राम मंदिर मामले में ‘भारतीय जेहाद पार्टी’ यानी बीजेपी ने फिर हिंदुओं को मूर्ख बनाया: हिंदू महासभा

भारतीय हिंदू महासभा ने बीजेपी को भारतीय जेहाद पार्टी कहते हुए नाराजगी जताई है कि पार्टी राम मंदिर के मुद्दे पर हिंदुओं को मूर्ख बना रही है। हिंदू महासभा ने कहा है कि मोदी सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है। सरकार ने मंगलवार को अयोध्या की गैर विवादित जमीन वापस दिए जाने की सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है।

फोटो : सोशल मीडिया
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“भारतीय जिहाद पार्टी यानी बीजेपी ने हिंदूओं को फिर मूर्ख बनाया है। अयोध्या की जमीन का मालिक और कस्टोडियन निर्मोही अखाड़ा है और इसमें कोई अगर मगर नहीं है।“ यह कहना है अखिल भारत हिंदू महासभा का। केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या की विवादित जमीन के चारों तरफ की जमीन हिंदू संगठनों को दिए जाने की सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई है, जिसे महासभा ने दिखावा बताया है।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राम जन्मभूमि मामले में याचिकाकर्ता सरदार रवि रंजन सिंह ने कहा कि, ”सरकार ने राम मंदिर के मामले में कुछ खास नहीं किया है। सरकार को यह कदम सत्ता संभालने के 24 घंटे के भीतर उठाना चाहिए था।” उन्होंने कहा कि सारी की सारी “साकेत/अयोध्या नगर भगवान श्रीराम की है। इसे विवादित कहें या गैर विवादित कहें।”

दरअसल लोकसभा चुनाव सिर पर आते ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राम मंदिर कार्ड फिर से खेला है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राम मंदिर पर फिर से चर्चा शुरु करा दी है। एनसीपी के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील मजीद मेमन ने इसे सरकार का चुनावी स्टंट करार दिया है। उन्होंने कहा कि, “सरकार के आखिरी दिनों में ऐसी याचिका दायर करना सिर्फ असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है, ताकि गरीब लोग सरकार की नाकामी को भूल जाएं”

नवजीवन से बातचीत में मेमन ने कहा, “इस मामले का जल्द से जल्द हल निकालने के बजाए इस याचिका से मामला और पेचीदा हो जाएगा और अदालती कार्यवाही में देरी होगी। इस याचिका के बाद कोर्ट नए सिरे से सभी पक्षों को नोटिस जारी कर सकता है, उसके बाद ही मामले पर सुनवाई होगी।”

मजीद मेमन ने कहा कि, “अगर उन्हें (बीजेपी सरकार) को इस जमीन की इतनी ही जरूरत थी तो वे पांच साल तक इंतज़ार क्यों करते रहे। याचिका जिस समय दायर की गई है इससे साफ है कि सरकार ने सिर्फ साधू-संतों और हिंदू धार्मिक नेताओं के गुस्से के डर से ऐसा किया है।“

वहीं सरकार के इस कदम को सही बताते हुए बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कहा कि, “आपने देखा होगा कि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर किसी न किसी कारण से देरी हो रही है।” एक वेबसाइट से बातचीत में राम माधव ने कहा कि, “आखिरकार हमने तय किया कि कम से कम हम ऐसा तो कर ही सकते हैं। अगर हम यह 42 एकड़ जमीन (न्यास को) लौटा सके तो यह अच्छा कदम होगा।” याचिका दायर करने के समय पर राम माधव ने कहा कि, “न्यास इस जमीन के लिए बीते 23 साल से मांग कर रहा है।”

गौरतलब है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार को चुनावी साल राम मंदिर मुद्दे पर हिंदुओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। खास तौर से उत्तर भारत में सरकार विरोधी माहौल काफी मुखर है। आम चुनाव से पहले इस गुस्से को ठंडा करने की कवायद में ही मोदी सरकार ने यह दांव खेला है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र ने 1993 में विवादित जमीन समेत करीब 67.7 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। इसमें से सरकार ने अतिरिक्त जमीन इसके असली मालिकों को वापस करने की मांग की है। इस 67.7 एकड़ में से 42 एकड़ जमीन मंदिर न्यास की है। सरकार ने कोर्ट को बताया है कि उसने इसमें से 25 एकड़ जमीन का मुआवज़ा तो दे दिया है, लेकिन बाकी जमीन के 47 मालिक न्यास के हैं और उन्होंने जमीन वापस करने की मांग करते हुए मुआवज़ा लेने से इनकार कर दिया है।

ध्यान रहे कि कोर्ट ने 2003 और 2011 में अयोध्या की पूरी 67.7 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर जमीन वापस की जाती है तो इससे मामला और अधिक जटिल हो जाएगा।

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