बैलेट पेपर से चुनाव की संभावनाओं को मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने किया खारिज, बोले, ईवीएम को बलि का बकरा न बनाएं

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोपों का बचाव करते हुये कहा है कि ईवीएम को आसानी से बलि का बकरा बना दिया जाता है, क्योंकि राजनीतिक दलों को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए किसी न किसी चीज की जरूरत होती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ पी रावत ने चुनावों के लिए बैलेट पेपर को वापस लाने की सभी संभावनाओं को खारिज करते हुए शनिवार को कहा कि ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, क्योंकि मशीनें बोल नहीं सकतीं' और राजनीतिक दलों को अपनी हार के लिए किसी न किसी को जिम्मदार ठहराने की जरूरत होती है।

मर्चेट्स चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित 'निर्वाचन ईमानदारी और चुनावों में धन की भूमिका' विषय पर आयोजित एक संवाद सत्र में रावत ने कहा, "प्रणाली की ईमानदारी के बारे में वास्तव में कुछ भी नहीं है। हालांकि जब भी इस मुद्दे पर सवाल उठते हैं, हम स्पष्टीकरण देते हैं।" उन्होंने कहा कि आयोग ने पिछले साल जुलाई में सर्वदलीय बैठक में घोषित किया था कि आगे से मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए ईवीएम के साथ वीवीपैट का प्रयोग भी किया जाएगा।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, "राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम को आसानी से बलि का बकरा बना दिया जाता है, क्योंकि वह बोल नहीं सकतीं और राजनीतिक दलों को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए किसी न किसी चीज की जरूरत होती है।" उन्होंने दावा किया कि भारत में मुक्त व निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया ने विश्व को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, "यह प्रशंसा योग्य बात है कि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के बावजूद, चुनाव आयोग कुछ ही घंटों में परिणाम देने में सक्षम है।"

वहीं, लोकसभा चुनाव पहले कराए जाने की अटकलों के बीच ओपी रावत ने कहा कि आयोग कानून के प्रति निष्ठा रखता है और किसी भी सदन का कार्यकाल समाप्त होने के छह महीने से पहले चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, "कानून कहता है कि निर्वाचन आयोग सदन की समाप्ति की तिथि के 6 महीने पहले तक किसी भी सदन के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी नहीं कर सकता। निर्वाचन आयोग की यह वैधानिक बाध्यता है।" आयोग को 2019 के चुनाव समय पूर्व कराने से संबंधित सुझाव प्राप्त होने के सवाल पर उन्होंने कहा, "बिल्कुल भी नहीं। निर्वाचन आयोग कानून के मुताबिक कार्य करेगा। अगर कानून को जरूरत होगी कि चुनाव 6 माह के भीतर कराने हैं तो आपको कराने होंगे।"

देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के लिये एक साथ चुनाव कराने के सवाल पर उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग से 2015 में इस विचार के बारे में कहा गया था। आयोग ने सरकार को सभी सुझाव दे दिये हैं। इसके लिए संविधान और कानून में बदलाव की आवश्यकता है। उसके बाद, हमें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।” हालांकि, उन्होंने कहा कि हाल ही में विधि आयोग ने इस संबंध में चुनाव आयोग से मुलाकात की थी।

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