बिहार SIR: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, सिंघवी और ADR ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर उठाए सवाल, कल ECI देगा जवाब

प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से ड्राफ्ट रोल का खोज योग्य संस्करण क्यों हटाया। उन्होंने कहा कि आयोग ने यह काम राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले ही दिन किया, जिसमें उन्होंने मतदाता सूची में हेराफेरी का आरोप लगाया था।

बिहार SIR: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, सिंघवी और ADR ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर उठाए सवाल, कल ECI देगा जवाब
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नवजीवन डेस्क

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ याचिकाओं पर बुधवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रही। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। दोनों ने आयोग के 24 जून 2025 के आदेश को 'मनमाना' और 'लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने वाला' करार दिया।

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है कि बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना किसी सूचना, दस्तावेज या उचित प्रक्रिया के मतदाता सूची से हटा दिए गए। उन्होंने बताया कि आयोग ने दावा किया कि इनमें से कई लाख लोग मृत हैं, कई लाख विस्थापित हैं, और कुछ लाख डुप्लिकेट हैं। लेकिन चौंकाने वाला खुलासा यह है कि कुछ लोग, जिन्हें मृत बताया गया, जीवित हैं और अदालत में पेश भी हुए। कल दो लोग इसी अदालत में पेश भी हुए थे।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के नाम हटाने के अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे रहा है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। नाम हटाने की प्रक्रिया जटिल है और आयोग ने इसका पालन नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र को इस प्रक्रिया से छूट दी गई, जबकि बिहार और अन्य राज्यों में इसे लागू किया गया। मैं यह नहीं कह रहा कि उन्हें बंगाल को कम समय देना चाहिए। मैं बस इतना कह रहा हूं कि एसआईआर के लिए बिहार को पर्याप्त समय देना चाहिए।


एडीआर की ओर से पेश गोपाल शंकर नारायण ने बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में भी बिना किसी परामर्श के प्रक्रिया शुरू कर रहा है। मतदाता सूची में शामिल होने का अधिकार संवैधानिक है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 के तहत सुरक्षित है।"

नारायण ने तर्क दिया कि आयोग ने एक 'मनगढ़ंत दस्तावेज' की मांग करके 8 करोड़ लोगों पर बोझ डाला, जिसमें नागरिकता और माता-पिता की नागरिकता साबित करने की शर्तें शामिल हैं। यहां तक कि अगर मैं जेल में भी हूं, तो भी मुझे मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। संसद ने यह अधिकार सुरक्षित किया है। नारायण ने सवाल किया कि क्या आयोग को 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाकर इस तरह की कवायद करने का अधिकार है। उन्होंने इसे अभूतपूर्व और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया।

उन्होंने कहा, "मतदाता सूची एक बार निर्धारित होने के बाद स्थायी होती है। आयोग इसे मनमाने ढंग से नहीं बदल सकता। अगर ऐसा होने दिया गया, तो इसका अंत कहां होगा? चुनाव आयोग ने बड़े पैमाने पर लोगों को मतदान से बाहर कर दिया है। मतदान मेरा एक अभिन्न अधिकार है। भारत को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर गर्व है। क्या एक संरक्षक हमारे साथ इस तरह खिलवाड़ करेगा? चुनाव आयोग ऐसा नहीं कर सकता। उसे ऐसा करने की इजाजत किसने दी?"

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से ड्राफ्ट रोल का खोज योग्य संस्करण क्यों हटा दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने यह काम राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले ही दिन किया, जिसमें उन्होंने मतदाता सूची में हेराफेरी का आरोप लगाया था। उन्होंने यह भी मांग की कि चुनाव आयोग उन 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित करे जिन्हें सूची से हटा दिया गया था और साथ ही इस चूक के कारण भी बताए।


भूषण ने कहा, "उनका कहना है कि उनके पास नाम हटाने के सटीक कारण हैं, फिर उन्हें वेबसाइट पर क्यों नहीं होना चाहिए? यह दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाता है।" उन्होंने चुनाव आयोग को ड्राफ्ट से बाहर किए गए लोगों के नाम प्रकाशित करने, वेबसाइट पर ड्राफ्ट सूची को खोज योग्य बनाने, बीएलओ द्वारा अनुशंसित/अनुशंसित नहीं किए गए लोगों के नाम और नाम हटाने के कारण बताने का अंतरिम निर्देश देने की मांग की।

पीठ ने अंत में वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत, कल्याण बनर्जी और पीसी सेन की भी दलीलों संक्षिप्त रूप से सुनीं। न्यायालय कल चुनाव आयोग की दलीलें सुनेगा। इससे एक दिन पहले पहले मंगलवार को पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा की ओर से), वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव की दलीलें सुनी थीं।