिक हिदायत दी गई है कि किसी किसान के ट्रैक्टर में दस लीटर से ज्यादा डीज़ल नहीं डाला जाएगा, कोई पेट्रोल पंप डाल ही नहीं रहा है। अब उन्होंने डीजल डालना ही बंद कर दिया है। मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने कर्नाटक और दूसरे राज्यों से आ रहे किसानों को जबरन ट्रेन रुकवाकर, उतारकर गिरफ्तार कर लिया है।

सुरजेवाला ने कहा कि साथियो, चौतरफा ज़ुल्म का आलम है। अन्नदाता किसान की न्याय की हुंकार से डरी मोदी सरकार एक बार फिर सौ साल पहले अंग्रेज द्वारा 1917 के बिहार के चंपारण किसान आंदोलन, 1918 के गुजरात के खेड़ा किसान आंदोलन, 1920-21 के अवध के किसान आंदोलन में उठाए गए दमनकारी कदमों की फिर याद दिला रही है। दिल्ली की सत्ता में बैठे क्रूर और अहंकारी सत्ताधारियों से हमारे केवल इतने सवाल हैं-

क्या देश का अन्नदाता किसान और खेत मजदूर न्याय मांगने अब देश की राजधानी दिल्ली में नहीं आ सकता? क्या अब न्यू इंडिया में किसान को दिल्ली की परिधि के सौ किलोमीटर में आने की आजादी नहीं रही है?

क्या सरकार यह मानती और सोचती है कि किसान दिल्ली की सत्ता पर आक्रमण करने आ रहा है या फिर जबरन सत्ता पर कब्जा करना चाहता है? यदि हां, तो सरकार सामने आकर सबूत दे देश को कि यह दिल्ली की सत्ता के तख्तापलट की साज़िश है और यदि नहीं, तो फिर देश की राजधानी दिल्ली को पैरामिलिट्री और पुलिस की छावनी में बदलने की आवश्यकता क्या है? दिल्ली में करोड़ों लोग रोज आते हैं, किसान भी आ जाएंगे, अपना न्याय मांगेंगे।

देश का अन्नदाता प्रधानमंत्री और देश की सरकार से न्याय न मांगे, तो कहां जाए? जब मुझे न्याय मांगना हो, मैं मेरे प्रधानमंत्री और मेरी सरकार से न्याय न मांगू, तो कहां जाऊं? तो क्या अब न्याय मांगने का कोई रास्ता और तरीका नहीं बचा, सब दरवाजे बंद हैं? यदि हां, तो सरकार ये तो बता दे कि किसान कौन सा दरवाजा खटखटाएं, हम वो खटखटा लेंगे।


जब किसान आंदोलन पूरी तरह से शांतिप्रिय हैं, जब पिछला किसान आंदोलन भी शांतिप्रिय रहा, तो फिर किसान की राह में कीलें, कंटीले तार, सीमेंट के बोल्डर, कंटेनरों की दीवार, सड़कों में खुदी खाईयां क्यों, किसानों के बेटों, पुलिस और पैरामिलिट्री के सिपाहियों की संगीनें और बंदूकों के मुंह किसानों की छातियों की ओर क्यों? क्या भारत के हुक्मरान को देश की मिट्टी का दर्द, किसान की वेदना और कराहते हुए हिंदुस्तान की आवाज अब सुनाई नहीं देती?

कांग्रेस नेता ने कहा कि इस बार सत्य और असत्य के बीच संघर्ष में छल से सत्ता पर आसीन दुर्योधन-दुःशासन जान लें, दुष्चक्र रच लें, शकुनी मामा चाहे कितनी चाल चल ले, धर्म भ्रष्ट धृतराष्ट्र चाहे अपनी आंखों के साथ-साथ जुबां को भी सिल लें, लेकिन इस बार अन्नदाता किसान सरकार के भ्रम जाल में नहीं आने वाला। इस बार वो अपना वाजिब हक लिए बगैर हस्तिनापुर से हटने वाला नहीं। वो केवल न्याय मांगता है। सरकार ये भी समझ ले कि ये तो किसानों की लड़ाई का आगाज है। अभी तो बस पंजाब और हरियाणा के किसान न्याय मांगने, दरवाजा खटखटाने आए हैं। जब पूरे देश के किसान की कुमुक दिल्ली आएगी, तो फिर अंजाम क्या होगा?

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