बिहार: प्रशांत किशोर के कंधे पर बंदूक रख नीतीश खेल रहे ‘डबल गेम’, बीजेपी हो रही हलकान

बिहार में एक बार फिर, विधानसभा चुनाव करीब आते देख वही स्थितियां उभर रही हैं, जो लोकसभा चुनाव से पहले सामने आई थीं। पीके मुखर हैं और जेडीयू का कोई नेता उनका मुंह बंद कराने का प्रयास करता भी नहीं दिख रहा।

फोटो : सोशल मीडिया
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शिशिर

बीजेपी अब सही में परेशान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भले ही बिहार को लेकर खुद को निश्चिंत दिखा रहे हों लेकिन बिहार को करीब से जानने-समझने वाले बीजेपी नेता और कार्यकर्ता अब पिछले चुनाव से पहले बनी स्थितियों और ताजा परिस्थितियों का मिलान कर हैरान हैं, परेशान भी। परेशानी फिर वही प्रशांत किशोर हैं। वही पीके जो मोदी के नाम पर सामने आए और फिर उन्हें ही बिहार में बुरी तरह परेशान किया। इसलिए, बिहार बीजेपी के नेता परेशान हैं।

पीके एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे हैं जो प्रेशर पॉलिटिक्स का जाना-पहचाना डोज है। बिहार के संदर्भ में यह पुराना है- बड़ा भाई वाला। इसलिए भी बीजेपी में परेशानी छा गई है। बस, इस बार खासियत यह है कि पीके ने बिहार बीजेपी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संभवतः इकलौते समर्थक और प्रदेश के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी समेट दिया है। पीके ने 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू को लोकसभा चुनाव की तरह ही बड़े भाई की भूमिका देने की पैरवी की है और यह भी कह दिया कि सुशील कुमार मोदी परिस्थितिवश उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। सीधे शब्दों में पीके ने नहीं कहा लेकिन बीजेपी वाले भी मान रहे हैं किउपमुख्यमंत्री मोदी को इसी बहाने मौका परस्तकहा जा रहा है। वैसे, इस मामले पर भड़क रही आग पर नीतीश ने पानी डालने की कोशिश की है। पर धुआं तो उठ ही रहा है।

हकीकत यह है कि पीके जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और वह पार्टी के तमाम फ्रंट पर फिर सक्रिय हैं। लोकसभा चुनाव के पहले भी अचानक इसी तरह पीके सक्रिय हुए थे। अपने करीबी राष्ट्रीय महासचिव आर सी पी सिंह को कुछ दिनों के लिए साइड करते हुए नीतीश ने प्रेशर पॉलिटिक्स में पीके को प्यादे के रूप में उतारा था। पीके ने ही बीजेपी पर चैतरफा दबाव बनाया और बिहार की 40 में से 34 सीटें बीजेपी- जेडीययू में बराबर-बराबर बांटने का फैसला करवा कर ही दम लिया। 32 सीटों से सीधे 17 पर बीजेपी को उतारने में जैसे ही सफल हो गए, फिर आर सी पी एक्टिव हुए और पीके किनारे लग गए।


एक बार फिर, विधानसभा चुनाव करीब आते देख वही स्थितियां उभर रही हैं। पीके मुखर हैं और जेडीयू का कोई उनके मुंह को बंद कराने का प्रयास करता भी नहीं दिख रहा। मंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता श्याम रजक से पीके के ताजा बयान पर जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहाः “पार्टी में हरेक को अपनी बात रखने का हक है। विधानसभा चुनाव में जेडीयू की बड़ी भूमिका होगी और नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे, तो बड़े-छोटे भाई पर किसी सवाल पर क्या बात की जाए।”

बीजेपी कोटे से मंत्री नंद किशोर यादव हों या सांसद राम कृपाल यादव, कोई पीके को औपचारिक रूप से महत्व देने के लिए तैयार नहीं है लेकिन सारे इस आशंका से जरूर सहमे हैं कि नीतीश के प्रेशर पॉलिटिक्स में फिर केंद्रीय नेतृत्व कोई बड़ा समझौता न कर ले। ऐसे किसी बड़े समझौते से बिहार बीजेपी के बड़े नेता इसलिए दूर रहना चाहते हैं क्योंकि सभी कहते हैं कि उनके पास कार्यकर्ता स्तर से अपने दम पर विधानसभा चुनाव में उतरने का दबाव है। यह स्थिति लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से बनी थी लेकिन झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी के नेता इस तरह की स्थिति से दूर रहने में ही भलाई समझ रहे हैं।

झारखंड का परिणाम देखने के बाद बीजेपी के अंदर से जैसे ही ऐसी आवाज उठनी बंद हुई, जेडीयू की ओर से बयानबाजी तेज हो गई। यह तेजी पीके में सबसे ज्यादा दिख रही है और बीजेपी के तमाम बड़े नेता भले बोल नहीं रहे लेकिन मान जरूर रहे कि यह नीतीश का डबल गेम है।


डबल फायदे में जेडीयू

बीजेपी से पहले ही कहलवा लिया गया है कि नीतीश ही फिर मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। अब बात, बस, दोबारा बिहार विधानसभा में ज्यादा सीटों के साथ बड़ी पार्टी के रूप में जमने की है। इसलिए, जेडीयू अब बीजेपी को सीटों के लिए मजबूरी की स्थिति में ले जाना चाह रही। एक इच्छा पूरी है और दूसरी के लिए एक तरफ पीके लग गए हैं, तो नीतीश चुप्पी मारे बैठे हैं। झारखंड परिणाम के साथ यह स्थितियां तेजी से बनी हैं और बीजेपी सीधे तौर पर नुकसान झेलने की तैयारी में है। यह भी तय है कि अब तक नीतीश के लिए आंखें मूंदने के कारण चर्चित रहे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी इस मार-काट में चोटिल होने वाले हैं।

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