मीडिया में चर्चा भले ही कुछ हो, लेकिन हकीकत में घमासान तो एनडीए में मचा है: दीपांकर भट्टाचार्य

सीपीआई माले के नेता दीपांकर भट्टाचार्य का कहना है कि चर्चा भले ही कुछ हो, लेकिन हकीकत में एनडीए सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के बीच घमासान मचा हुआ है और लोग 20 साल की एंटी इन्कम्बेंसी को देखकर बदलाव का मन बना चुके हैं।

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शालिनी सहाय

मीडिया में भले ही जो नैरेटिव गढ़ा जाए, भले ही कुछ भी हवा बनाई जाए और चर्चा कुछ हो, लेकिन हकीकत यह है कि एनडीए में घमासान मचा है और वह बिखरा हुआ है। यह दावा किया है सीपीआई (माले) नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने। तेजस्वी यादव को बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किए जाने के बाद एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में दीपांकर ने कहा कि इसमें कभी कोई संदेह नहीं था कि तेजस्वी यादव ही विपक्षी गठबंधन का चेहरा होंगे। उन्होंने कहा कि इसके बरअक्स एनडीए ने न तो मुख्यमंत्री पद के चेहरे का ऐलान किया है और न ही कोई साझा प्रेस कांफ्रेंस की है।

उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर एनडीए के सहयोगी दलों के बीच अंदरूनी कलह साफ़ दिखाई दे रही है। कई जगहों पर बीजेपी और जेडीयू कार्यकर्ता एक-दूसरे का विरोध कर रहे हैं, जबकि कुछ जगहों पर जेडीयू और एलजेपी समर्थक आपस में भिड़ रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि यह इंडिया ब्लॉक के कार्यकर्ताओं के बीच ज़मीनी स्तर पर दिखाई देने वाली एकता के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने कहा कि हालांकि इस बार महागठबंधन में पांच के बजाए सात सहयोगी दल हैं, फिर भी कार्यकर्ताओं के बीच ज़्यादा एकता और समन्वय देखने को मिला है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भाजपा और चुनाव आयोग त्रिशंकु विधानसभा की उम्मीद कर रहे हैं ताकि चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए 'जोड़-तोड़' या तोड़-फोड़ की जा सके। उन्होंने दावा किया कि यही वजह है कि मतगणना के लिए 14 नवंबर की तारीख तय की गई है, ताकि चुनाव के बाद की तैयारियों के लिए पूरा एक सप्ताह मिल जाएगा क्योंकि विधानसभा का गठन तो 22 नवंबर, 2025 तक होना है। लेकिन उन्होंने विश्वास जताया कि बिहार के मतदाता विपक्ष को एक संतोषजनक और निर्णायक जनादेश देंगे।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि त्रिशंकु विधानसभाओं के दिन अब लद गए हैं। बिहार के मतदाता त्रिशंकु सदन और मामूली बहुमत वाली सरकारों के ख़तरों को समझते हैं। सीपीआई-माले नेता मानना ​​है कि लगभग 20 साल तक एनडीए सरकार को झेलने के बाद, बिहार के लोग इस बार बदलाव के लिए वोट देंगे। भट्टाचार्य को लगता है कि लोगों में गहरा असंतोष है, और मतदाता 'जंगल राज' और 30 साल पहले राज्य में जो कुछ हुआ होगा, उसकी बातों से प्रभावित नहीं होने वाले हैं। उनका मानना ​​है कि बिहार के  वोटर वर्तमान और भविष्य को देख रहे हैं।


दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि रोज़गार के अवसरों की कमी ने युवाओं को निराश किया है, लेकिन एनडीए सरकार की बहुप्रचारित महिला रोज़गार योजना, जिसके तहत महिला स्वयं सहायता समूहों की 1.4 करोड़ से ज़्यादा सदस्यों को 10,000 रुपये ट्रांसफर किए गए थे, अमित शाह ने इस हफ़्ते अपने दौरे के दौरान इसकी धज्जियां उड़ा दीं। केंद्रीय गृह मंत्री ने स्पष्ट किया था कि 10,000 रुपये दरअसल व्यवसाय शुरू करने के लिए दी गई शुरुआती राशि थी, ताकि आगे और कर्ज दिया जा सके। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि इस योजना का नाम बदलकर महिला कर्ज़दार योजना कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि राज्य में हालात बेहद खराब हैं। एनडीए के विकास मॉडल को 'फ्लाईओवर-बाईपास' मॉडल बताते हुए उन्होंने कहा कि राज्य की राजधानी पटना में भी, जहां फ्लाईओवरों की भरमार है, सड़कों की बदहाली और लोगों की पोल हर बार खुलती है जब लोग फ्लाईओवर से उतरते हैं। लोग एक संवेदनशील सरकार चाहते हैं, एक ऐसी सरकार जो लोगों की बात सुने। अब वे शासन के अहंकार से इतना निराश हो चुके हैं कि बदलाव का मन बना चुके हैं।

भट्टाचार्य ने कहा कि जनता के मूड को भांपते हुए एनडीए सरकार ने कई मांगों पर दिखावटी वादा करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि 20 साल के लंबे अंतराल के बाद सामाजिक सुरक्षा पेंशन अब 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये कर दी गई है। इसी तरह, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली की मांग के बावजूद, सरकार ने अनिच्छा से राज्य में 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली लागू की है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि, लोग आखिरी समय में दी जाने वाली ऐसी रियायतों से प्रभावित होने वाले नहीं हैं।

दीपांकर का मानना ​​है कि जनता के मूड का अंदाज़ा प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के हमले के रुख़ में अचानक आए बदलाव से लगाया जा सकता है। भट्टाचार्य ने बताया कि दो महीने पहले तक हमले आरजेडी और तेजस्वी यादव पर केंद्रित थे। लेकिन पिछले कुछ हफ़्तों में किशोर ने मूड भांप लिया है और एनडीए और सम्राट चौधरी व अशोक चौधरी जैसे मंत्रियों पर हमला करना शुरू कर दिया है।

उन्होंने माना कि एसआईआर से फर्क तो पड़ेगा, लेकिन भरोसा जताया कि सत्ताधारी गठबंधन के खिलाफ हालात बहुत ज़्यादा खराब हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ज़मीनी स्तर पर सत्ता विरोधी लहर बहुत ज़्यादा है।

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