सीबीआई मामले में सीवीसी की जांच रिपोर्ट पर अहम सुनवाई आज: क्या आलोक वर्मा को बहाल करेगा सुप्रीम कोर्ट !

सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा की चुनौती याचिका और सीवीसी जांच रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के रुख पर सारे देश की निगाहें हैं। शुक्रवार को चीफ जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ कर सकती है वर्मा के भाग्य का फैसला।

फोटो : सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के खिलाफ उनके अधीनस्थ स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना की शिकायतों की केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के सामने इस अहम मामले पर आज आर पार का फैसला होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई विवाद के इस मामले में लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। इन सभी मामलों को एक साथ मिलाकर सुप्रीम कोर्ट को जांच में उपलब्ध पड़ताल के आधार पर फैसला लेना है।

पिछले तीन सप्ताह से पूरे देश की निगाहें इस सनसनीखेज मामले पर लगी हैं। सीवीसी की जांच का दायरा आलोक वर्मा के खिलाफ राकेश अस्थाना की ओर से लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तक सीमित रखा गया है। संभवत: जांच के तथ्यों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट यह फैसला लेगा कि वर्मा को वापस उनके पद पर बहाल करना है या नहीं।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर की आधी रात सीबीआई में बड़ा फेरबदल करते हुए सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को कार्यमुक्त कर दिया था और आईपीएस अधिकारी नागेश्वर राव को अंतरिम प्रभार सौंप दिया था। खबरें यह भी सामने आई थीं कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के साथ ही सीबीआई मुख्यालय में आलोक वर्मा के कार्यालय से कुछ जरूरी फाइलें हटा ली गई थीं और उनके कार्यालय को सील कर दिया गया था।

राकेश अस्थाना ने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा पर कथित रूप से आरोप लगाया है कि उन्होंने मीट कारोबारी मोईन कुरैशी से दो करोड़ रुपए की रिश्वत ली है। लेकिन सीवीसी सूत्रों ने संकेत दिया है कि आलोक वर्मा के खिलाफ राकेश अस्थाना की शिकायत में कोई दम नहीं है। सूत्रों के मुताबिक सीवीसी की जांच प्रक्रिया में इसे केवल प्रशासनिक चूक माना गया है।

सूत्रों का कहना है कि सीबीआई का आंतरिक बवाल इसलिए भी सरकार के गले की फांस बना हुआ है कि क्योंकि आलोक वर्मा मोदी सरकार में बैठे कई लोगों से जुड़े कुछ बेहद संवेदनशील मामलों की जांच करने की प्रक्रिया शुरु कर चुके थे। प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ शीर्ष लोगों के खिलाफ जांच की शिकायतें भी उनकी मेज पर थीं। इसके अलावा राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के मामलों की शिकायतों पर भी वर्मा आरंभिक जांच प्रक्रिया शुरू कर चुके थे।

सीबीआई में वर्मा के करीबी सूत्र इस बात का खुलासा कर चुके हैं कि इसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय से अपने करीबी रिश्तों का लाभ उठाकर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने उन्हें रास्ते से हटाने में भूमिका निभाई।

आलोक वर्मा ने पिछले महीने उन्हें कार्यमुक्त किए जाने और जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के मोदी सरकार के आदेश को पूरी तरह अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। वर्मा का आरोप है कि चूंकि वे सीबीआई में कई संवदनशील मामलों की जांच करवा रहे थे, इसलिए उन्हें पद से हटाने की साजिश रची गई।

इस पूरे विवाद में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका में कहा है कि राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत हैं, उन्हें निलंबित करने के बजाय आलोक वर्मा को ही हटा दिया गया। उनका कहना है कि तय कार्यकाल से पहले उन्हें हटाने का केंद्र सरकार या सीवीसी को कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वर्मा की याचिका पर अपने जवाब में कहा था कि उन पर लंबित गंभीर मामलों के कारण सीबीआई की छवि बचाने के लिए सरकार को विवश होकर उनके साथ ही आरोप लगाने वाले अस्थाना को भी प्रशासनिक कारणों से छुट्टी पर भेजना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीवीसी को दो सप्ताह के अंदर जांच पूरी करने का निर्देश दिया था, साथ ही जांच सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की निगरानी में कराने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई समयावधि सोमवार को पूरी हो गई थी, लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा पर अस्थाना के आरोपों जांच पर सुनवाई इसलिए मुलतवी कर दी गई थी क्योंकि सीवीसी की ओर से कोर्ट को तारीख से पहले रिपोर्ट पेश नहीं की जा सकी थी। इस देरी पर चीफ जस्टिस न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सीवीसी को रिपोर्ट समय पर न पेश करने को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी।

उधर कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सीवीसी और केंद्र सरकार के अधिकार को चुनौती दी है। खड़गे उस समिति के सदस्य हैं जो सीबीआई प्रमुख का चयन करती है। इस समिति में प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस भी होते हैं। खड़गे ने सीबीआई में मनमाने हस्तक्षेप को अपने अधिकार का हनन बताते हुए आलोक वर्मा को वापस पद पर बहाल करने की मांग रखी है।

इसके अलावा एक अहम घटनाक्रम के तहत सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक अरुण कुमार शर्मा ने भी इसी सप्ताह दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत पेश करने की अनुमति मांगी है। हालांकि कोर्ट ने उन्हें कहा है कि सभी सबूतों को सीबीआई के संबंधित जांच अधिकारी के समक्ष ही रखें।

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