बिहार में जन स्वास्थ्य सेवा की हालत: सरकार का दिलासा 'वर्ल्ड क्लास' अस्पताल बन रहा है, तब तक दम धरो या मरो...

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा है कि अस्पताल की नई बिल्डिंग में कामकाज अप्रैल में शुरू हो जाएगा। पिछले साल जून के आसपास इसे तैयार बताया गया था। तीन साल पहले भी पांडेय ने इसकी मियाद छह महीने बताई थी।

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शिशिर

बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर नजर डालने से पहले एक किस्सा। इसे आप तीन साल पुराना मान सकते हैं और बिल्कुल ताजा भी। पटना में इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा है कि इसकी नई बिल्डिंग में कामकाज अप्रैल में शुरू हो जाएगा। पिछले साल जून के आसपास इसे तैयार बताया गया था और कहा गया था कि यहां सिर्फ उपकरणों को लाकर इंस्टॉल कराना ही बाकी है। वैसे, तीन साल पहले बिहार विधान परिषद में राष्ट्रीय जनता दल के रामचंद्र पूर्वे के एक सवाल के जवाब में पांडेय ने तब इसकी मियाद छह महीने बताई थी। मतलब, तीन साल पहले बोला गया छह महीना अब अप्रैल में पूरा होने वाला बताया जा रहा है और वह भी इस दावे के बाद कि बिहार में हृदय रोग से पीड़ित बच्चों पर सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है।

जब यह हाल हो, तो सुषमा की स्थिति पर आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। खूब प्रचार किया गया कि राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच में अब स्तन कैंसर की जांच तुरंत हो जाएगी, तो सुषमा वहां पहुंच गई। उसे बताया गया कि 5 रुपये का पर्चा कटवाकर स्त्री रोग विशेषज्ञ से यहीं जांच के लिए लिखवाना होगा। परेशानी बताई, आशंका जताई, मगर डॉक्टर मैमोग्राफी लिखने को तैयार नहीं। सीनियर डॉक्टर ने मुंह नहीं खोला लेकिन बाहर आने पर जूनियर डॉक्टर से पता चला कि अभी सभी को नहीं पता कि जांच हो भी रही है या नहीं इसलिए लिखने के बाद नहीं हो, तो बवाल होगा। खैर, सुषमा खुद रेडियोलॉजी विभाग गईं। पता चला कि जांच हो जाएगी। दोबारा गईं, लिखवाकर आईं तो दिन निकल गया।

अगले दिन सुबह 9 बजे प्रिस्क्रिप्शन लेकर आने को कहा गया। सुषमा पहुंच तो गईं पौने नौ बजे ही लेकिन दिन भर बैठने के बाद शाम चार बजे जाकर टेस्ट हुआ। कहा गया कि अगले दिन रिपोर्ट लीजिए या फिर शाम तक इंतजार कीजिए। अस्पताल में बैठे-बैठे सुषमा खुद को अब तक किस्मत वाली मान चुकी थीं क्योंकि यहां तो टूटा हाथ या टूटी कमर के साथ दिन भर इंतजार करने के बाद भी लोग एक्सरे नहीं करवा पा रहे थे। कोरोना गाइडलाइन तो खैर कोई मानने की स्थिति में भी नहीं। वेटिंग रूम में बमुश्किल 25 लोगों की जगह है लेकिन थे 80 से ज्यादा ठुंसे हुए।


वैसे, इन लोगों को खुशकिस्मत ही मानना चाहिए। कई जिलों में तो हार्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज झेलने वाले मरीजों की बीमारी की पुष्टि करने वाला सरकारी अस्पताल भी नहीं है। पैसा है तो प्राइवेट में फंसो, वरना टालो कि हार्ट अटैक नहीं, गैस का दर्द होगा और सिरदर्द-बेहोशी की स्थिति में ब्रेन हेमरेज तक सोचने वाला भी मेडिकल सिस्टम नहीं। मीडिया के सामने ही नहीं बल्कि बाकायदा इन दिनों चल रहे विधानमंडल सत्र में भी जब-जब पीएमसीएच को लेकर कोई सवाल उठता है तो स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यह कहने से नहीं चूकते कि 2025-26 तक पीएमसीएच 5,462 बेड का अस्पताल बन जाएगा, मरीज यहां एलिवेटेड रोड से पहुंचेंगे और न जाने-क्या क्या। इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं कि अभी इलाज के लिए भारी संख्या में पहुंच रहे लोगों को बेड क्यों नहीं मिल रहे हैं या जांच में कई दिनों का इंतजार क्यों कराया जा रहा या छोटी-सी सर्जरी के लिए लंबे वेटिंग पीरियड की नौबत क्यों है?

बिहार में एक साल के अंदर दिल में छेदवाले 266 बच्चों की सर्जरी सरकार के स्तर पर हुई है। इसके बावजूद बिहार के हर सदर अस्पताल में इस जमाने में भी ईसीजी और इकोकार्डियोग्राम जैसी जांच की मूलभूत सुविधा नहीं है। 2019-20 में एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया था कि बिहार के सभी सदर अस्पतालों में हृदयरोग की जांच की व्यवस्था कराई जा रही है और प्राइवेट पर निर्भरता को शून्य तक लाया जा रहा है।


लेकिन पोल इस बात से भी खुलती है कि करीब 500 रुपये में दवा दुकानों पर मिलने वाली ट्रॉप-टी किट भी आधे से ज्यादा सदर अस्पतालों में नहीं हैं। हार्ट अटैक हुआ है या नहीं, यह किट तुरंत बताता है। इस किट के लिए अस्पतालों की चिट्ठी लंबे समय से आ रही है लेकिन नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट की तरह बने बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड के पास बड़ी मशीनों की खरीदारी के लोड के कारण कोई छोटा काम करने की फुर्सत ही नहीं है शायद। यह वही सरकारी कंपनी है, जो बिना मांग के पीएमसीएच जैसे अस्पताल में भी फंड खपाने के लिए बड़ी मशीनें भेजकर सड़ाने के लिए चर्चित रही है। इसी कंपनी को बिहार के अस्पतालों में संसाधन उपलब्ध कराने का जिम्मा मिला हुआ है।

सुशासन के दावों की असलियत

30 मार्च को विधानसभा में पेश सीएजी रिपोर्ट नीतीश सरकार को आईना दिखाने वाली है। कुल मिलाकर वही हालत है जो 2005 में थी, मतलब स्वास्थ्य सेवाओं की हालत में कोई सुधार नहीं

  • जिला अस्पतालों में बेड की भारी कमी; इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड की तुलना में बेड की कमी

  • 52 से 92 प्रति शत के बीच

  • बिहार शरीफ और पटना जिला अस्पतालों को छोड़कर 2009 में स्वीकृत बेड के केवल 24

  • से 32 प्रतिशत ही। सरकार ने 2009 में इन अस्पतालों में बेड की संख्या को स्वीकृत किया, पर वास्तविक बेड की संख्या नहीं बढ़ाई गई

  • सभी जिला अस्पतालों में 24 घंटे ब्लड बैंक की सेवा होनी चाहिए लेकिन 9 जिला अस्पताल बिना ब्लड बैंक के

  • मधेपुरा जिला अस्पताल में अगस्त, 2021 में आवारा सुअरों का झुंड; कूड़ा और खुला नाला

  • पाया गया, जहानाबाद जिला अस्पताल में नाले का पानी, कचरा, मल, अस्पताल का कचरा बिखरा मिला

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