खबरदार! आपके फोन में आ रही है निगरानी/जासूसी करने वाली सरकार
केंद्र की मोदी सरकार सुरक्षा के नाम पर अब आप पर हर वक्त नजर रखेगी। सरकार हर नागिरक के फोन में ऐसा ऐप डालने जा रही है जिससे निजता जैसा शब्द बेमानी हो जाएगा।

सरकार अब हर वक्त आपके फोन में रहेगी...जी हां सही पढ़ा आपने...सरकार ने ऐलान किया है कि अब हर मोबाइल में सरकार का एक ऐसा ऐप हर वक्त आपके फोन में रहेगा जो आपकी हर गतिविधि पर नजर रखेगा, आपके फोन कॉल सुनेगा, आपके मैसेज पढ़ेगा आदि आदि। इतना ही नहीं यह ऐप मोबाइल में पहले से ही इंस्टाल होकर आएगा और आप इसे अपने फोन से हटा भी नहीं सकते हैं यानी डिलीट नहीं कर सकते हैं। अगले साल मार्च से बाजार में आने वाले हर नए मोबाइल में तो यह ऐप पहले से ही होगा, साथ ही पुराने मोबाइल में भी इसे डाल दिया जाएगा। इस ऐप का नाम दिया गया है संचार साथी ऐप...जैसाकि नाम से ही जाहिर है, यह हर वक्त आपके हर संचार यानी कम्यूनिकेशन के दौरान आपके साथ रहेगा।
सबसे पहले बताते हैं कि इस ऐप की बाबत जारी निर्देश में केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन यानी डीओटी ने क्या कहा है। निर्देशों में कहा गया है:
सभी नए मोबाइल फोन में संचार साथी ऐप प्रीइंस्टॉल होगा यानी यह पहले से मोबाइल में होगा
जो डिवाइस यानी मोबाइल फोन पहले से बाजार में हैं, उनमें फोन का ऑपरेटिंग सिस्टम यानी ओएस सॉफ्टवेयर अपडेट के ज़रिए इंस्टॉल किया जाएगा
ऐप का इस्तेमाल चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने, आईएमईआई (हर मोबाइल फोन का यूनिक नंबर) असली है या नहीं- इसे सुनिश्चित करने और स्पैम कॉल (गैर जरूरी कॉल) को रिपोर्ट करने में किया जाएगा
इस ऐप के जरिए हज़ारों गुम हुए मोबाइल फोन को खोजा जा चुका है
सरकारी प्रेस रिलीज के मुताबिक निर्देशों में 90 दिनों में इस पर अमल करने और 120 दिनों के अंदर ऐसा कर दिया गया है, इसी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। सरकार ने अपने निर्देशों में कहा है कि दूरसंचार सेवा नियमों के तहत केंद्र सरकार को अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान संख्या (आईएमईआई) वाले दूरसंचार उपकरणों के निर्माताओं को ऐसे सभी दूरसंचार उपकरणों या आईएमईआई संख्या से संबंधित निर्देश जारी करने का अधिकार है। कहा गया है कि सरकार के पास यह भी अधिकार है कि उसके द्वारा जारी निर्देशों का पालन सभी उपकरण निर्माता या आयातक अनिवार्य रूप से करें।


अब जानते हैं कि संचार साथी ऐप अगर आपके फोन में है तो उसे क्या-क्या करने का अधिकार दिया जाता है या दिया जाएगा। इस ऐप की परमीशन देखने से ये बातें सामने आती हैं:
ऐप आपके फोन से की जाने वाली या आने वाली कॉल का रिकॉर्ड रखेगा, आपके कॉल लॉग को पढ़ेगा
आपके फोन में आने वाले या भेजे जाने वाले एसएमएस यानी मैसेज को पढ़ेगा, खुद भी मैसेज भेजेगा और मैसेज देखेगा
आपके फोन की पहचान और उसके स्टेटस को देखेगा
आपके फोन कैमरे से तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड कर सकेगा और पहले से ली गई तस्वीरों और वीडियो को देख सकेगा
आपके फोन की शेयर की गई स्टोरेज को पढ़ सकेगा, उसमें बदलाव कर सकेगा, उसमें मौजूद सामग्री को डिलीट कर सकेगा या उनमें बदलाव कर सकेगा
जब भी आप अपने फोन का सॉफ्टवेयर अपडेट करेंगे, यह ऐप अपनी कुछ सर्विसेस उसके साथ रन कर देगा
आपके फोन में होने वाले वाइब्रेशन को नियंत्रित करेगा
जैसे ही नया फोन या पुराना फोन रिस्टार्ट करेगा या ऑन करेंगे, यह ऐप अपने आप चलने लगेगा
आपके फोन से जुड़े नेटवर्क की जानकारी हासिल करेगा
गूगल प्ले से आपने जो भी अन्य ऐप डाउनलोड किए हैं, उनके लाइसेंस चेक करेगा
आपके फोन पर आने वाले नोटिफिकेशन को पढ़ेगा
आपके फोन को कभी भी स्लीप मोड में नहीं जाने देगा
इन परमीशन के अलावा यह भी कहा गया है कि आप इन परमीशन को यूं तो सेटिंग में जाकर डिसएबल यानी रोक सकते हैं, लेकिन इसके बाद संचार साथी ऐप ऑटोमेटिकली यानी खुद ही सारी परमीशन को फिर से ऑन कर देगा।

इस ऐप की बाबत निर्देश जारी होने के बाद जाहिर तौर पर विपक्षी दलों और टेलीकॉम सेक्टर पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों और निजता के अधिकार की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस ने इसे असंवैधानिक बताते हुए इन दिशा निर्देशों को तत्काल वापस लेने की मांग की है। कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान में दिया गया मूलभूत अधिकार है और ये दिशा निर्देश इसकी अवहेलना करते हैं। उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि, "मोबाइल में पहले से इंस्टॉल सरकारी ऐप जिसे हटाया नहीं जा सकता, दरअसल हर भारतीय नागरिक की निगरानी का टूल है। यह हर नागरिक की गतिविधियों और फ़ैसले पर नज़र रखेगा।"
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने संचार साथी की अनिवार्यता का विरोध करते हुए लिखा है, ''मोबाइल फोन निर्माताओं को संचार साथी मोबाइल ऐप को एक स्थायी मोबाइल फीचर के रूप में अनिवार्य करने का भारत सरकार का फैसला एक और "बिग बॉस" जैसी निगरानी की मिसाल है।'' उन्होंने कहा है कि, ''इस तरह के संदिग्ध तरीक़ों से लोगों के व्यक्तिगत फोन में दखल देने की कोशिश का विरोध किया जाएगा। अगर आईटी मंत्रालय यह सोचता है कि मज़बूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाने के बजाय वह निगरानी प्रणाली बनाएगा तो उसे जनता के तीव्र प्रतिरोध के लिए तैयार रहना चाहिए।''
सवाल सिर्फ इतना ही नहीं है कि इस तरह के ऐप मोबाइल में डालने से निगरानी बढ़ेगी और निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। बात इससे कहीं आगे की भी हो सकती है। अगर किसी ऐप को इतनी अधिक परमीशन मिली हुई हैं जो एक तरह से आपका फोन या डिवाइस कंट्रोल करता है, तो वह आपके फोन या डिवाइस में कोई भी सी ऐफाइल इम्पलांट भी कर सकता है यानी डाल भी सकता है, जिसके बारे में आपको हवा ही न हो। याद कीजिए भीमा कोरेगांव केस, जिसमें यह बात सामने आई थी कि उस मामले के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ताओं के लैपटॉप आदि में एजेंसियों ने कुछ फाइले इम्पलांट की थीं, जिनकी जानकारी उन डिवाइस के मालिकों को थी ही नहीं। ऐसा शायद हर किसी के साथ न भी हो, लेकिन कौन जानता है कि कब किसे इस तरह से निशाने पर ले लिया जाए।
ताज्जुब नहीं कि शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने इसे डिक्टेटरशिप की संज्ञा दी है। कारण साफ है कि इस तरह के ऐप को अनिवार्य बनाना टोटल सर्विलांस स्टेट आनी पूर्ण निगरानी करने वाले राज्य की तस्वीर सामने लाती है। यूं तो सरकार इसे सिक्यूरिटी का नाम दे रही है, लेकिन यह हर नागरिक के निजी जीवन में तांकझांक ही नहीं बल्कि पूरी तरह घुसकर उसकी निजता पर कब्जा करना है। किसी भी नागरिक का फोन या डिवाइस उसकी निजी जगह है, न कि सरकारी संपत्ति, लेकिन यह निर्देश इसे सरकार के नियंत्रण में लाते हैं।
सिम बाइंडिंग
इससे अलावा केंद्र सरकार एक और नया नियम लागू करने की तैयारी कर ली है, जिसके बाद देश में मैसेजिंग और सोशल कम्युनिकेशन ऐप्स का इस्तेमाल करने का तरीका बदल जाएगा। इन ऐप्स में व्हाट्सऐप. टेलीग्राम, सिग्नल, स्नैपचैट आदि लोकप्रिय ऐप्स शामिल हैं। दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने इन ऐप्स को निर्देश दिया है कि अगले 90 दिनों के भीतर वे अपनी सर्विस इस तरह तैयार करें कि ऐप तभी चले जब फोन में वही सिम मौजूद हो जिससे अकाउंट वेरिफाई किया गया था। जैसे ही वह सिम निकाली जाएगी, ऐप ऑटोमैटिक बंद हो जाना चाहिए। इसे सिम बाइंडिंग कहते हैं।
सरकार का तर्क है कि सिम बाइंडिंग साइबर अपराध को बंद करने के लिए ज़रूरी है। सरकार ने निर्देश जारी किया है कि सभी मैसेजिंग ऐप्स इसे सुनिश्चित करें कि उनकी सर्विस केवल रजिस्टर्ड सिम वाले डिवाइस में ही काम करे। अभी तक व्हाट्सऐप, टेलीग्राम या सिग्नल जैसे ऐप्स पर एक बार ओटीपी से गिन करने के बाद सिम बदलने पर भी ऐप चलता रहता है। सरकार का कहना है कि यही सुविधा सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन रही है।
नई व्यवस्था के तहत अगर आपने सिम बदला है या निकाल दिया है, उसके बाद ये मैसेजिंग ऐप चलने बंद हो जाएंगे और वेब पर भी नहीं चलेंगे। सरकार ने निर्देश जारी किया है कि मैसेजिंग ऐप्स को समय-समय पर यह जांचना होगा कि वही सिम फोन में लगी है या नहीं जिससे ऐप्स को एक्टिवेट किया गया था। ऐसी व्यवस्था बनेगी कि जैसे ही सिम बदलेगी या हटेगी, ऐप तुरंत रुक जाना चाहिए।
इसी तरह इन ऐप्स के बेव एक्सेस हर 6 घंटे में खुद ब खुद लॉगआउट हो जाना जरूरी होगा और फिर से वेब लॉगिन के लिए फोन से ही क्यू आर कोड क्सैन करना होगा, वह भी तब जब फोन में वहीं सिम लगी हो। सरकार ने इस बारे में मैसेजिंग सर्विस देने वालों के लिए 120 दिनों में इसे लागू करने की मीयाद तय की है।
इस मामले में भी सरकारी तर्क है कि ऐसा ऑनलाइन फ्रॉड और अपराध रोकने के लिए किया रहा है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में साइबर विशेषज्ञों ने इस पर संदेह जताया है। उनका कहना है कि सिम बाइंडिंग अपराध रोकने में कारगर साबित नहीं हो सकता है। उनका कहना है कि भारत पहले से एआई और वीडियो-KYC जैसी सख्त वेरिफिकेशन तकनीक इस्तेमाल की जा रही है, फिर भी फ्रॉड बढ़ रहे हैं तो समस्या शायद कहीं और है।
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