बीजेपी ने कश्मीर में खेल तो दिया है 'आज़ाद कार्ड', लेकिन वोटों का गणित नहीं हैं भगवा दल के पक्ष में

बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बनाने को उत्सुक गुलाम नबी आजाद पर आंखें टिका रखी हैं। उसे लगता है कि मुसलमानों और लिबरल के वोट बंटेंगे और उसका फायदा उसे मिलेगा। लेकिन यह फायदा कहां, कैसे और कितना होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी।

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दानिश बिन नबी

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बीजेपी को मुस्लिम-बहुल कश्मीर घाटी में एक भी सीट जीतने में कठिनाई होगी, पर वह जम्मू डिवीजन में 2014 वाले परिणाम दोहराने की कोशिश में है। यह हिन्दू-बहुल इलाका है। बीजेपी ने 2014 में यहां की सभी 25 सीटें जीती थीं और तब ही कश्मीर में पहली बार उसने सरकार बनाने का दावा पेश किया था।

अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद बीजेपी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को बदनाम या अप्रतिष्ठित करने में कुछ हद तक सफल रही है। पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ वैसा करना उसके लिए मुश्किल रहा है। अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से अलग नेशनल कांफ्रेंस घाटी के साथ-साथ जम्मू और लद्दाख डिवीजनों में काफी मजबूत कैडर वाली पार्टी है।

पीर पंजाल के वरिष्ठ अधिवक्तता और राजनीतिक विश्लेषक आसिम हाशमी ने कहा भी कि ‘एनसी ने हर चुनाव क्षेत्र, ब्लॉक और जिलों में अपनी जगह बना रखी है। नेताओं को पकड़ने, गिरफ्तार करने और पर्याप्त प्रताड़ना के बावजूद एनसी अब भी अक्षुण है। जो कुछ हुआ है, उससे फारूक अब्दुल्ला काफी दुखी हैं और वह जख्मी व्यक्ति की तरह हैं।’

बीजेपी की हालत का अंदाजा जम्मू के एक टीवी चैनल के अक्तूबर, 2021 में किए गए सर्वेक्षण से लग सकता है। इस चैनल को बीजेपी-समर्थक माना जाता है, पर इसने बताया कि उसके सर्वे में शामिल रहे 66% लोगों ने माना कि सिर्फ क्षेत्रीय पार्टियां ही जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षा कर सकती हैं। चैनल के ‘मूड ऑफ द स्टेट’ में बताया गया कि प्रभावी मुख्यमंत्री के तौर पर 33.8% लोगों ने फारूक अब्दुल्ला, 25% ने गुलाम नबी आजाद, 11.5% ने जितेन्द्र सिंह, 9.1% ने महबूबा मुफ्ती और 3% ने सैयद मुहम्मद अल्ताफ बुखारी को बताया। उस वक्त गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के साथ थे।

जम्मू डिवीजन की सभी सीटों पर कब्जे का बीजेपी का सपना पूरा होना भी आसान नहीं है। यहां की करीब 9 सीटें ऐसी हैं जो मुस्लिम बहुल हैंः पुंछ में 3, राजौरी में 2, बनिहाल, माहौर, डोडा और इंदरवाल में 1-1 सीट। इस डिवीजन के कई अन्य क्षेत्रों में बहुमत आबादी मुसलमानों, लिबरल और सेकुलर हिन्दुओं की है। ऐसे क्षेत्र हैंः डोडा पश्चिम, भदरवाह, किश्तवाड़, रामबन और कालाकोत/नौशेरा।


2014 में भी बीजेपी ने इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। ऐसी ही स्थितियों की वजह से बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बनाने को उत्सुक गुलाम नबी आजाद पर आंखें टिका रखी हैं। उसे लगता है कि मुसलमानों और लिबरल के वोट बंटेंगे और उसका फायदा उसे मिलेगा। वैसे, आजाद के कांग्रेस छोड़ने पर राज्य में कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। लेकिन इससे बीजेपी को कितना और कहां फायदा होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी।

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