चित्रकूट गैंगरेपः पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति समेत तीन को आजीवन कारावास, सभी दोषियों पर 2-2 लाख रुपये का

कोर्ट ने 10 नवंबर को फैसले में तीनों को दोषी करार दिया था। इस मामले में चार अन्य अभियुक्तों- गायत्री के गनर रहे चंद्रपाल, पीआरओ रुपेश्वर, एक वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी के बेटे विकास वर्मा और अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति को चित्रकूट गैंगरेप केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट ने शुक्रवार देर शाम को यह सजा सुनाई। गायत्री के दो अन्य साथियों आशीष शुक्ला और अशोक तिवारी को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। तीनों पर दो-दे लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

विशेष न्यायाधीश पवन कुमार राय ने 10 नवंबर को दिए अपने फैसले में तीनों को दोषी करार दिया था। इस मामले के चार अन्य अभियुक्त गायत्री के गनर रहे चंद्रपाल, पीआरओ रुपेश्वर उर्फ रुपेश और एक वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी के बेटे विकास वर्मा और अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था। शुक्रवार को तीनों अभियुक्त कोर्ट में मौजूद रहे।

कोर्ट में सरकारी वकीलों ने बताया कि चित्रकूट की पीड़ित महिला ने 18 फरवरी, 2017 को लखनऊ के गौतम पल्ली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि एसपी सरकार में खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति समेत सभी आरोपियों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और उसकी नाबालिग बेटी के साथ भी दुष्कर्म का प्रयास किया।


रिपोर्ट में कहा गया था कि खनन का कार्य दिलाने के लिए आरोपियों ने महिला को लखनऊ बुलाया। इसके बाद कई जगहों पर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। महिला का आरोप है कि उसने घटना की विस्तृत रिपोर्ट पुलिस महानिदेशक को सौंपी लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गायत्री की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें बचाव साक्ष्य पेश करने की अर्जी को ट्रायल कोर्ट से खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने यह आदेश गायत्री के बेटे अनिल के जरिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर दिया। याचिका में एमपी-एमएलए कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बचाव साक्ष्य पेश करने की अर्जी को खारिज कर दिया गया था। उधर, राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने याचिका का विरोध किया। अदालत ने याचिका को मेरिट विहीन करार देकर खारिज कर दिया।

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