चाहे जितना आंकड़ों को छिपा ले मोदी सरकार, आरबीआई की रिपोर्ट ने सच्चाई रख दी है सामने: जयराम रमेश

कांग्रेस ने रिजर्व बैंक के बुलेटिन के हवाले से तमाम तथ्यों को सामने रखते हुए कहा है कि मोदी सरकार भले ही आंकड़ों को छिपा ले, लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट ने सार्वजनिक तौर पर सच्चाई सामने रख दी है।

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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने एक बयान में कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार भले ही आंकड़ों को छिपाकर हकीकत से ध्यान भटकाने की कोशिश कर ले, लेकिन रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने सच्चाई सामने रख दी है। एक बयान जारी कर उन्होंने कहा कि, "संसद का विशेष सत्र समाप्त हो चुका है। इस सत्र को लेकर एक बात बिल्कुल साफ़ है। मोदी सरकार देश को कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों - अडानी घोटाला, जाति जनगणना और विशेष रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, बढ़ती असमानता और आर्थिक संकट आदि से भटकाने की कोशिश कर रही थी। मोदी सरकार आंकड़ों को चाहे कितना भी छिपा ले, हक़ीक़त यह है कि बड़ी संख्या में लोग परेशान हैं।"

जयराम रमेश ने कुछ तथ्य सिलसिलेवार सामने रखे हैं:

● सितंबर 2023 का RBI का नवीनतम बुलेटिन, COVID-19 महामारी से उबरने में मोदी सरकार की पूरी तरह से विफलता को दर्शाता है। फरवरी 2020 में 43% लोग लेबर फोर्स में थे। 3.5 से अधिक वर्षों के बाद, यह भागीदारी दर 40% के आस पास बनी हुई है। अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 25 वर्ष से कम आयु के 42% से अधिक ग्रेजुएट 2021-22 में बेरोज़गार थे। यह गंभीर चिंता का विषय है। महामारी से पहले 2022 में भी महिलाओं को उनकी वास्तविक आय का केवल 85% ही मिल पा रहा था। हम यह भी जानते हैं कि महामारी की शुरुआत से पहले ही भारत में बेरोज़गारी 45 वर्षों में सबसे अधिक थी। यह एक ऐसा आँकड़ा था जिसे मोदी सरकार ने बहुत छिपाने की कोशिश की थी।

● आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेज़ी से बढ़ रही हैं। इसका सबसे ज़्यादा असर आम परिवारों के घरेलू बजट पर पड़ रहा है। टमाटर की कीमतों में अनियंत्रित उछाल को सबने देखा। जनवरी 2023 से तुअर दाल की कीमतें 45% बढ़ गई है‌। कुल मिलाकर दालों का इंफ्लेशन (मुद्रास्फीति) 13.4% तक पहुंच गया है। अगस्त से आटे की क़ीमतें 20%, बेसन की कीमतें 21%, गुड़ की क़ीमतें 11.5% और चीनी की क़ीमतें 5% बढ़ी हैं। आवश्यक घरेलू क्षेत्र में अनियंत्रित महंगाई अर्थव्यवस्था को मैनेज करने में मोदी सरकार की अक्षमता को दर्शाती है।

● मोदी सरकार की पूंजिपतियों को फ़ायदा पहुंचाने वाली नीतियों ने आर्थिक लाभ को कुछ चुने हुई कंपनियों तक केंद्रित कर दिया है। इस वजह से MSME के लिए प्रतिस्पर्धा करना लगभग असंभव हो गया है। मार्सेलस की एक रिपोर्ट में सामने आया कि 2022 में सभी मुनाफे का 80% सिर्फ 20 कंपनियों के पास गया। इसके विपरीत, छोटे व्यवसाय की बाज़ार हिस्सेदारी भारत के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर थी; 2014 से पहले छोटे व्यवसाय की बिक्री कुल बिक्री का लगभग 7% थी, लेकिन 2023 की पहली तिमाही में यह गिरकर 4% से भी कम हो गई। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशन द्वारा 100,000 छोटे व्यवसाय मालिकों के 2023 के सर्वेक्षण के अनुसार 75% छोटे व्यवसायों के पैसे बर्बाद हो रहे हैं।


● निजी क्षेत्र को मिलने वाला ऋण विकास का इंजन है; एक दशक तक ऋण का स्थिर रहना अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लक्षण हैं। पिछले सप्ताह के आरबीआई बुलेटिन में दिखाए गए विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2004 से 2014 तक, निजी क्षेत्र का घरेलू ऋण लगातार और तेज़ी से बढ़ा था। 2004 में ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 36.2% से बढ़कर 2014 में सकल घरेलू उत्पाद का 51.9% हो गया था। लेकिन, 2014 के बाद से ऋण वृद्धि स्थिर हो गई है। 2021 में, घरेलू ऋण महज़ 50.4% था - 2014 की तुलना में कम!

● सरकार के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए कि घरेलू वित्तीय देनदारियां(Liabilities) तेज़ी से बढ़ रही हैं। वित्त मंत्रालय चाहता है कि हम यह विश्वास करें कि ये सभी लोग घर और गाड़ी ख़रीद रहे हैं। लेकिन आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले वर्ष के दौरान गोल्ड लोन में 23% और पर्सनल लोन में 29% की भारी वृद्धि हुई है। ये आंकड़े संकट के स्पष्ट संकेत हैं। इससे पता चलता है कि लोग बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ में डूबने को मजबूर हैं। इसके अलावा आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि घरेलू बचत वृद्धि वित्त वर्ष 2012 में सकल घरेलू उत्पाद के 7.2% से घटकर वित्त वर्ष 2023 में केवल 5.1% रह गई है। यह बचत वृद्धि दर 47 साल के सबसे निचले स्तर पर है। यह मोदी सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था में समग्र मंदी को दर्शाता है।

● एक दशक में पहली बार भारत में एफडीआई प्रवाह में गिरावट आई है। RBI बुलेटिन से पता चला कि वित्त वर्ष 2023 में FDI में 16% की कमी आई है। इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में, 2004 में 0.8% से दोगुना होकर 2014 में 1.7% होने के बाद, एफडीआई स्थिर रहा था - 2022 में यह प्रवाह सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.5% था। विदेशी निवेशक भारत में अपना पैसा लगाने के लिए उत्साहित नहीं हैं। इसका मुख्य कारण मोदी सरकार का मित्र पूंजीवाद, विफल आर्थिक नीतियां और सांप्रदायिक तनाव भड़काना है।

बढ़ती बेरोज़गारी, घरेलू आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतें, एमएसएमई की घटती बिक्री, धीमी घरेलू ऋण वृद्धि, घरेलू वित्तीय देनदारियों(Liabilities) में वृद्धि एवं बचत में कमी और एफडीआई में गिरावट से लेकर, मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का ठीक से प्रबंधन नहीं किया है। सामान्य परिवार और छोटे व्यवसाय भारी दबाव में हैं। सरकार इस स्थिति को ठीक करने में अक्षम है। वह इसके बजाय डेटा को विकृत करने में और दबाने में व्यस्त है।

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