बिहारः सुशासन राज का ‘तुगलकी’ फरमान, सरकारी कर्मियों को साल में 2 बार साबित करना होगा कार्यक्षमता

बिहार सरकार अब सरकारी सेवकों की सत्यनिष्ठा, कार्य दक्षता और आचरण की समीक्षा करेगी। इसके लिए समिति गठित की गई है, जो 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के सरकारी सेवकों के कामकाज की समीक्षा करेगी और खरा नहीं उतरने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की अनुशंसा करेगी।

फाइल फोटोः ANI
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नवजीवन डेस्क

बिहार में अगर आप सरकारी नौकरी कर रहे हैं और काम में ढिलाई बरती तो अब आपको नौकरी से हाथ भी धोना पड़ सकता है। बिहार सरकार अब सरकारी सेवकों की सत्यनिष्ठा, कार्य दक्षता और आचरण की समीक्षा करेगी। इसके लिए समिति गठित की गई है, जो 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के सरकारी सेवकों के कामकाज की समीक्षा करेगी।

बिहार सरकार के समान्य प्रशासन विभाग ने 50 वर्ष से ऊपर के सरकारी सेवकों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए पिछले वर्ष 23 जुलाई को एक संकल्प जारी किया था। इसके तहत इस उम्र सीमा में आने वाले वैसे सरकारी सेवक, जिनकी कार्यदक्षता या आचार ऐसा नहीं है, जिससे कि उन्हें सेवा में बनाए रखना लोकहित में हो, उनके कार्यों की समीक्षा कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की अनुशंसा करनी है।

इसी संकल्प के मद्देनजर समिति का गठन किया गया है। गृह विभाग (आरक्षी शाखा) द्वारा जारी आदेश में समूह 'क' के सेवकों के कार्यकलाप की समीक्षा के लिए बनी समिति के अध्यक्ष गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव होंगे। इस समिति में बतौर सदस्य विभागीय सचिव, विशेष सचिव (आईपीएस), गृह विभाग और विभागीय मुख्य निगरानी पदाधिकारी होंगे।

इसी तरह समूह 'ख,' 'ग' और अवगीर्कृत सेवकों के कामकाज की समीक्षा के लिए अलग समिति बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष गृह विभाग के सचिव को बनाया गया है। सरकारी सेवकों की कार्यदक्षता की समीक्षा प्रत्येक साल दो बार की जाएगी। अगर वे ऐसा करने में सक्षम नहीं रहे तो सरकार उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेज देगी।

इधर, मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने सरकार के इस आदेश पर कड़ा विरोध जताया है। आरजेडी इसे तुगलकी फरमान बता रहा है। आरजेडी के वरिष्ठ नेता मनोज कुमार झा ने कहा, “यह उस राज्य का तुगलकी फरमान है, जहां कि एक बड़ी आबादी को 40 से 45 वर्ष की उम्र में एक अदद नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है और हां, 'अक्षमता' अगर पैमाना हो तो 'शासनादेश' से उत्पन्न इस सरकार को ही रिटायर हो जाना चाहिए।”

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