बिहार चुनाव: 'मोदी के हनुमान' बने हैं चिराग पासवान, पर नहीं बता पा रहे नीतीश को लेकर क्यों हैं परेशान!

इन दिनों बिहार के कई इलाकों में चिराग की तस्वीरों वाले बैनरों में नारा लिखा हैः मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश की खैर नहीं। पर नीतीश से उनका बैर किस आधार पर है और उन पर क्यों यकीन किया जाना चाहिए, इस बारे में भ्रम के कोहरे छंट नहीं रहे हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवेंदु शर्मा

बिहार के खगड़िया शहर से करीब 28 किलोमीटर दूर है शहरबन्नी गांव। किसी भी अन्य गांव की तुलना में इस गांव का महत्व थोड़ा अधिक है। यहां से अब भी तीन लोग सांसद हैं। थे तो चार, पर हाल में एक का निधन हो गया। वह ऐसे सांसद थे जो छह प्रधानमंत्रियों के मंत्रिपरिषद में सदस्य रहे। उनका नाम था रामविलास पासवान। वह प्रमुख समाजवादी नेता और तीन दशकों से बिहार में दलितों के सबसे बड़े नेता थे। चुनावी राजनीति में वह करीब 50 साल सक्रिय रहे। पर उनके गांव में विकास टुकड़ों में पहुंचा है। कारे नदी पर पुल बन गया है इसलिए लोग अब वाहन से उनके गांव पहुंच सकते हैं।

बहुत दिन नहीं हुए जब लोगों को फुलटोरा घाट से नाव के जरिये जाना पड़ता था। यहां बिजली भी 2015 विधानसभा चुनाव के बाद पहुंची है। यहां इंदिरा आवास योजना के तहत घर काफी हें, लेकिन झुग्गी-झोपड़ी भी आपको दिख जाएंगे। हर साल यहां के लोग कोसी, बागमती और कारे नदियों के पानी का कहर झेलते हैं। वैसे, यह अच्छी बात है कि रामविलास पासवान के प्रयासों से यहां के अच्छे-खासे लोगों को सरकारी नौकरियां भी मिल गईं। सोशल मीडिया में गांव के ऐसे ही एक व्यक्ति का फूट-फूटकर रोता वीडियो हाल में वायरल हुआ था।


रामविलास पासवान के 37 साल के सांसद बेटे चिराग पासवान अपने पिता की खाली हुई जगह को भरने की कोशिश में हैं। वह लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) प्रमुख हैं और उन्होंने इस विधानसभा चुनाव में नारा दिया हैः बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट। उनका यह बयान इन दिनों चर्चा में रहा है कि उनका सीना चीरा जाए, तो वहां लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आएंगे। उन्होंने कहा है कि उनका लक्ष्य इस बार नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटाना और राज्य में बीजेपी-एलजेपी सरकार बनाना है। इस पर उठ रहे संदेह को दूर करने के लिए वह अपने पिता की कही इस बात को दुहराते हैं कि ‘शेर का बच्चा जंगल चीरकर निकल जाता है, गीदड़ मारा जाता है।’

बिहार की दुर्दशा के लिए चिराग पासवान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दोष देते हैं। यह बात दूसरी है कि अगर राज्य की बदहाली और यहां के युवाओं की आकांक्षाएं पूरी न होने के लिए नीतीश दोषी हैं, तो आखिर, उनके पिता रामविलास और उनके ‘हृदय सम्राट’ मोदी क्यों जिम्मेदार नहीं हैं। यह ठीक है कि नीतीश कुमार ने लॉकडाउन के बाद बिहार के प्रवासी मजदूरों को पहले तो प्रदेश न लौटने के लिए कहा क्योंकि इससे बीमारी फैल जाएगी और जब वे यहां आ ही गए तो उनके रोजी-रोजगार के इंतजामात नहीं किए गए और इसके लिए उन्हें जिम्मेदार कहा जा सकता है। लेकिन इन मजदूरों और उनके परिवार वालों को दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु आदि महानगरों से जिस तरह पांव-पैदल इतनी लंबी यात्रा करनी पड़ी, उसके लिए मोदी सरकार के साथ-साथ विभिन्न बीजेपी सरकारें क्यों दोषी नहीं हैं, इस बात का जवाब देना चिराग के लिए भी मुश्किल है।

वैसे, यह जानना रोचक नहीं बल्कि दुखदायी ही है कि अनलॉक-1 के दौरान मजदूरों को लेकर जो पहली ट्रेन बिहार से बाहर गई, वह खगड़िया से ही रवाना हुई। चिराग पासवान के गांव- शहरबन्नी के लोगों के लिए यही रेलवे स्टेशन है।


बिहार में शिक्षा-व्यवस्थाका हाल सबको मालूम है। इसी वजह से आर्थिक तौर पर थोड़े भी सक्षम यहां के लोग अपने बच्चों को देश के दूसरे शहरों में पढ़ने-लिखने भेजते हैं। लेकिन न तो रामविलास ने और न छह साल में मोदी ने कभी कोई सुचिंतित प्रयास किए। लोग एक घटना तो भूले नहीं हैं। 14 अक्तूबर, 2017 को पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अवसर पर नीतीश कुमार ने हाथ जोड़कर मोदी से इस विद्यवविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग की थी। मोदी ने इसकी अनदेखी तो की ही, बाद में गया और मोतिहारी में ऐसे दो विश्वविद्यालय बना दिए गए।

लोग मानते हैं कि रामविलास पासवान ने दुश्मन तो नहीं बनाए, दोस्त खूब बनाए, पर समय-समय पर उसे भूलते भी रहे। पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने इसीलिए उन्हें राजनीतिक मौसम विज्ञानी कहा था। रामविलास कहते थे कि वह सेकुलर हैं और मुसलमानों के मामलों को अपने दिल में रखते हैं। 2002 में गुजरात दंगों की वजह से उन्होंने तब की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से इस्तीफा दिया था। बिहार में जब 2005 के विधानसभा चुनाव हुए तो उन्होंने घोषणा की थी कि वह उस पार्टी या गठबंधन को समर्थन देंगे जो किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाएगा। रामविलास इफ्तार पार्टियां भी करते थे। पर वह मोदी मंत्रिमंडल में रहे। माना जाता है कि ऐसा उन्होंने बेटे चिराग की सलाह पर किया। इन दिनों बिहार के विभिन्न इलाकों में चिराग के साथ लगी तस्वीरों वाले बैनरों में यह नारा लगा हैः मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश की कोई खैर नहीं। इसलिए मोदी को लेकर चिराग का रुख साफ है। पर नीतीश से उनका बैर किस आधार पर है और उन पर क्यों यकीन किया जाना चाहिए, इस बारे में भ्रम के कोहरे छंट नहीं रहे हैं।

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