भीमा कोरेगांव केस: SC ने आनंद तेलतुंबड़े की जमानत को रखा बरकरार, NIA की याचिका खारिज की, लगाई फटकार

भीमा कोरेगांव हिंसा में आरोपी आनंद तेलतुंबडे को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार किया हैं और तेलतुंबडे की जमानत बरकरार रहेगी। वहीं, कोर्ट ने NIA को फटकार लगाई है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी आनंद तेलतुंबड़े की जमानत रद्द करने की मांग वाली एनआईए की याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की खंडपीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने तेलतुंबड़े को जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की याचिका खारिज कर दी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट के अवलोकन को मुकदमे में अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जाएगा।

तेलतुंबड़े का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ के समक्ष दलील दी कि हाई कोर्ट पहले ही इस मामले को देख चुका है और इस मामले में तेलतुंबड़े के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने तेलतुंबड़े को जमानत दे दी। सिब्बल ने कहा कि उनका मुवक्किल एल्गार परिषद के कार्यक्रम में भी नहीं था और एनआईए ने यह दिखाने के लिए कोई भी सबूत पेश नहीं किया कि तेलतुंबड़े वहां थे। हाई कोर्ट का कहना है कि आतंकवादी गतिविधि से जोड़ने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। सिब्बल ने कहा कि वे मेरे छोटे भाई का जिक्र कर रहे हैं और मैं 30 साल से अपने छोटे भाई से अलग हूं।


पीठ ने एनआईए के वकील से पूछा कि तेलतुंबड़े की क्या भूमिका है? एनआईए का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यूएपीए कानून के तहत यह आवश्यक नहीं है कि आतंकवादी हमला हो तभी कोई केस बनेगा। प्रतिबंधित संगठन के लिए काम करना भी यूएपीए के तहत आता है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, आईआईटी मद्रास के कार्यक्रम में यह आरोप लगाया गया कि वह दलितों को संगठित कर रहे हैं। क्या दलितों को संगठित करना प्रतिबंधित गतिविधि है? भाटी ने जवाब दिया, नहीं, मेरे कहने का मतलब यह नहीं था, वह एक प्रोफेसर हैं और वह जो कुछ भी कहना चाहते हैं, कह सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अदालत को सीपीआई (एम) के काम करने के तरीके के बड़े कैनवास को देखना चाहिए और वे दिखा सकते हैं कि वह विचारधारा के प्रचार, आयोजन, फंड ट्रांसफर आदि में संगठन से जुड़ा हुआ है। विस्तृत दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह एनआईए की याचिका खारिज कर रही है।

इससे पहले न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव ने 2021 में दायर तेलतुंबड़े की जमानत याचिका मंजूर कर ली थी, जिसमें विशेष एनआईए अदालत के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। पिछले साल जुलाई में उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी गई थी।

हालांकि, हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अपील की अनुमति देने के लिए एक सप्ताह के लिए जमानत आदेश पर रोक लगा दी।

वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर के बहनोई तेलतुंबड़े (72) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अप्रैल 2020 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।


एनआईए ने तेलतुंबड़े पर 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद के संयोजक होने का आरोप लगाया था, जहां उग्र भाषण दिए गए थे, जिसके कारण 1 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव में एक जातिगत हिंसा हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।

एनआईए ने तेलतुंबड़े पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का सक्रिय सदस्य होने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में शामिल होने का आरोप लगाया। एनआईए के विशेष लोक अभियोजक संदेश पाटिल ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध करते हुए तेलतुंबड़े पर अपने भाई, दिवंगत कार्यकर्ता मिलिंद तेलतुंबड़े को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का भी आरोप लगाया।

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