नागरिकों को इंसाफ दिलाने में योगीराज वाला यूपी फिसड्डी, बाकी बीजेपी शासित राज्यों में भी हालत बेहद खराब: रिपोर्ट

सवाल है कि न्याय सुनिश्चित करने के मामले में अव्वल पांच राज्यों में एक भी बीजेपी-शासित क्यों नहीं? और इसके साथ ही एक और बात, योगीराज में कानून-व्यवस्था को लेकर जो हो-हंगामा है, वह यूं ही तो नहीं है। इस साल की रिपोर्ट से तो यह बात शीशे की तरह साफ है।

फोटो : Getty Images
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संयुक्ता बासु

मोदी सरकार की घोषित नीतियों और जमीनी हालात में बड़ा फर्क दिखता है। सरकार यह कहते नहीं थकती कि वह जनहित के काम कर रही है और उसकी नीतियों के मूल में आम लोग ही हैं। लेकिन फिर न्याय के राज की स्थापना के मामले में दावे और हकीकत में अंतर क्यों है? कम-से-कम इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, 2020 को देखकर तो ऐसा ही लगता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पांच विपक्ष शासित राज्य- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और केरल अच्छा काम करने वाले राज्यों में शीर्ष पर हैं जबकि सबसे खराब प्रदर्शन बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश का रहा। अब अगर योगीराज में कानून-व्यवस्था पर उंगली उठाई जा रही है, तो वह यूं ही तो नहीं।

इस रिपोर्ट को सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टिस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और हाऊ इंडिया लिव्स एनजीओ के साथ मिलकर टाटा ट्रस्ट तैयार करता है। रिपोर्ट में इस बात का लेखा-जोखा लिया जाता है कि न्याय देने-दिलाने की व्यवस्था के लिहाज से क्या स्थिति है। इसके लिए कानून व्यवस्था, पुलिस, न्यायपालिका, जेलों की व्यवस्था और कानूनी मदद को प्रमुख कारक मानते हुए हालात की समीक्षा की जाती है।

एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों तथा 7 छोटे राज्यों को बजट, मानव संसाधन, बुनियादी ढांचा, काम का बोझ, पुलिस बल में विविधता, न्याय पालिका और कानूनी मदद के संदर्भ में प्रदर्शन के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसमें 5 साल की अवधि में अनुमानित बदलाव का भी आकलन किया जाता है। वैश्विक स्तर पर ऐसी ही रिपोर्ट वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट्स रूल ऑफ लॉ इडेक्स है जिसमें देशों की स्थिति का अंदाजा लगाया जाता है। 128 देशों के इस सूचकांक में वर्ष 2020 में भारत का स्थान 69वां रहा जबकि 2019 में 28वां था। इस रैंकिंग में 61वें स्थान पर नेपाल और 66वें पर श्रीलंका हमसे बेहतर स्थिति में हैं।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की पहली रिपोर्ट 2019 में आई और कुछ ही समय पहले इसकी दूसरी रिपोर्ट वर्ष 2020 के लिए आई है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने इस रिपोर्ट की प्रस्तावना लिखी है। जस्टिस लोकुर कहते हैं, “पिछली रिपोर्ट में वर्णित कमजोरियों के आधार पर बात करें तो ध्यान इस ओर जाता है कि अगर भारतीय विधि आयोग, राष्ट्रीय पुलिस आयोग, ऑल इंडिया कमेटी ऑन जेल रिफॉर्म्स (मुल्ला समिति) समेत तमाम अन्य समितियों की सिफारिशों में से ज्यादातर लागू कर दी गई होतीं तो उसका नतीजा क्या होता।”


नागरिकों को इंसाफ दिलाने में योगीराज वाला यूपी फिसड्डी, बाकी बीजेपी शासित राज्यों में भी हालत बेहद खराब: रिपोर्ट

रिपोर्ट को बदलाव की दिशा दिखाने वाला बताते हुए न्यायमूर्ति लोकुर ने लिखा है कि कोविड महामारी के बाद आय असमानता की खाई बढ़ी, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ी, सामाजिक एकजुटता छिन्न-भिन्न हुई, जन भागीदारी कम हुई, विभिन्न समुदायों तथा सरकार में शक्ति विषमता और हताशा के माहौल के कारण सुलह, मुआवजा और दीवानी और आपराधिक मामलों के जल्द तथा न्यायपूर्ण तरीके से निपटाने की मांग में तेजी आने जा रही है।

जस्टिस लोकुर का स्पष्ट मानना है कि न्याय देने-दिलाने की व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी है कि बदलती जरूरतों और पिछले करीब चार दशकों के दौरान समय-समय पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों के मुताबिक जेल अधिनियम, 1894 और कैदी अधिनियम, 1900 को पूरी तरह बदलकर जेल व्यवस्था में सुधार लाते हुए इस दिशा में बढ़ना चाहिए। भारतीय जेलों में 70 प्रतिशत विचाराधीन कैदी होते हैं और न्यायमूर्ति लोकुर का सुझाव है कि हमें विशेष तौर पर प्रशिक्षित मजिस्ट्रेटों के एक कैडर की भी जरूरत है जिनका काम करने का तरीका ज्यादातर लोगों को जेल नहीं बेल देने के सिद्धांत पर आधारित हो। ऐसे समय में जब सत्तापक्ष के लिए असहज स्थिति पैदा करने वाले लोगों के लिए जमानत पाना एक मुश्किल काम होता जा रहा है, जस्टिस लोकुर के ये विचार अहम हैं। आज ज्यादातर मजिस्ट्रेट कार्यपालिका के ही अंग की तरह काम करने लगे हैं। उनका मानना है कि पुलिस तंत्र में सुधार की बहुत जरूरत है और इसके लिए पुलिस अधिनियम, 1861 में आमूल-चूल बदलाव लाकर पुलिस बल को जवाबदेह बनाना होगा जिससे मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, फर्जी मुठभेड़ों और यातनाओं से मौत के मामलों को टाला जा सके। न्याय दिलाने में जितने भी विभाग शामिल हैं, उनमें रिक्तियों को समय पर भरा जाना चाहिए।

हालिया रिपोर्ट को अगर राज्यों के सत्तासीन दलों के लिहाज से देखें तो यह बात उभरती है कि बीजेपी-शासित राज्यों का न्याय सुनिश्चित करने के मामले में प्रदर्शन मोटे तौर पर खराब रहा है। जबकि विपक्ष-शासित राज्यों का प्रदर्शन बेहतर है। पिछले साल की ही तरह इस बार भी नंबर-1 पर है महाराष्ट्र। पिछले साल तीसरे नंबर पर रहे तमिलनाडु ने एक स्थान की प्रगति करते हुए दूसरे स्थान पर अपनी जगह बनाई है। पिछले साल 11वें स्थान पर रहे तेलंगाना ने छलांग लगाते हुए तीसरे स्थान पर कब्जा जमाया है। पंजाब दोनों साल चौथे नंबर पर रहा। पांचवें स्थान पर केरल है जो पिछले साल दूसरे स्थान पर था। बावजूद इसके वह ऊपर के पांच राज्यों में जगह बना सका। ये पांचों राज्य विपक्ष शासित हैं। पिछले साल यूपी का स्थान बड़े 18 राज्यों में 18वां था। इस साल भी वह इसी स्थान पर है। पिछले साल की तुलना में इस साल जिन राज्यों के प्रदर्शन में गिरावट आई है, वे हैं- केरल, हरियाणा, ओडिशा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल।

सवाल तो यह उठता है कि न्याय सुनिश्चित करने के मामले में अव्वल पांच राज्यों में एक भी बीजेपी-शासित क्यों नहीं? सभी विपक्ष-शासित ही क्यों हैं? और इसके साथ ही एक और बात, योगीराज में कानून-व्यवस्था को लेकर जो हो-हंगामा है, वह यूं ही तो नहीं है। इस साल की रिपोर्ट से तो यह बात शीशे की तरह साफ है।

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