भीमा कोरेगांव केस: जज साहब को ‘वॉर एंड पीस’ लगती है आपत्तिजनक, लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं तस्वीरें

बॉम्बे हाई कोर्ट में भीमा कोरेगांव केस की सुनवाई के दौरान पुणे पुलिस ने दावा किया कि ‘वार एंड पीस’ किताब एक साल पहले मुंबई में वर्नोन गोन्जाल्विस के घर पर छापे के दौरान जब्त भड़काऊ सबूतों में से एक है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

बॉम्बे हाई कोर्ट में बुधवार को भीमा कोरेगांव मामले में वर्नोन गोन्जाल्विस समेत इस मामले के दूसरे आरोपियों की जमानत पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने इस मामले के आरोपी गोन्जाल्विस से कई ऐसे सवाल पूछे जो चर्चा के विषय बने हुए हैं। जज ने गोन्जाल्विस से कहा कि यह बताइए कि आपने, अपने घर पर लियो टॉल्सटाय की किताब ‘वार एंड पीस' और कुछ सीडी जैसी आपत्तिजनक सामग्री क्यों रखी थी। कोर्ट ने कहा ऐसी किताबें और सीडी पहली नजर में इस बात के संकेत देते हैं कि वे राज्य के खिलाफ कुछ सामग्री रखते थे। जज कोतवाल ने कहा कि सीडी ‘राज्य दमन विरोधी’ का नाम ही अपने आप में यह बताती है कि इसमें राज्य के खिलाफ कुछ है। जज ने कहा कि वहीं ‘वार एंड पीस' दूसरे देश में युद्ध के बारे में है।

बॉम्बे हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान पुणे पुलिस ने दावा किया कि यह एक साल पहले मुंबई में गोन्जाल्विस के घर पर छापे के दौरान जब्त भड़काऊ सबूतों में से एक है। पुणे पुलिस ने इस मामले में कई कार्यकर्ताओं के आवासों और दफ्तरों पर छापे मारे थे और गोन्जाल्विस को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।


जज साहब की इस टिप्पणी की के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जा रहा है, जिसमें पीएम मोदी ‘वार एंड पीस' पढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि अगर इस उपन्यास को घर पर रखना और उसे पढ़ना ठीक नहीं है तो आखिर पीएम मोदी इस किताब को क्यों वीडियो में पढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।

गौरतलब है कि ‘वॉर एंड पीस’ रूस के मशहूर लेखक लियो टॉल्सटाय का उपन्यास है। कोर्ट ने गोन्जाल्विस घर से जब्त जिन पुस्तकों और सीडी का सुनवाई के दौरान जिक्र किया, उनमें कबीर कला मंच द्वारा जारी सीडी ‘राज्य दमन विरोधी’, मार्क्सिस्ट आर्काइव्स, जय भीमा कॉमरेड और लियो टॉलस्टाय की साहित्यिक कृति ‘वार एंड पीस', ‘अंडरस्टैंडिंग माओइस्ट', ‘आरसीपी रीव्यू' और नेशनल स्टडी सर्किल द्वारा जारी परिपत्र की प्रतियां भी शामिल हैं।

वहीं, इस मामले की सुनवाई के दौरान गोन्जाल्विस के वकील मिहिर देसाई ने कोर्ट में कहा कि पुणे पुलिस ने उनके खिलाफ पूरे मामले को कुछ ई-मेल और पत्रों के आधार पर तैयार किया जो अन्य लोगों के कंप्यूटर से मिले थे। देसाई ने अपनी दलील में कहा कि इनमें से एक भी पत्र या ईमेल गोन्जाल्विस ने नहीं लिखा या उन्हें संबोधित नहीं था। इसलिए उनके खिलाफ किसी ठोस सबूत के अभाव में गोन्जाल्विस को जमानत से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।

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