बीजेपी संवैधानिकता और लोकतांत्रिक प्रणाली को कर रही है तबाहः कपिल सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा का ऑफर स्वीकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने खुद कहा था कि यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकारता है तो वह संस्थान पर धब्बा है। लेकिन अब उन्होंने खुद पद स्वीकार लिया है।

फोटोः iansphoto
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आईएएनएस

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत धार्मिक आधार पर नागरिकता देने वाले केंद्र के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई को राज्यसभा का ऑफर स्वीकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि न्यायमूर्ति गोगोई ने खुद कहा था कि यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद कोई नियुक्ति स्वीकारता है तो वह संस्थान पर धब्बा है। लेकिन आज उन्होंने खुद पद स्वीकार किया है।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और कानूनी विशेषज्ञ सिब्बल ने आईएएनएस टीवी के प्रधान संपादक संदीप बामजई और कार्यकारी संपादक दीपक शर्मा से एक विस्तृत बातचीत के दौरान ये बातें कही। इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर देश की संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नष्ट करने का आरोप लगाया। पेश है उनसे की गई पूरी बातचीत।

आपने कहा है कि सीएए मौलिक अधिकारों पर चोट नहीं करता है, मगर एनपीआर और एनआरसी के साथ मिलकर यह एक मुद्दा है?

नहीं, मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। आज सुबह मैंने एक लेख में इसे समझाया है, जिसमें मैंने कहा है कि देश या लोकतांत्रिक दुनिया के इतिहास में आप पाएंगे कि धर्म कभी भी नागरिकता का आधार नहीं रहा है और यह संविधान की मूल संरचना के विपरीत है। नागरिकता प्रदान करने का आधार क्या है? यह कि आप भारत में पैदा हुए, चाहे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई है, या फिर आपके माता-पिता यहीं पैदा हुए। वे हिंदू, मुसलमान हो सकते हैं, जो भी हो। या आप 10 साल से हिंदू या मुसलमान या किसी भी रूप में यहां निवास कर रहे हों। इसलिए संविधान और नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत धर्म कभी भी नागरिकता प्रदान करने का आधार नहीं रहा है।

इसलिए यह एक मौलिक संवैधानिक मुद्दा है, जो अब सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। इसके अलावा एनपीआर/एनआरसी मुद्दा सीएए से जुड़ेगा। एनपीआर आधार होगा और फिर एनआरसी तैयार किया जाएगा। एनपीआर इस तरह से तैयार किया जाने वाला है कि निम्न स्तर का अधिकारी भी यह कहने का हकदार होगा, "मुझे इस विशेष व्यक्ति की नागरिकता पर संदेह है।" गृहमंत्री ने संसद में कहा कि इस संबंध में उन्होंने एक आश्वासन दिया है। लेकिन उस आश्वासन का कोई मूल्य नहीं है, क्योंकि अधिनियम के तहत भारत सरकार की एक अधिसूचना के नियम 44 में किसी की भी नागरिकता पर संदेह करने के लिए स्थानीय रजिस्ट्रार और गणनाकार को शक्ति दी गई है।


अब कई राज्यों ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। क्या आपको नहीं लगता कि इस मुद्दे पर टकराव की स्थिति बनी है, क्योंकि हमने देखा है कि जब से यह कानून बना है, कई वर्षो बाद भारत विभाजित दिखाई दे रहा है?

सिर्फ विभाजित नहीं है, बल्कि हम वास्तव में गैर जरूरी मुद्दों पर खुद को खपा रहे हैं। देश के वास्तवित मुद्दे हैं कोरोना वायरस, आर्थिक सुस्ती, संभवत: मंदी की ओर बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था। रोजगार नहीं है, कमाई नहीं है, इसलिए सरकार के पास राजस्व नहीं है।

क्या किसी सीजेआई को सेवानिवृत्ति के चार महीने बाद इस तरह का पद स्वीकार करना चाहिए, जैसा कि रंजन गोगोई ने किया? इसी सरकार ने इसके पहले न्यायमूर्ति सदाशिवम को राज्यपाल नियुक्त किया था?

हम इसकी वैधानिकता में न जाएं। क्योंकि यह सवाल भी गलत होगा और इसका उत्तर देना भी मेरे लिए गलत होगा। यह मुद्दा लोगों की धारणा का है। सरकार ने संदेश दिया है कि जो उसके साथ है वह राज्यसभा तक जा सकता है और जो साथ नहीं है, उसका तबादला हो सकता है या फिर जांच बैठ सकती है।

कांग्रेस ने भी सिख दंगों की जांच करने वाले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा को राज्यसभा भेजा था, जिन्होंने जांच में लोगों को क्लीनचिट दी थी। क्या वह सही था?

सरकारें बदलती क्यों हैं? पिछली सरकारों की गलतियों की वजह से ही नई सरकार आती हैं। लेकिन नई सरकार को गलती नहीं दोहरानी चाहिए। अब जैसा कि गांव-देहात में होता है कि तूने मेरे रिश्तेदार को मारा था तो मैं आज तेरे रिश्तेदार को मार दूंगा। यह कौन-सा तर्क हुआ। रंगनाथ मिश्रा को क्यों भेजा गया?..आपका यह मतलब है कि 2002 में दंगे हुए तो 84 में भी हुए थे और आगे भी होने चाहिए। क्या यह सरकार का नजरिया होना चाहिए। जो चीज गलत है, वह गलत है और हमेशा गलत रहेगी।

क्या गोगोई को राज्यसभा का पद स्वीकार करना चाहिए?

न्यायमूर्ति गोगोई ने सीजेआई रहते कहा था कि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकारता है तो यह संस्था पर धब्बा जैसा है और आज वह खुद पद स्वीकार कर रहे हैं! हमें इस मामले में कानूनी पहलू पर जाने के बदले लोगों की धारणा पर ध्यान देना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि इससे न्यायिक प्रणाली को लेकर जनता में क्या संदेश जा रहा है।

आप ने उनकी तुलना न्यायमूर्ति खन्ना से की?

मैंने एक ट्वीट में कहा है कि हम आज न्यायमूर्ति खन्ना को इसलिए याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने बहुमत के फैसले से असहमति जाहिर की थी। अनुच्छेद-21 के प्रति उन्होंने कहा था कि उसे निलंबित नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति मुरलीधर के तबादले ने भी विवाद पैदा किया है...

वे कहते हैं कि न्यायमूर्ति मुरलीधर 12 फरवरी को ही अपने दबादले पर सहमत हो गए थे, लेकिन उस समय वह एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने अगले दिन सुनवाई की तिथि रखी थी। रात 11 बजे यह फैसला आया। बात टाइमिंग की है, बात पब्लिक परसेप्शन की है। इससे यही संदेश गया कि जो हमारे साथ रहेगा वह राज्यसभा तक जाएगा और जो पक्ष में नहीं होगा उसका तबादला भी हो सकता है। विरोधियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच भी चल सकती है।


ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी छोड़ना एक स्तर पर जो भी हो, लेकिन उन्होंने सोचा कि राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता होता है...

व्यक्तिगत रूप से मैंने अपने 30 साल के राजनीतिक जीवन में कभी किसी चीज के लिए मोलतोल नहीं किया और इस तरह की स्थिति कभी नहीं आई।

मध्य प्रदेश मामले में क्या होगा, क्योंकि यहां बोम्मई मामले का उदाहरण मौजूद है?

यह मामला अदालत में है। मैं कांग्रेस की तरफ से पेश हो रहा हूं। वे संवैधानिकता को नष्ट कर रहे हैं। यहीं कर्नाटक में हुआ, उत्तराखंड, गोवा, पूर्वोत्तर हर जगह यही हुआ। लोगों को बंधक बनाया जा रहा है और अपहरण किया जा रहा है। हर पार्टी में असंतोष होता है, क्योंकि हर किसी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है। इसलिए आप धनबल का इस्तेमाल कर विमान में उन्हें भरकर होटलों में बंद कर रहे हैं और फिर फ्लोर टेस्ट की बात कर रहे हैं। हम फ्लोर टेट से नहीं भाग रहे, लेकिन सवाल है कि परिस्थिति क्या है? विधायकों को बंधक बनाया गया है, इसलिए उन्हें रिहा किया जाए और उन्हें अपने क्षेत्रों में लौटने दिया जाए। बीजेपी के लोगों को उनके इस्तीफे लेकर राज्यपाल के पास नहीं जाना चाहिए।

कांग्रेस ने कभी निजी विमान, रिजॉर्ट से रिजॉर्ट और मनी पॉवर की राजनीति नहीं की। कोई भी सरकार परफेक्ट नहीं होती। कांग्रेस के समय भी गलतियां हुईं। मगर सफल सरकार वही होती है जो गलतियां न दोहराए।

जो कांग्रेसी विधायक बीजेपी के पाले में चले गए और वे फिलहाल बीजेपी के प्रति ही निष्ठा भी दिखा रहे हैं, ऐसे में कैसे साबित कर सकते हैं कि सरकार को जानबूझकर अस्थिर किया जा रहा है और विधायकों को प्रभावित किया गया है?

हम अदालत में उस पर अपना हलफनामा प्रस्तुत करेंगे। मैं किसी भी चीज का सही अनुमान तो नहीं लगा सकता, लेकिन हम एक मजबूत पक्ष रखेंगे।

क्या आपको लगता है कि आपका पक्ष मजबूत है?

हर वकील को लगता है कि उसके पास एक मजबूत मामला है। लेकिन फैसला सिर्फ न्यायाधीश ही कर सकते हैं।

गुजरात में भी इसी तरह के प्रयास जारी हैं?

हां, वहां भी यही हो रहा है। गुजरात और राजस्थान में। यह सारा खेल मनी पॉवर से ही हो रहा है।

लोगों को उनकी मर्जी के बगैर समायोजित कर लेना, संस्थानों को कमजोर करना, धन बल और बाहुबल..

यह एक मुखौटा है, लोकतंत्र एक मुखौटा बन गया है। यदि गोदी मीडिया, ईडी, सीबीआई, आईटी जैसे संस्थानों में धनबल का बोलबाला हो, यदि आप लोगों के मन में भय पैदा करें, तो लोग असंतोष जताना बंद कर देंगे। यदि आप यूएपीए का इस्तेमाल करें, तो मैं समझता हूं हम धीरे-धीरे अधिनायकवादी संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं, जो संविधान के अनुरूप नहीं है।

क्या आपको लगता है कि पिछले चुनावों में हिंदू ध्रुवीकरण हुआ है?

चुनाव परिणामों में हिंदू ध्रुवीकरण का कुछ तत्व जरूर दिखाई देता है, लेकिन 60 प्रतिशत लोग अभी भी मोदी के साथ नहीं हैं।

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