बीजेपी ने कर्ज और घाटे के जाल में फंसा दिया हरियाणा को, कैग ने खोली खट्टर सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन की पोल

विधानसभा के पटल पर रखी गई 2018-19 की कैग रिपोर्ट ने हरियाणा की बीजेपी सरकार की वित्तीय अराजकता को बेनकाब कर दिया है। सरकार पर प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेलने के आरोपों की तस्‍दीक कैग रिपोर्ट ने कर दी है।

फोटो : सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने अपने पिछले कार्यकाल में प्रदेश को वित्तीय कुप्रबंधन और कर्ज के जाल में बुरी तरह धकेल दिया है। हालत यह है कि प्रदेश पर कर्ज बढ़ने की दर 167 प्रतिशत है। न सिर्फ यह राजस्‍व घाटे वाला राज्‍य बना रहा, बल्कि राजकोषीय घाटा भी लक्ष्‍य से काफी अधिक रहा। यहां तक कि राज्‍य की आरक्षित निधि का भी गलत उपयोग किया गया। वित्तीय अनियमितताओं की एक लंबी फेहरिस्‍त है। जनसंख्‍या के आधार पर देश के 18वें बड़े राज्‍य और 7,07,126 लाख करोड़ जीडीपी वाले प्रदेश को बीजेपी सरकार ने ऋण आधारित अर्थव्‍यवस्‍था के मुश्किल ट्रैप में धकेल दिया है। यह हालात भी कोरोना काल के पहले के हैं। जाहिर है, कोरोना बाद के हालात और भयावह होने वाले हैं।

विधानसभा के पटल पर रखी गई 2018-19 की कैग रिपोर्ट ने राज्‍य की बीजेपी सरकार की वित्तीय अराजकता को बेनकाब कर दिया है। सरकार पर प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेलने के आरोपों की तस्‍दीक कैग रिपोर्ट ने कर दी है। वर्ष 2014-15 (मनोहर लाल की ताजपोशी के वक्‍त) में राज्‍य सरकार का आंतरिक ऋण 58,143 करोड़ था। यह 96,825 करोड़ (167 प्रतिशत) की बढ़ोतरी के साथ 2018-19 में 1,54,968 करोड़ हो गया। 2018-19 में आंतरिक ऋण पर ब्‍याज के रूप में 11,988 करोड़ का भुगतान किया गया।

कैग ने लिखा है कि राज्‍य की समग्र राजकोषीय देनदारियां 31 मार्च 2019 को 1,84,216 करोड़ थीं, जो हरियाणा की जीडीपी यानी सकल राज्‍य घरेलू उत्‍पाद के अनुपात में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति थी। 2014-15 में 20.23 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में यह 26.05 प्रतिशत हो गईं। 2018-19 के अंत में ये देनदारियां राजस्‍व आमदनी का 2.80 गुणा और राज्‍य के अपने संसाधनों का 3.64 गुणा थीं। कैग रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा राजस्‍व घाटे वाला प्रदेश बना रहा।


2018-19 के दौरान 11,270 करोड़ का राजस्‍व घाटा कुल आमदनी का 17 प्रतिशत था, जिससे साफ है कि राज्‍य सरकार को मिलने वाला राजस्‍व खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त नहीं थीं। कैग ने कहा है कि उधार ली गई निधियों का उपयोग पूंजीगत सृजन के बजाय मौजूदा आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया। राजकोषीय घाटे की हालत ऐसी रही कि 2017-18 में यह 19,114 करोड़ था, जो 2018-19 में बढ़कर 21,912 करोड़ हो गया। यानी यह तय लक्ष्य 2.82 प्रतिशत की तुलना में 3.10 प्रतिशत रहा।

कैग रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 खत्म होने पर 2,985.55 करोड़ का रोकड़ शेष 6,315.60 करोड़ की निर्धारित आरक्षित निधि से कम था, जिससे पता चलता है कि आरक्षित निधि का उपयोग उस मद में नहीं किया गया जिस मद के लिए इसे आरक्षित किया गया था। इस वर्ष के दौरान कर्ज और एडवांस की वसूली बकाया कर्जों का सिर्फ 1.13 प्रतिशत थी। कैग के मुताबिक सहकारी चीनी मिलों को इस शर्त के साथ कर्ज दिए गए कि इसे 12 माह बाद नौ प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित समान किश्‍तों में पांच वर्ष में चुकाया जाएगा। कैग ने कहा है कि पहले से कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट होने पर नए कर्ज नहीं दिए जाने थे, फिर भी पिछले कर्जों की शर्तों की पूर्ति किएबिना ही चीनी मिलों को कर्ज दे दिए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि बकाया कर्ज 1 अप्रैल 2009 में 618.40 करोड़ से बढ़कर 31 मार्च 2019 को 2,647.86 करोड़ हो गया।

रिपोर्ट कहती है कि वर्ष के दौरान कुल व्‍यय में से 83 प्रतिशत राजस्‍व व्‍यय था। 2018-19 के दौरान राजस्‍व व्‍यय का 65 प्रतिशत चार घटकों वेतन एवं मजदूरी, पेंशन, ब्‍याज और सब्सिडी पर किया गया। इसके अतिरिक्‍त, कुल सब्सिडी (8,549 करोड़) का 87 प्रतिशत (7,415 करोड़) केवल उर्जा क्षेत्र के लिए दिया गया।

कैग रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय कुप्रबंधन अनेक स्‍तर पर हुआ है। मसलन 13 अनुदानों के अंतर्गत 17 प्रमुख मदों में 52 प्रतिशत व्‍यय मार्च 2019 में किया गया, जो वर्ष के अंतिम माह में व्‍यय के आधिक्‍य को दर्शाता है। यह सामान्‍य वित्तीय नियमों के नियम 56 के प्रावधानों के विपरीत है। यही नहीं, 2018-19 के दौरान 2,045.91 करोड़ के अनुमोदित अनुमान वाली 71 विकास योजनाएं कार्यान्वित ही नहीं की गईं। वित्‍तीय नियमों, प्रक्रियाओं तथा निर्देशों का भी घोर उल्‍लंघन किया गया।


कैग की रिपोर्ट बताती है कि अलग-अलग विभागों दिए गए 8,469.49 करोड़ के कर्जों और सब्सिडी से जुड़े 1,732 उपयोगिता प्रमाण पत्र 31 मार्च 2019 को बकाया थे। 87 स्‍वायत्‍त निकायों व प्राधिकरणों, जिन्‍हें राज्‍य सरकार द्वारा वित्‍तीय सहायता प्रदान की गई थी, के 166 वार्षिक लेखे 31 जुलाई 2019 तक बकाया थे। रिपोर्ट के अनुसार राज्‍य सरकार ने 1.28 करोड़ की राशि के सरकारी धन से आवेष्टित दुरुपयोग व जालसाजी आदि के 75 मामले सूचित किए, लेकिन जून 2019 तक इन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। इतना ही नहीं 2018-19 के दौरान 8,581.76 करोड़ के व्‍यय (कुल व्‍यय का 9.28 प्रतिशत) वित्त लेखों में उपयुक्‍त रूप से लेखाकृत करने के बजाय बहुप्रयोजन लघु शीर्ष-800 के अंतर्गत वर्गीकृत किए गए थे, जो वित्तीय रिपोर्टिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करता है।

31 मार्च 2019 को समाप्‍त वर्ष के लिए पेश कैग की इस रिपोर्ट में सरकार की वित्तीय अनियमितताओं की सिलसिलेवार कलई खोली गई है। हरियाणा एक ऐसा राज्‍य है, जिसके 22 में से 14 जिले राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आते हैं। भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर 21 वें, लेकिन संपन्‍न प्रदेशों में गिने जाते हरियाणा में शासन कर रही बीजेपी को पिछले पांच साल के कार्यकाल में प्रदेश में 167 प्रतिशत कर्ज का बोझ लादने के लिए जवाब तो देना होगा। फिर कोरोना संकट में मची तबाही की तस्‍वीर भी तो अभी आनी बाकी है।

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