केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट को राय, चीफ जस्टिस ही संभालें रोस्टर, और जजों को लगाया तो फैलेगी अव्यवस्था

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को राय दी है कि केसों के बंटवारे का काम चीफ जस्टिस ही करें,क्योंकि ज्यादा जजों को इस में लगाया तो अव्यवस्था फैल सकती है। सुप्रीम कोर्ट में हर हफ्ते करीब एक हजार केस होते हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में केसों के बंटवारे की जिम्मेदारी सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को ही संभालनी चाहिए, इसमें ज्यादा जजों को शामिल करने से अव्यवस्था फैल सकती है। केंद्र ने यह बात शांति भूषण की उस याचिका की सुनवाई के दौरान कही जिसमें उन्होंने जजों को केसों का बंटवारा करने का काम यानी रोस्टर तय करने का काम कोलीजियम को सौंपने की अपील की थी।

वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने अपनी अर्जी में कहा था कि मास्टर ऑफ रोस्टर अनिर्देशित, अनियंत्रित और एकतरफा शक्ति नहीं हो सकती है। चीफ जस्टिस ने अपनी चुनी हुई बेंचों और जजों को केस देकर इस प्रक्रिया का मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया है। मास्टर ऑफ रोस्टर के तौर पर सीजेआई के पास एकतरफा, अनियंत्रित और अपरिवर्तनशील अधिकार नहीं होते। चीफ जस्टिस को इस व्यवस्था को वरिष्ठ जजों की सलाह के साथ चलाना चाहिए।

इस याचिका की शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि रोस्टर और केसों के बंटवारे की जिम्मेदारी सिर्फ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को ही संभालनी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि इस काम में ज्यादा जजों को शामिल किया जाएगा तो अव्यवस्था फैल सकती है।

जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच के सामने हुई सुनवाई में के के वेणुगोपाल ने कहा कि, "केसों के बंटवारे की व्यवस्था केवल एक व्यक्ति को संभालनी चाहिए और वो व्यक्ति चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होने चाहिए।” शांति भूषण की तरफ से पेश वकील दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट में रोस्टर और केसों के बंटवारे की प्रक्रिया को कॉलेजियम या फुल कोर्ट को अंजाम देना चाहिए।'

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में केसों के बंटवारे और बेंच तय करने को लेकर दायर शांति भूषण की याचिका पर प्रशांत भूषण ने जस्टिस जे चेलमेश्वर से सुनवाई की अपील की थी। जिस पर जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा था- "मैं इस याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहूंगा, इसकी वजह एकदम साफ है। कोई लगातार मेरे खिलाफ अभियान चला रहा है, जैसे मुझे कुछ हासिल करना है। मैं नहीं चाहता कि मेरा आदेश 24 घंटे में पलट दिया जाए। यही वजह है कि मैं यह नहीं कर सकता। कृपया मेरी परेशानी को समझिए। मेरे रिटायरमेंट को कुछ दिन बचे हैं। जब देश नहीं चाहता तो मैं क्या कर सकता हूं। अगर किसी को चिंता नहीं है तो मैं भी चिंता नहीं करूंगा।"

इसके अलावा रोस्टर और केसों के बंटवारे के मामले पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने बेंच की ओर से लिखे फैसले में कहा था कि, "सीजेआई सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी हैं। वह खुद ही एक संस्था हैं। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही चलाने के लिए सीजेआई के कामों को लेकर अविश्वास नहीं किया जा सकता। एक जज के तौर पर चीफ जस्टिस सभी में प्रथम होता है। अपने दूसरे कामों के निपटारे में चीफ जस्टिस को विशेष स्थान मिला होता है। आर्टिकल 146 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की हैसियत संस्थान के मुखिया के तौर पर बताई गई है। संस्थान के नजरिए से चीफ जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट के संचालन की जिम्मेदारी होती है। केसों के निर्धारण और पीठों की व्यवस्था उसका विशेष अधिकार होता है।" जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ वाली इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर भी शामिल हैं।

ध्यान होगा कि इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने सार्वजनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के तौर तरीकों पर सवाल उठाए थे। इस प्रेस कांफ्रेंस में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद दूसरे नंबर के वरिष्ठ जज जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ शामिल हुए थे। इस प्रेस कांफ्रेंस में जजों ने कहा था कि "लोकतंत्र दांव पर है। ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा।" इस प्रेस कांफ्रेंस में जजों ने दो महीने पहले चीफ जस्टिस को लिखे 7 पन् के पत्र को भी जारी किया था।

फिलहाल शांति भूषण की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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Published: 27 Apr 2018, 8:26 PM
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