बिहार में डबल इंजन सरकार ही डुबाने पर तुली है मोदी की आयुष्मान योजना, कोविड के दौर में सिर्फ 22 मरीजों को मिला इसका लाभ

बिहार में यूं तो डबल इंजन की सरकार मानी जाती है, लेकिन नीतीश के राज में मोदी की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना ही डूबने लगी है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ो के मुताबिक कोविड के दौर में पूरे बिहार में सिर्फ 22 लोगों का इलाज ही इस योजना के तहत हुआ।

प्रतीकात्मक फोटो
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शिशिर

हृदय नारायण झा सुरक्षा गार्ड का काम करते हैं। दो साल से पत्नी की बच्चेदानी का ऑपरेशन कराने के लिए परेशान हैं। जिस डॉक्टर के पास जा रहे, कम-से-कम 60-70 हजार का हिसाब बता दिया जा रहा। किसी ने कहा कि आयुष्मान भारत वाले कार्ड से इलाज हो जाएगा। कार्ड निकलवा लीजिए। लेकिन दो साल की दौड़भाग और हर तरह की पैरवी बेकार गई। कार्ड नहीं मिला। पता चला कि वह मधुबनी के हरलाखी में जिस गांव के मूल बाशिंदे हैं, वहां जिन लोगों को इसका लाभ मिल सकता है, उस सूची में उनका नाम नहीं है। नाम जुड़ने का अभियान चलेगा, तभी जुड़ेगा। इससे पत्नी की बीमारी के साथ हृदय नारायण की मानसिक परेशानी भी बढ़ रही है।

बिहार में ऐसे लाखों लोग हैं जो प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत आयुष्मान कार्ड बनवाना चाहते हैं लेकिन दौड़भाग कर थक चुके हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 13 दिसंबर को एक प्रश्न के उत्तर में लोकसभा में खुद भी स्वीकार किया कि आयुष्मान कार्ड से दूर रहने वालों में सबसे ज्यादा परिवार बिहार के हैं।

डबल इंजन वाले नीतीश कुमार के बिहार में ऐसे परिवारों की संख्या 74,89,745 है। वैसे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यूपी में योगी आदित्यनाथ की चुनावी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर तो लगा रहे हैं, पर यह दूसरे नंबर पर है। यहां 59,76,577 परिवार के किसी सदस्य के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है। बिहार में तो 71,69,929 आयुष्मान कार्ड ही अब तक जारी हुए हैं, मतलब जितने लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए, उससे लगभग आधे। यह हालत तब है जब योजना के तहत किसी नामांकन या रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं बताई जाती है।

बीमारी की हालत में 5 लाख तक के कवरेज वाली योजना का बिहार में हश्र इतना बुरा है कि स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के कहने पर भी नाम नहीं जुड़ पाता है। खगड़िया के इमली निवासी रामनंदन यादव कहते हैं कि ‘जब नामांकन या रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं बताई जा रही तो सहज रूप से इसका लाभ मिलना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि लोग आधार कार्ड, वोटर कार्ड, मुखिया की संस्तुति लेकर आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी ये मामले आते रहते हैं और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय की तो पैरवी पर भी नाम नहीं जुड़ने के कई केस सामने आ चुके हैं।’

कार्ड न बनने के साथ एक बड़ा संकट यह भी रहा कि बिहार के अस्पतालों में कोरोना महामारी के दौरान भी लोगों को इसका फायदा नहीं मिला। लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज के अभाव में मरे और प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोना के इलाज में आयुष्मान कार्ड को आमतौर पर स्वीकार ही नहीं किया। आयुष्मान कार्ड से इलाज नहीं करने की खबरें कोरोना के पीक टाइम पर आती रहती थीं, अब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े भी इस सच को छिपा नहीं पा रहे। मंत्रालय के अनुसार, मार्च, 2020 से 14 नवंबर, 2021 तक देश भर में आयुष्मान कार्ड धारक 8 लाख 29 हजार 826 कोरोना मरीज अस्पतालों में भर्ती हुए जिनमें बिहार के महज 22 मरीज थे।


सोशल एक्टिविस्ट विनोद कुमार कहते हैं कि ‘जहां आंध्र प्रदेश-जैसे राज्य में दो लाख से ज्यादा लोगों का आयुष्मान कार्ड से कोरोना का इलाज हुआ, वहीं बिहार में महज 22 का आंकड़ा इस बात की भी गवाही दे रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की बहुप्रचारित योजना को ठीक ढंग से लागू कराने को लेकर बिहार की एनडीए सरकार प्रतिबद्ध नहीं है। सरकार चाहती तो बिहार अभी आयुष्मान कार्ड बनवाने में पिछड़ने वाला सबसे बड़ा राज्य भी नहीं होता और यहां के कार्ड धारकों को अस्पताल से लौटाने का केस भी नहीं होता।’

दरअसल, इस मामले में नीतीश सरकार अपना बचाव करने के लिए यह कहने से पीछे नहीं हटती कि बिहार में शुरुआती दौर के बाद कोरोना जांच और इलाज सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दिया जिसके कारण लोगों को आयुष्मान भारत कार्ड की जरूरत ही नहीं पड़ी।

14 दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई योजनाओं के उद्घाटन के समय यह कहने तक में हिचक नहीं दिखाई कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में प्राइवेट-जैसी तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं। जबकि हकीकत यह है कि आज भी हार्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज की आशंका सही है या गलत, इसकी पुष्टि भी बिहार के आधे से ज्यादा जिलों के सरकारीअस्पताल नहीं कर सकते। शेखपुरा में कार्यरत सरकारी स्कूल के शिक्षक की पत्नी भावना ने बताया कि कैसे हार्ट अटैक की आशंका तो डॉक्टरों ने बताई लेकिन उन लोगों ने ईसीजी-जैसी छोटी जांच या ट्रॉप टी-जैसे किट से अटैक जांचने तक की व्यवस्था नहीं होने की बात कह दी।

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