बिहारः लॉकडाउन में कैसे हो ई-क्लासेस से पढ़ाई, सरकारी स्कूल वाले ही पूछ रहे- होता क्या है?

यूनेस्को ने भारत जैसे ज्यादातर देशों में कोरोना संकट के कारण स्कूलों में भारी ड्रॉपआउट की आशंका जताई है। बिहार के हालात बताते हैं कि बुरी स्थिति के लिए जमीन तैयार हो चुकी है। राज्य में बच्चे क्या ड्रॉपआउट होंगे, पूरी शिक्षा व्यवस्था ही ड्रॉप की कगार पर है।

फाइल फोटो
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शिशिर

लॉकडाउन में कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी सरकार की घोषणा के बाद बच्चे पिछली कक्षा से नई कक्षा में बिना परीक्षा आ गए। लेकिन अब, उन्हें घर पर पढ़ने के लिए भी किताबें नहीं हैं। सरकारी या प्राइवेट- किसी के पास नहीं। प्राइवेट वाले आधा अप्रैल बीतने के बाद छटपटा भी रहे हैं, लेकिन सरकारी चिंता तो दूर-दूर तक नहीं दिख रही। इस बार तो सरकारी स्कूलों में आठवीं तक के बच्चों को फ्री किताब मिलने की कोई संभावना ही नहीं दिख रही है।

अब तक के जो हाल हैं, उससे लगता नहीं कि जुलाई से पहले स्कूल खोलने की बात भी होगी, लेकिन सरकारी स्कूल खुलते-खुलते, जुलाई-सितंबर भी हो जाए, तो आश्चर्य नहीं। वजह भी है। ज्यादातर सरकारी स्कूलों को कोरोना के क्वारंटाइन सेंटर के रूप में बदल दिया गया है। पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, बेगूसराय- जैसे सभी बड़े शहरों के कुछ सरकारी स्कूलों को छोड़ दें तो लगभग हर जिला मुख्यालय के ज्यादातर स्कूल अभी क्वारंटाइन सेंटर बने हुए हैं। पंचायत स्तर तक के तो लगभग सभी विद्यालयों का यही हाल है।

इनमें से बहुत सारे स्कूलों में किसी संदिग्ध को अप्रैल के दूसरे हफ्ते में भी नहीं रखा गया है, लेकिन कोविड-19 का प्रकोप थोड़ा भी शांत होने बाद जब स्कूल खोलने की बात होगी, सभी स्कूलों को सैनेटाइज कराना होगा। ऐसा कर भी दिया गया, तो लोग तुरंत इन्हें संक्रमण मुक्त मानकर बच्चों को भेजने लगेंगे, यह बात अभी ही नहीं पच रही है। लखीसराय में नियोजित संगीत शिक्षक श्रवण कुमार वर्मा कहते हैं कि कोरोना के डर के कारण जब टीचर ही स्कूलों में तुरंत जाना नहीं चाहेंगे तो बच्चों के अभिभावकों को समझाना भी एक बड़ा टास्क होगा।

वैसे, यह सब तो बाद की बात है। सरकारी स्कूलों में अभी ही कुछ नहीं हो रहा है। इन स्कूलों के नियोजित शिक्षक हड़ताल पर हैं। परीक्षा परिणाम और प्रतिभाशाली बच्चों के लिए चर्चित छपरा के बी. सेमिनरी उच्च विद्यालय के प्राचार्य मधेश्वर राय कहते हैं कि हमारे 40 शिक्षकों में 35 तो नियोजित वाले ही हैं और यह पूरे राज्य में फरवरी अंत से हड़ताल पर हैं। कब लौटेंगे, पता नहीं!

वहीं 8वीं तक के बच्चों को सरकारी किताबें वैसे ही सत्र के अंतिम दो-तीन महीने में नसीब होती थीं, इस बार उसकी भी उम्मीद नहीं के बराबर है। ऐसे में ऑनलाइन या सोशल मीडिया के प्रयोग तो संभव ही नहीं। कंप्यूटर के शिक्षक तो अब किसी स्कूल में हैं ही नहीं। कंप्यूटर बेकार हो चुके हैं। जिन स्कूलों में आईटी के जानकार शिक्षक हैं, वह हड़ताल पर हैं। ऐसे में, स्कूल अपने स्तर पर भी कोई प्रयास नहीं कर सकता। इसके अलावा सरकारी स्कूलों के अधिकांश बच्चों के अभिभावकों के पास स्मार्टफोन की सुविधा नहीं होना भी एक बड़ा अड़ंगा है, जिसके कारण ई-क्लासेस जैसे प्रयोग संभव नहीं दिखते। हालांकि सरकार अपने स्तर से प्रयास करती तो कुछ संभावना बन सकती थी।

किताबों का टोटा प्राइवेट स्कूलों में भी

वैसे, बिहार के लगभग सभी प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई अप्रैल के पहले दिन से ही शुरू करा दी है और बच्चों को वाट्सएप कॉल के जरिये पढ़ाया जा रहा है। पढ़ाने वाला अध्याय पीडीएफ फॉर्मेट में मोबाइल पर भेजा जा रहा है। स्कूल की वेबसाइट पर भी अध्याय उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके अलावा एनसीईआरटी की किताबों के लिंक भी बच्चों तक पहुंचाए जा चुके हैं। लेकिन किताबों की दिक्कत यहां भी बनी हुई है। प्राइवेट स्कूलों ने किताबों को जरूरी सेवा में शामिल करते हुए जिलाधिकारियों से प्रकाशकों को होम डिलीवरी के लिए पास जारी करने की मांग की है।

प्राइवेट स्कूलों में किताबें देने वाले बड़े समूह ज्ञान गंगा के एडमिन मैनेजर राहुल कुमार कहते हैं कि “पटना के कई स्कूलों ने बच्चों के पते उपलब्ध करा दिए हैं और हम होम डिलीवरी के लिए तैयार भी हैं, लेकिन अप्रैल के दूसरे हफ्ते में भी अब तक कुछ हुआ नहीं है। अब डीएम साहब एसडीओ से वाहन पास प्राप्त करने को कह रहे हैं, जबकि इसके लिए निकलने पर भी पिटने का खतरा है।” ऑनलाइन कुछ व्यवस्था बनती है तो पटना में बच्चों को किताबें शायद मिल जाएं। इसी तरह अन्य जिला मुख्यालयों तक भी प्राइवेट स्कूल अप्रैल अंत तक शायद कुछ व्यवस्था कर लें।

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Published: 13 Apr 2020, 7:59 PM