नजरबंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट का राहत से इनकार, एसआईटी जांच की मांग भी खारिज 

भीमा-कोरेगांव मामले में देश के अलग-अलग शहरों से पुणे पुलिस द्वारा पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच से इनकार करते हुए इन सभी की नजरबंदी चार हफ्ते के लिए बढ़ा दी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

दिल्ली एनसीआर समेत देश के अलग-अलग शहरों से पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। अपने फैसले में सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 से मामले की एसआईटी जांच से इनकार करते हुए महाराष्ट्र पुलिस के तर्कों पर भरोसा जताया। सर्वोच्च अदालत ने पांचों गिरफ्तार लोगों की नजरबंदी चार हफ्ते और बढ़ाने का भी आदेश दिया है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान वे राहत के लिए निचली अदालत में अपील कर सकते हैं। साथ ही अदालत ने कहा कि मामले की जांच करने वाले अधिकारी अपनी जांच जारी रख सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ शब्दों में कहा कि आरोपी व्यक्ति इस बात का चयन नहीं कर सकते हैं कि कौन सी जांच एजेंसी उनके मामले की जांच करे। हालांकि 2-1 से आए इस फैसले के खिलाफ जस्टिस चंद्रचूड ने अपनी असहमति जताई और बहुमत के इस फैसले को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। कोर्ट के इस फैसले से मामले के याचिकाकर्ता बेहद निराश हैं, लेकिन उनका मानना है कि अभी उन्हें गिरफ्तारी पर रोक मिली है और अपील करने के लिए चार हफ्ते का समय मिला है।

तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्जिस दीपक मिश्रा कर रहे थे और उन्होंने इन गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग को अस्वीकार कर दिया। जस्टिस ए एम खानविलकर ने अपना और प्रधान न्यायाधीश फैसला पढ़ा और इसमें महाराष्ट्र पुलिस द्वारा दी गई तमाम दलीलों को स्वीकार किया। जस्टिस चंद्रचूड ने इस फैसले से असहमति जताई और अहसमति का फैसला पढ़ा। जस्टिस चंद्रचूड ने अपने फैसले में कहा कि यह कोर्ट की निगरानी में एसआईटी के नेतृत्व में जांच का सही मामला था। पूणे पुलिस ने मीडिया में ब्रीफिंग करके प्रतिकूल अवधारणा बनाने का काम किया और इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह असहमति को दबाने के लिए की गई गिरफ्तारियां है।

इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंसालविस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी पर रोक लगाने, उन्हें जमानत देने में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है। इन पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी के विरोध में इन पांचों की तरफ से वयोवृद्ध इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री देवकी जैन, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता माजा दारुवाला और समाजशास्त्री सतीश देशपांडे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। आज अदालत ने इन्हीं की याचिका पर अपना फैसला सुनाया है।

इस फैसले के बारे में केस से जुड़ी रहीं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने नवजीवन से बात करते हुए कहा, “इस फैसले से हम निराश हैं, दुखी हैं। लेकिन इस फैसले ने पांचों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए हमें चार हफ्ते का समय दिया है। इस दौरान हम न्यायिक समाधान के लिए निचली अदालतों में राहत के लिए जा सकते हैं। जस्टिस चंद्रचूड ने अपना अहसमति का जो फैसला दिया है, वह इस मामले में बहुत मजबूत है। इसकी धमक निजली अदालतों में ही सुनाई देनी चाहिए। हमारे पास पर्याप्त समय है इंसाफ के लिए अपील करने की।”

देश की पूर्व एडिशनल सॉलिसीटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने इस फैसले पर कहा, “सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा ने अपनी विदाई से पहले अपनी छवि पर धब्बा लगाया है। इंसाफ को बांटा नहीं जा सकता– जेंडर जस्टिस के न्याय और मानवाधिकार के मामले में विपरीत रुख सही नहीं है।”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से राहत की आस में दिल्ली और फरीदाबाद से गिरफ्तार किये गए मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज की जमानत के लिए उनके वकीलों ने दिल्ली हाई कोर्ट और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी। जहां से उनकी गिरफ्तारी पर रोक का फैसला मिल गया था, लेकिन इसी बीच पांच वरिष्ठ नागरिकों ने इन सभी की गिरफ्तारी के खिलाफ रोक लगाने और जांच के लिए एसआईटी के गठन की माग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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Published: 28 Sep 2018, 3:10 PM