हिमाचल में दूसरे के लिए रचे 'चक्रव्‍यूह' में खुद फंसी BJP, पार्टी में बगावत के साथ जनता के रुख ने किया बेचैन

हिमाचल प्रदेश ने 2022 में भी एक माकूल जवाब दिया था। महंगाई और बेरोजगारी जैसे जनता के सवालों पर भागती बीजेपी को देवभूमि ने जनादेश दे दिया था। बावजूद इसके, बीजेपी नहीं मानी।

फोटो: सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

भारतीय जनता पार्टी के लिए हिमालय की गोद में बसा बेपनाह खूबसूरती समेटे हिमाचल प्रदेश शायद बुरा सपना साबित होने जा रहा है। विरोधी दलों को खत्‍म करने पर आमादा बीजेपी हिमाचल में बगावत से ही नहीं झुलस रही है। वह अपनों के सवालों से भी जूझ रही है। देवभूमि के लोगों के साथ जुड़ रहे पार्टी के दिग्‍गज शांताकुमार के स्‍वर भी उसे बेचैन कर रहे हैं। इसके साथ ही हिमाचल में आए एक नए सर्वे ने बीजेपी का चैन छीन लिया है। हिमाचल के लोग सवाल कर रहे हैं कि महज 15 महीने पहले 5 साल के लिए चुनी गई राज्‍य की कांग्रेस सरकार को गिराने की बीजेपी को क्‍या जरूरत थी।

हिमाचल प्रदेश ने 2022 में भी एक माकूल जवाब दिया था। महंगाई और बेरोजगारी जैसे जनता के सवालों पर भागती बीजेपी को देवभूमि ने जनादेश दे दिया था। बावजूद इसके, बीजेपी नहीं मानी। दिसंबर 2022 में मिले जनादेश के महज 15 महीने बाद मुख्‍यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्‍खू के नेतृत्‍व में बनी कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए दिल्‍ली में बैठे हाईकमान के इशारे पर बीजेपी ने एक चक्रव्‍यूह रचा। आज उसी चक्रव्‍यूह में बीजेपी खुद फंसती दिख रही रही है। सरकार को समर्थन दे रहे 3 निर्दलीय और 6 कांग्रेस विधायकों से राज्‍यसभा की एक सीट के चुनाव में क्रॉस वोटिंग करवाकर अपने पाले में लाने वाली बीजेपी की मंशा पर हिमाचल प्रदेश के लोग ‘बुलडोजर’ चलाते दिख रहे हैं। न सिर्फ इन सभी 9 एमएलए को बीजेपी ने पार्टी में शामिल किया बल्कि उन्‍हें टिकट देने का भी ऐलान कर दिया। इस तरह 45 महीने पहले ही उसने हिमाचल को एक उप-चुनाव में झोंक दिया। कांग्रेस में बगावत कराने वाली बीजेपी खुद बगावत के खेल में फंस गई है। बीजेपी का दामन थामने वाले सभी 6 कांग्रेस और 3 निर्दलीय विधायकों के अपने क्षेत्रों में उठा विरोध में तूफान थमता नहीं दिख रहा है। सबसे पहले बात करते हैं जनजातीय जिले लाहुल स्‍पीति की। यहां से कांग्रेस के बागी विधायक रवि ठाकुर को बीजेपी का टिकट देने के बाद बीजेपी की पूरी स्‍थानीय इकाई ने बगावत कर दी है। लाहुल स्‍पीति बीजेपी के तीनों मंडलों उदयपुर, केलांग और स्पीति के पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है।

बीजेपी की जयराम ठाकुर की सरकार में मंत्री रहे डॉ. रामलाल मार्कंडेय ने बीजेपी के खिलाफ किसी भी हालत में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। ऊना जिले के गगरेट से कांग्रेस के बागी पूर्व विधायक चैतन्य शर्मा को बीजेपी का टिकट मिलने के बाद यहां भी सियासी भूचाल के हालात हैं। पूर्व विधायक राकेश कालिया ने चैतन्य शर्मा की पार्टी में जॉइनिंग के साथ ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी हाईकमान के फैसले के खिलाफ बीजेपी पदाधिकारियों ने इस्तीफों की झड़ी लगा दी। इन पदाधिकारियों का कहना है कि जिनके खिलाफ वह संघर्ष करते रहे अब उनके समर्थन में जनता के बीच नहीं जा सकते। यहां इस्‍तीफा देने वालों में मंडल महामंत्री से लेकर अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष, ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष, आईटी सेल के संयोजक, भाजयुमो जिला उपाध्यक्ष, युवा मोर्चा के जिला सह मीडिया प्रभारी और सह संयोजक शामिल हैं। वहीं, कुटलैहड़ में बागी देवेंद्र भुट्टो के खिलाफ पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर और उनके समर्थक खड़े हो गए हैं। वीरेंद्र कंवर कुटलैहड़ से पांच बार बीजेपी टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वीरेंद्र कंवर वह शख्‍स हैं कि जब बीजेपी की पिछली सरकार में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को पद से हटाने की चर्चाएं चल रही थीं तब वीरेंद्र कंवर का नाम सीएम के लिए लिया जा रहा था। हालांकि, यह कहा जा रहा है कि वीरेंद्र कंवर को मना लिया गया है, लेकिन यह तो वक्‍त बताएगा कि वह कितना मान गए हैं। बीजेपी के पाले में जाने वाले नालागढ़ से निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर के खिलाफ भी घमासान है। नालागढ़ से बीजेपी के पूर्व विधायक लखविंद्र राणा ने केएल ठाकुर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बीजेपी की पूरी स्‍थानीय इकाई लखविंद राणा के साथ खड़ी हो गई है।

बीजेपी का गढ़ माने जाते पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह जिले हमीरपुर में भी हालात इसी तरह के हैं। हमीरपुर के सुजानपुर से कांग्रेस विधायक रहे राजेंद्र राणा, बड़सर से इंद्र दत्त लखनपाल और हमीरपुर से निर्दलीय जीते आशीष शर्मा  के बीजेपी में शामिल होने के बाद हंगामा बरपा है। सुजानपुर से राजेंद्र राणा को टिकट देने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी प्रत्याशी रहे कैप्टन रणजीत सिंह का कहना है कि वह हर हाल में चुनाव लड़ेंगे। जो लोग अपने हित के लिए पार्टियां बदलते हैं और समाज का ध्यान नहीं रखते उन्‍हें टिकट देने का क्या फायदा है। उनका कहना है कि पार्टी ने उनका टिकट काटकर पूर्व सैनिकों का अपमान किया है। सुजानपुर से राजेंद्र राणा पिछली बार कैप्टन रणजीत सिंह से महज 399 वोट के अंतर से जीते थे। वहीं, हमीरपुर से पूर्व विधायक नरेंद्र ठाकुर का कहना है कि पार्टी में जो ट्रेंड चल रहा है, वह ठीक नहीं हैं। राजनीति निम्न स्तर पर पहुंच गई है। कहा यह भी जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राजेंद्र राणा की बीजेपी में एंट्री धूमल परिवार को नीचा दिखाने के लिए करवाई है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े राजेंद्र राणा ने बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल को हराया था। यही वजह रही कि बीजेपी का बहुमत होने के बावजूद धूमल मुख्यमंत्री बनने से चूक गए, जिसके बाद वह बीजेपी में हासिये पर डाल दिए गए। नतीजतन ‘एक्सिडेंटल चीफ़ मिनिस्टर’ का तमगा हासिल करने वाले  जयराम ठाकुर को मुख्‍यमंत्री का ताज मिल गया। कहते हैं कि सीएम बनने के बाद एक बार भी प्रेम कुमार धूमल से मिलने जयराम ठाकुर उनके घर नहीं गए। लेकिन अब उप-चुनाव से पहले जयराम ठाकुर को धूमल परिवार की याद आ गई है। धूमल अपनी उस हार को अभी तक भूले नहीं हैं। कहा यह भी जा रहा है कि राजेंद्र राणा की बीजेपी में एंट्री धूमल परिवार के विरोध के बावजूद हुई है।


हिमाचल की दूसरी राजधानी का दर्जा प्राप्‍त धर्मशाला में तो और हंगामा बरपा है। धर्मशाला से कांग्रेस के बागी सुधीर शर्मा के बीजेपी में शामिल होने और उप-चुनाव में उम्‍मीदवार घोषित होने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी रहे राकेश चौधरी ने खुली बगावत का ऐलान कर दिया है। सभी पदों से इस्‍तीफा देते हुए राकेश चौधरी ने कहा है कि पार्टी ने उन्हें चाय से मक्खी की तरह बाहर फेंका है। राकेश चाधरी मजबूत ओबीसी नेता माने जाते हैं। वहीं, पिछला चुनाव में बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय लड़ने वाले विपिन नैहरिया ने भी चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए हैं। धर्मशाला के जोरावर स्टेडियम में सुधीर शर्मा के अभिनंदन समारोह में कांगड़ा से बीजेपी के वर्तमान सांसद किशन कपूर और उनके समर्थकों ने भी दूरी बनाकर बीजेपी को संकेत अच्‍छे नहीं दिए हैं। किशन कपूर ने सभी संभावनाएं खुली होने की बात कही है। साथ ही सुधीर शर्मा पर हमला बोलते हुए कहा है कि कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए पार्टी में शामिल हुए हैं। जनता ऐसे लोगों को जवाब देगी। किशन कपूर और विशाल नैहरिया गद्दी समुदाय से आते हैं, जो धर्मशाला में चुनावी तौर पर निर्णायक माना जाता है। किशन कपूर पिछले लोस चुनाव में 72 फीसदी वोट लेकर जीते थे, जो देश में किसी भी उम्‍मीदवार को पड़े मतों में सर्वाधिक था।

वहीं, कांगड़ा जिले की देहरा विस से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह के खिलाफ भी बीजेपी के पुराने चेहरे खफा हो गए हैं। देहरा से बीजेपी के बड़े चेहरे रमेश धवाला ने होशियार सिंह को व्यापारी बताया है। रमेश धवाला के साथ पूर्व मंत्री एवं पांच बार के विधायक रविंद्र रवि के लिए भी होशियार सिंह की बीजेपी में एंट्री पचा पाना मुश्किल लग रहा है।

बीजेपी के संस्‍थापकों में से एक और हिमाचल के दिग्‍गज शांता कुमार भी पार्टी के अंदर से उठ रही इन्‍हीं आवाजों को सुर दे रहे हैं। शांता कुमार ने कहा है कि आज सिद्धांतों की राजनीति नहीं रह गई। राम मंदिर बनाने से कुछ नहीं होगा। हमें राम के आदर्श पर चलना होगा। बड़े दुखी मन से शांता कुमार ने कहा है कि जब देश गुलाम था तो राजनीति देश के लिए थी, लेकिन आजाद देश की राजनीति केवल कुर्सी के लिए रह गई है। उन्हें इससे ज्यादा दुख इस बात का है कि उनकी पार्टी भी इस हवा में चल पड़ी है। मेरी पार्टी को नहीं चलना चाहिए था। शांता कुमार ने भगवान से प्रार्थना की कि नेताओं को सदबुद्धि दें। हिमाचल प्रदेश के आम लोग भी यही सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि 5 साल के लिए इन विधायकों को चुन कर भेजा था। आखिर, ऐेसा क्‍या हो गया 45 महीने पहले कांग्रेस के 6 और 3 निर्दलीय विधायकों को इस्‍तीफा देना पड़ा।

लोगों का सवाल है कि इंडिपेंडेंट एमएलए होशियार सिंह, केएल ठाकुर और अशीष शर्मा के साथ तो कोई दलगत मजबूरियां भी नहीं हैं। यह निर्दलीय विधायक तो बीजेपी को एसोसिएट के तौर पर भी समर्थन दे सकते थे। इन पर कोई दल बदल कानून भी नहीं लगता था। फिर भी इन्होंने रिजाइन कर दिया। हालांकि, तीनों निर्दलीय विधायकों का इस्‍तीफा हिमाचल विस के स्‍पीकर ने न स्‍वीकार कर बीजेपी की रणनीति पर एक और पेंच फंसा दिया है। पार्टी में उठी बगावत की आग के साथ देवभूमि के लोगों का रुख बीजेपी को और परेशान कर रहा है। हिमाचल प्रदेश के एक मीडिया हाउस के सर्व के नतीजों से इसकी तस्‍दीक हो रही है। लोगों से सवाल पूछा गया था कि ‘’क्‍या राज्‍य की नौ सीटें खाली करवाकर बीजेपी मजबूत हुई है’’। आज की तारीख में यह हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा सवाल भी है। जवाब में 67 प्रतिशत लोगों ने नहीं में जवाब दिया है। सर्वे में महज 30 प्रतिशत लोग ही बीजेपी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह सवाल इसलिए बड़ा है कि देवभूमि के लोगों ने न तो आज तक कभी इस तरह किसी सियासी दल में बगावत देखी है। न इस तरह इस्‍तीफे देखे हैं। न इस तरह उप-चुनाव देखे हैं। न साजिशें देखी हैं। शायद जनता भी कुछ ऐेसा करना चाह रही है, जो हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक सबक होगा।

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