आखिर क्यों न बदतर हो बिहार में सरकारी स्कूलों की हालत, जब नीतीश सरकार की आंखों से सामने हो रहा है फर्जीवाड़ा

बिहार में नियोजित शिक्षकों की पढ़ाई के स्तर और सामान्य ज्ञान के वीडियो वायरल होते रहते हैं। इससे बचने के लिए हर जिले में लगभग 20 फीसदी शिक्षक किसी तरह जुगाड़ कर अपनी ड्यूटी स्कूल से बाहर के काम में लगवाए बैठे हैं। इसी वजह से मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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शिशिर

राजीव (बदला हुआ नाम) को अब भी लोग टोकते हैं- कैसे हैं ‘गुरूजी’? झारखंड सीमा से सटे बिहार के जमुई जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर एक गांव के रहने वाले राजीव को और कुछ पता हो न हो, गुरु और गुरू का अंतर पता चल चुका है। नीतीश कुमार के फॉर्मूले पर नियोजित शिक्षक थे राजीव। कुछ जुगाड़, कुछ खर्च कर पंचायत शिक्षक बन बैठे थे। उनकी तरह हजारों शिक्षकों का मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो सरकार ने मौका दिया कि जिनके प्रमाणपत्र फर्जी हैं, वे खुद को नियोजन-मुक्त करा लें, वरना कार्रवाई होगी। राजीव ने अपने को नियोजन-मुक्त करा लिया। इसी कारण खबरों में रहे थे राजीव। शीर्षक में लिखा था- गुरूघंटाल। अब एक बार फिर हाईकोर्ट सक्रिय है। बार-बार सरकारी धमकी के बावजूद अब भी 2 हजार शिक्षकों ने प्रमाणपत्र अपलोड नहीं किए हैं। वैसे, नियोजन प्रक्रिया फिर चल रही है और ऐसी ही धांधली के कारण खबरें फिर आ रही हैं।

दरअसल, पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर नीतीश कुमार ने कहा था कि बजट की कमी के कारण शिक्षकों को सरकारी वेतनमान नहीं दिया जा सकता। इस वजह से कॉन्ट्रैक्ट पर शिक्षक रखे जाने लगे। नियोजन का अधिकार पंचायत प्रतिनिधियों को दिया गया। नियोजन इकाई नगर, पंचायत, प्रखंड आदि को बना दिया गया। बिहार में पहली बार पंचायत स्तर तक ऐसे अधिकार पहुंचे। इस पर सरकार की खूब वाहवाही हुई लेकिन उससे ज्यादा कमाई की चर्चा हुई। इन नियोजित शिक्षकों की पढ़ाई के स्तर और सामान्य ज्ञान के वीडियो वायरल होते रहते हैं। इससे बचने के लिए हर जिले में लगभग 20 फीसदी शिक्षक किसी तरह जुगाड़ कर अपनी ड्यूटी स्कूल से बाहर प्रखंड-अनुमंडल के काम में लगवाए बैठे हैं। इसी वजह से कुछ लोगों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सरकार ने इस पर ‘जाली’ प्रमाण पत्र वालों को अपने को रिलीव कराने का मौका दिया है।


अब 94 हजार और शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है। लेकिन इस बार तो नियुक्तियों के साथ-साथ ही गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं। इसमें सच्चाई है, तब ही तो 15 जुलाई तक शिक्षा मंत्री के स्तर पर ऐसे 400 नियोजन इकाइयों की प्रक्रिया रद्द की जा चुकी है। वैसे, इस बार नियोजन प्रक्रिया खत्म होते-होते सरकारी स्कूलों से 25 हजार शिक्षक रिटायर हो जाएंगे और मध्यविद्यालय से उच्च या उच्चतर के रूप में अपग्रेड हुए स्कूलों की जरूरत को मिलाकर करीब 50 हजार शिक्षकों के पद खाली नजर आएंगे।

अभी हाल ही में पटना हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि कितने आईएएस-आईपीएस के बच्चे बिहार के सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं। जवाब हरेक को पता है- शून्य। अगस्त के पहले हफ्ते तक तो सरकारी आंकड़ा भी यही है। फिर भी, मुख्य सचिव तक समीक्षा कर रहे हैं। वैसे, लोग यह भी कह रहे कि आईएएस- आईपीएस तो छोड़िए, पता यह करवाना चाहिए कि सरकारी स्कूलों के कितने शिक्षक अपने बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला कराते हैं। इससे कम-से-कम यह तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अपने स्कूलों और पढ़ाई-लिखाई पर कितना भरोसा है।

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