ट्रैक्टर परेड में हिंसा की कांग्रेस ने की निंदा, कहा- पीएम छोड़ें ‘राजहठ’, निभाएं ‘राजधर्म’

कांग्रेस ने आज दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा की कड़ी निंदा की है। साथ ही कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने पीएम मोदी से राजधर्म निभाने की अपील करते हुए बगैर किसी देरी के तीनों खेती विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग की है।

फाइल फोटोः पीटीआई
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नवजीवन डेस्क

गणतंत्र दिवस के अवसर पर आज दिल्ली में निकली किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा और बवाल की कांग्रेस ने कड़ी निंदा की है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बयान जारी कर कहा कि आज दिल्ली में हुई हिंसक और अराजक घटनाओं से कांग्रेस और पूरा देश क्षुब्ध है। लोकतंत्र में इस प्रकार की घटनाओं के लिए कोई स्थान नहीं।

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि आंदोलनरत किसान संगठनों द्वारा खुद को इस अस्वीकार्य घटनाक्रम से अलग कर लेने का स्पष्ट वक्तव्य एक सही दिशा में उठाया कदम है। आंदोलनकारियों को अपने ध्येय को ध्यान में रखना होगा। अहिंसा और सत्याग्रह ही इस किसान-मजदूर आंदोलन की सबसे बड़ी कामयाबी रही है। हमें पूरी उम्मीद है कि किसान-मजदूर-गरीब का ये गठजोड़ शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन के रास्ते पर चल तीनों खेती विरोधी काले कानूनों की वापसी के लिए दृढ़ संकल्प रहेंगे।

रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का साफ मानना है कि ‘गण’ और ‘तंत्र’ के बीच पिछले 61 दिनों से जारी टकराव की स्थिति लोकतंत्र के लिए कतई सही नहीं है। संदेश साफ है कि देश का गण यानि जनता, शासनतंत्र से बहुत क्षुब्ध है। ऐसे में मोदी सरकार को भी अहंकार के सिंहासन से उतर किसान और मजदूर की न्याय की गुहार सुननी पड़ेगी।

सुरजेवाला ने कहा, प्रधानमंत्री और बीजेपी सरकार को ये सोचना पड़ेगा कि 61 दिन से बातचीत का मुखौटा पहन किसानों को दस बार बातचीत के लिए बुलाना, पर न मांग स्वीकारना और न ही ठोस उपाय करना, क्या सही है? क्या देश को भ्रमित करना और किसान को विचलित करना उचित है? क्या 175 किसानों की मृत्यु के बावजूद ख़ुद प्रधानमंत्री द्वारा भी सांत्वना का मरहम तक न लगाना ठीक है? क्या मोदी सरकार द्वारा किसानों के प्रति ‘थकाओ और भगाओ’ की नीति अपनाना देश हित में है?

कांग्रेस महासचिव ने कहा, “प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी को ‘राजहठ’ छोड़ ‘राजधर्म’ के मार्ग पर चलना होगा। यही 72वें गणतंत्र दिवस का सही संदेश है। बगैर किसी देरी तीनों खेती विरोधी काले कानून वापस लेने होंगे। यही देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं की पुकार भी है और हुंकार भी।”

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