छत्तीसगढ़ः नक्सलियों ने लापता कमांडो की रिहाई के लिए रखी शर्त, बात करने के लिए वार्ताकार नियुक्त करने की मांग

नक्सलियों ने कहा है कि सरकार को पहले वार्ताकारों के नामों की घोषणा करनी चाहिए, जिसके बाद जवान को रिहा कर दिया जाएगा। वह तब तक कैद में सुरक्षित रहेगा। यह पत्र नक्सलियों के दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता ‘विकल्प’ के नाम से जारी किया गया है।

फोटोः IANS
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नवजीवन डेस्क

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले के तीन दिन बाद नक्सलियों ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से बताया है कि लापता सीआरपीएफ कमांडो उनकी 'सुरक्षित हिरासत' में है और वे केवल उनसे बात करने के लिए वार्ताकार नियुक्त करने के बाद ही कमांडो को रिहा करने के लिए तैयार हैं।

प्रतिबंधित सीपीआई (नक्सली) संगठन- दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि कोबरा (कमांडो बटालियन फॉर रिजॉल्यूट एक्शन) कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास, जो 3 अप्रैल के हमले के बाद लापता हो गए थे, तब तक ही सुरक्षित हिरासत में रहेंगे जब तक कि वार्ताकार को नियुक्त करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के 300 से अधिक लड़ाकों के साथ मुठभेड़ के दौरान सीआरपीएफ के 210वीं कोबरा बटालियन के कांस्टेबल मन्हास लापता हो गए थे। इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ के 22 जवान शहीद हो गए थे और 31 घायल हुए थे। सीआरपीएफ और जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और एसटीएफ के 1,000 से अधिक सुरक्षाकर्मियों ने इस ऑपरेशन में हिस्सा लिया। तारेम पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले टेकुलगुडेम गांव के पास शनिवार दोपहर मुठभेड़ हुई थी।

बहरहाल, नक्सलियों ने कमांडो की रिहाई के लिए कोई औपचारिक मांग नहीं की है। हिन्दी में लिखे दो पन्नों के पत्र में प्रतिबंधित संगठन ने उल्लेख किया कि वे सरकार के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं, लेकिन "सरकार ईमानदार नहीं है"। राज्य पुलिस के साथ-साथ अन्य एजेंसियां भी कथित तौर पर प्रतिबंधित संगठन की ओर से जारी किए गए इस बयान की सत्यता की पुष्टि कर रही हैं।

प्रतिबंधित संगठन ने यह भी स्वीकार किया है कि उसके चार कैडर मुठभेड़ में मारे गए हैं और एक लापता है। अपने मारे गए साथियों को कॉमरेड बताते हुए इस संगठन ने कहा है कि मुठभेड़ में ओडी सनी, पदम लखमा, कोवासी बदरू और नूपा सुरेश मारे गए। इस मुठभेड़ में 22 जवानों की भी जान चली गई। नक्सलियों ने यह भी दावा किया कि उनका एक साथी मादवी सुक्का अभी भी लापता है क्योंकि उन्हें उसका शव नहीं मिल पाया है।

खुफिया जानकारी का हवाला देते हुए सीआरपीएफ और राज्य पुलिस ने पहले कहा था कि इस ऑपरेशन में 12 से अधिक नक्सली मारे गए हैं और 16 से अधिक को गंभीर चोटें आईं हैं। "सभी घायल नक्सली कैडरों को क्षेत्र के जाब्बामार्का और गोमगुड़ा क्षेत्र की ओर दो-तीन ट्रैक्टरों में ले जाया गया।" जबकि, प्रतिबंधित सीपीआई (नक्सली) संगठन के बयान में यह दावा किया गया है कि "मुठभेड़" में 24 सुरक्षाकर्मी मारे गए।

मंगलवार को कथित तौर पर नक्सलियों द्वारा लिखित और सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले बयान में कहा गया, "एक बड़े हमले को अंजाम देने के लिए (शनिवार को) जिरगुडेम गांव के पास 2,000 पुलिसकर्मी पहुंचे थे। उन्हें भगाने के लिए पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें 24 सुरक्षाकर्मी मारे गए और 31 अन्य घायल हो गए। हमने मौके से एक पुलिसकर्मी (कोबरा कमांडो) को पकड़ा है, जबकि अन्य भाग निकले।"

संगठन ने कहा कि सरकार को पहले वार्ताकारों के नामों की घोषणा करनी चाहिए और जवान को बाद में रिहा कर दिया जाएगा। वह तब तक हमारी कैद में सुरक्षित रहेगा। यह पत्र नक्सलियों के दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता 'विकल्प' के नाम से जारी किया गया। यह संगठन इस क्षेत्र में विभिन्न घातक हमलों को अंजाम दे चुका है। बहरहाल, नक्सलियों ने मुठभेड़ स्थल से 14 हथियार, 2,000 कारतूस और अन्य सामग्री जब्त करने का दावा किया है। उन्होंने लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद को दिखाने वाले बयान के साथ तस्वीरें भी जारी कीं।

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