नीतीश राज में कोरोना जांच-इलाज राम भरोसे, फिर भी केंद्र ने बिहार को महामारी नियंत्रण में बता दिया ‘मॉडल स्टेट’

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम के जाने के बाद 21 बिहार स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने दावा किया कि केंद्र बिहार को मॉडल और संक्रमण रोकने में काफी हद तक कामयाब माना। लेकिन जमीनी हालात और आंकड़े बताते हैं कि पटना एम्स के डायरेक्टर तक को किसी दूसरे में इलाज कराना पड़ा।

Photo by Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images
Photo by Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images
user

शिशिर

बिहार में कोरोना को लेकर कोई गंभीर नहीं है। सरकारी गंभीरता न होने का खामियाजा आम लोग भुगत रहे हैं। ऐसे में, इस पर नियंत्रण की बात तो भूल ही जाइए।

सरकारी तंत्र इसे लेकर कितना गंभीर है, इसे सुनकर आपको रोना आ सकता है। पत्रकार कुमार सौरव एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल में हैं। जाने-पहचाने चेहरे हैं इसलिए शासन-प्रशासन के लोग उन्हें जानते- पहचानते हैं। अभी 20 जुलाई को उन्होंने पटना के गार्डिनर रोड अस्पताल में कोरोना जांच के लिए फॉर्म भरा। उनके साथ कई अन्य पत्रकार भी थे। सैम्पल लेने की गति काफी धीमी थी। दो घंटे बीत गए। किसी जरूरी खबर को कवर करना था, सो सब बिना सैम्पल दिए ही वहां से निकल लिए। फिर भी, उनकी रिपोर्टआ गई और वह तथा उनके साथी निगेटिव बताए गए हैं। यह जानकारी खुद उन्होंने फेसबुक पर दी है।

लेकिन यह कोई अकेला मामला नहीं है। कटिहार के चार मजदूरों ने जांच के लिए अपने नाम सरकारी रजिस्टर में लिखवाए। पर जांच नहीं हुई तो वे अपने घर चले गए। दूसरे दिन एकाएक एंबुलेंस पहुंची और चारों को पकड़कर यह कहकर भर्ती करा दिया गया कि वे सभी पॉजिटिव हैं।

फिर भी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के नेतृत्व में आई टीम के जाने के बाद 21 जुलाई को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि केंद्रीय टीम ने बिहार को मॉडल और संक्रमण रोकने में काफी हद तक कामयाब माना। यह तब है जब बिहार सरकार के बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) के निदेशक डॉ. एन. आर. बिश्वास को केंद्र सरकार के अस्पताल एम्स, पटना में जाकर कोरोना का इलाज कराना पड़ा। सदर अस्पताल के डॉ. मनोज कुमार राजधानी पटना में कार से अपने भाई को लेकर आईजीआईएमएस, पीएमसीएच, एम्स सहित प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए घूमते रह गए और ऑक्सीजन तक नहीं मिल पाने के कारण उनकी मौत हो गई। बैंक ऑफ इंडिया के कैशियर बिक्रम प्रताप को लेकर भी इसी दिन परिजन घूमते रह गए लेकिन किसी सरकारी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया और आखिरकार, प्राइवेट अस्पताल पहुंचकर उन्होंने दम तोड़ दिया। और, जब राजधानी की यह हालत है तो बाढ़ से घिरे सीमांचल के जिलों की हालत समझी जा सकती है।


15 जुलाई को राज्य के सबसे बड़े अस्पताल के आइसोलेशन में बच्ची से बलात्कार की घटना ने मरीजों की निगरानी को बेपर्दा कर दिया। राज्य सरकार ने काफी पहले राज्य के दूसरे सबसे बड़े सरकारी अस्पताल- एनएमसीएच, को कोविड अस्पताल घोषित कर दिया था। लेकिन जैसे ही संक्रमण की रफ्तार बढ़ी, यह अस्पताल बौना साबित हुआ। संसाधनों की कमी पूरे प्रदेश में जांच की गति को प्रभावित कर रही है। केंद्रीय टीम के आने के ठीक पहले रैपिड एंटीजन किट से जांच शुरू की गई लेकिन इसके लिए भी तैयारी पूरी नहीं की गई। 22 जुलाई तक बारिश में डूबे और बाढ़ से घिरे मुजफ्फरपुर शहर के चारों पीएचसी में टेक्नीशियन नहीं होने के कारण जांच नहीं हो पा रही थी। एक पीएचसी में तो सैंपल लेने आया टेक्नीशियन ही पॉजिटिव निकला, वह भी तब जब खुद दूसरों का सैंपल लेने बैठा और तबीयत खराब लगने पर अपनी जांच कराई।

इसके पहले सैंपल लेकर जांच के लिए ऑटोमैटिक लैब भेजने और रिपोर्ट आने की क्या स्थिति थी, इसे लेकर एक बड़े राष्ट्रीय दैनिक ने कई सारी जानकारी दी। जुलाई के दूसरे हफ्ते तक बिहार में कोरोना से हुई मौतों का अध्ययन करने के बाद उसका निष्कर्ष था कि मृत 125 में से 55 मरीज ऐसे थे जिनकी कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट या तो मृत्यु के बाद आई या रिपोर्ट मिलने की तारीख को ही उनकी मौत हो गई। 45 लोगों में से ज्यादातर इलाज के लिए पटना पहुंच ही नहीं पाए, यानी रिपोर्ट का इंतजार करते रहे, तब तक मौत आ गई। ऐसा नहीं कि जांच की गति तब अच्छी नहीं हो सकती थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबीयत नासाज हुई, तो 4 जुलाई को उनकी जांच हुई और उसी शाम रिपोर्ट भी आ गई जिसमें उन्हें निगेटिव बताया गया था। जबकि मुख्यमंत्री के गृह जिला नालंदा के हिलसा निवासी 60 वर्षीय ओम प्रकाश प्रसाद 27 जून को पटना एम्स में भर्ती हुए, 28 को मौत हो गई और रिपोर्ट आई 1 जुलाई को। एक-दो दिन नहीं, काफी समय तक क्वारंटाइन में रहे कई लोगों की रिपोर्ट भी मौत के बाद आई। सारण के मढ़ौरा निवासी 51 साल के श्री भगवान राय 18 मई को कोलकाता से आकर लक्षणों के साथ सदर अस्पताल पहुंचे। वहां से क्वारंटराइन सेंटर में रहकर 22 मई को पीएमसीएच भी पहुंच गए। लेकिन जांच में पुष्टि 23 मई को मौत हो जाने के बाद की गई। पटेढ़ी बेलसर, वैशाली के 25 वर्षीय राजेश महतो की 21 मई को रिपोर्ट आई लेकिन आशंका के बावजूद समय पर इलाज नहीं मिलने से तंग आकर उसने 20 मई को क्वारंटाइन सेंटर में ही आत्महत्या कर ली थी। पटना के 60 वर्षीय जयप्रकाश 12 जुलाई को ही एनएमसीएच में भर्ती किए गए और उसी दिन मौत हो गई क्योंकि जांच का कोई मजबूत सिस्टम ही नहीं था।


Photo by Parwaz Khan/Hindustan Times via Getty Images
Photo by Parwaz Khan/Hindustan Times via Getty Images

यह हाल तब है जबकि राज्य के अनेक हिस्सों में जांच हो रही है। यह बात दूसरी है कि उन अस्पतालों में इलाज की सुविधा पटना-जैसी नहीं है।

ऐसे में, अब जब राज्य के कई हिस्सों में बाढ़ आई हुई है, सबकुछ भगवान भरोसे ही है। नेपाल से सटे बाढ़ प्रभावित जिलों में इलाज तो नहीं ही है, जांच की रही-सही संभावना भी खत्म होती गई है। सरकार ने लॉकडाउन लगाया हुआ है लेकिन सब जगह सामान्य स्थिति है- बाजारों में भीड़भाड़ वैसे ही है जैसा सामान्य दिनों में होता है। अगर दस फीसदी लोग भी मास्क पहने नजर आएं, तो गनीमत है। वैसे, इनमें भी कई लोग मास्क से मुंह-नाक ढंकने की जगह इसे गले में लटकाए फिर रहे हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia