बिहार में शराबबंदी से क्या महिला हिंसा में आई कमी, जानें क्या है सच्चाई?

बिहार में शराबबंदी कानून को सख्ती से पालन करवाने को लेकर पुलिस महकमा दिन रात प्रयासरत है वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं समाज सुधार अभियान पर निकल रहे हैं। इस बीच, पुलिस का दावा है कि राज्य में शराबबंदी के बाद महिला हिंसा में कमी आई है।

फोटो: IANS
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मनोज पाठक, IANS

बिहार में शराबबंदी कानून को सख्ती से पालन करवाने को लेकर पुलिस महकमा दिन रात प्रयासरत है वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं समाज सुधार अभियान पर निकल रहे हैं। इस बीच, पुलिस का दावा है कि राज्य में शराबबंदी के बाद महिला हिंसा में कमी आई है। पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी आंकडे भी इसकी पुष्टि करते हैं। विपक्ष हालांकि इसे सही नहीं मानता है।

पुलिस मुख्यालय के आंकडों पर गौर करें तो राज्य में दुष्कर्म, छेड़खानी, दहेज हत्या, दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की घटनाओं में कमी आ रही है। आंकडों के मुताबिक, राज्य के विभिन्न थानों में वर्ष 2017 में दुष्कर्म के 1199 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2018 में 1475 मामले सामने आए थे।

इसके बाद दुष्कर्म की घटनाओं में कमी आई है। पुलिस मुख्यालय का दावा है कि वर्ष 2019 में दुष्कर्म के 1450 मामले प्रकाश में आए जबकि 2020 में 1438 तथा इस वर्ष अक्टूबर महीने तक मात्र 1274 मामले ही सामने आए हैं।

इसी तरह छेडखानी के मामलों में भी कमी दर्ज की जा रही है। पुलिस मुख्यालय के आंकडों को अगर सही माना जाए तो राज्य में वर्ष 2017 में कुल 1814 छेड़खानी के मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2018 में छेडखानी के मामलों में अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई और यह 501 तक पहुंच गई। इसी तरह वर्ष 2019 में छेडखानी के 486 मामले दर्ज किए गए थे जबकि इस साल अक्टूबर तक 457 मामले दर्ज किए गए हैं।


घरेलू हिंसा में भी पिछले पांच सालों में कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2017 में राज्य के विभिन्न थानों में घरेलू हिंसा के कुल 4021 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2018 में घरेलू हिंसा के मामले कम होकर 3958 तक पहुंच गए। वर्ष 2019 में राज्यभर में घरेलू हिंसा के 4723 मामले दर्ज हुए थे जबकि एक वर्ष बाद यानी 2020 में घरेलू हिंसा के कुल 3946 मामले सामने आए। इस साल अक्टूबर महीने तक राज्य के विभिन्न थानों में घरेलू हिंसा के 2207 मामले की दर्ज किए गए हैं।

पुलिस मुख्यालय के आंकडे राज्य में दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मामलों में भी कमी होने के दावे करते हैं। पुलिस के आंकडों के मुताबिक, दहेज उत्पीड़न के 2017 में कुल 4873 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए थे जबकि एक वर्ष बाद यानी 2018 में 3387 मामले ही प्रकाश में आए। इसी तरह वर्ष 2020 में दहेज उत्पीड़न के कुल 2686 मामले ही सामने आए थे जबकि इस साल अक्टूबर तक 2967 मामले सामने आ चुके हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक जरूर है लेकिन वर्ष 2017 की तुलना में कम है।

इसी तरह पुलिस मुख्यालय का दावा है कि शराबबंदी के बाद से दहेज हत्या के मामलों में भी कमी आई है। राज्य में वर्ष 2017 में दहेज हत्या के 1081 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए थे जबकि 2020 में दहेज हत्या के कुल 1045 मामले ही सामने आए। इस वर्ष अक्टूबर तक 828 दहेज हत्या के मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए हैं।

इधर, विपक्ष इन आंकडों को नकार रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रवक्ता मृतयुंजय तिवारी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि आखिर शराबबंदी है कहां? शराब की तो होम डिलिवरी हो रही है। उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार आंकडों की बाजीगिरी प्रारंभ से करती आ रही है। उन्होंने कहा कि कई मामले तो थाना में दर्ज ही नहीं किए जाते। प्राािमिकी दर्ज करने आने वाले लोगांे के मामले दर्ज तक नहीं किए जाते। उन्होंने कहा कि अपराध के मामले में बिहार कहां पहुंच गया है, यह केंद्र सरकार की एजेंसियों की रिपोर्ट से बराबर स्पष्ट होता है।

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Published: 22 Dec 2021, 1:31 PM