श्रीनगर की हजरतबल मस्जिद पर अशोक स्तंभ चिह्न को लेकर विवाद
श्रीनगर की हजरत बल मस्जिद में हाल के रेनोवेशन के बाद लगाई गई पट्टी पर अशोक स्तंभ के निशान को लेकर विवाद खड़ा हो गया। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को तूल न देने की अपील की है।

श्रीनगर की मशहूर हज़रतबल मस्जिद में हाल में हुए रिनोवेशन के बाद लगाई गई पत्थर की पट्टिका पर अशोक स्तंभ लगाए जाने से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इससे स्थानीय नेताओं और नमाज़ियों में नाराज़गी फैल गई और अज्ञात लोगों ने उस पट्टिका को तोड़फोड़ दिया। इसके जवाब में, जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने अशोक स्तंभ हटाने वालों के खिलाफ जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
गौरतलब है कि हज़रतबल मस्जिद में पैगंबर मोहम्मद की पाक निशानियां रखी हुई हैं। इसी मस्जिद के रेनोवेशन के बाद लगाए गए पत्थर पर अशोक स्तंभ अंकित किया गया था, जिसकी मुस्लिम समुदाय ने आलोचना की। समुदाय का तर्क है कि मस्जिद इबादतगाह है और यहां किसी भी मूर्ति को अंकित करना एकेश्वरवाद के इस्लामी सिद्धांत के खिलाफ है, जिसमें मूर्ति पूजा को मना किया गया है। इस मामले में सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस और अन्य राजनीतिक नेताओं ने भी समुदाय की बात का समर्थन किया है।
दरअसल कल (5 सितंबर 2025 को) को जुमे (शुक्रवार) की नमाज के ठीक बाद अज्ञात लोगों ने पत्थर की पट्टिका तोड़ दी और इस पर अंकित अशोक स्तंभ को हटा दिया। इस बात से नाराज अंद्राबी ने मस्जिद परिसर में ही पत्रकारों से बातचीत में पट्टिका को तोड़ने वालों को "आतंकवादी" और "गुंडे" करार दिया। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने और आरोपियों पर पीएसए (जन सुरक्षा कानून) के तहत मामला दर्ज करने की मांग की। पीएसए एक कठोर कानून है, जो बिना सुनवाई के किसी आरोपी को दो साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है।
इस मामले में नेशनल कांफ्रेंस ने एक बयान जारी कर कहा कि इस मुद्दे पर टकराव के बजाय आपसी सम्मान और विनम्रता की जरूरत है। नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि पट्टिका के डिजाइन को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई थीं। एनसी ने कहा कि हजरतबल जैसे पवित्र स्थान के भीतर किसी भी गतिविधि में "श्रद्धालुओं की संवेदनशीलता और आस्था के सिद्धांतों" का सम्मान किया जाना चाहिए। पार्टी ने कहा कि, “वक्फ किसी भी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है। यह एक ट्रस्ट है जो आम मुसलमानों के योगदान और दान से चलता है, और इसे उनके मजहब और परंपराओं के अनुरूप ही प्रबंधित किया जाना चाहिए।” एनसी ने कहा कि परेशान करने वाली बात यह है कि "लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए उनसे माफी मांगने के बजाय पीएसए के तहत गिरफ्तारी की धमकियां दी जा रही हैं।"
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता इल्तिजा मुफ़्ती ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा कि "ऐसा लगता है कि मुसलमानों को जानबूझकर उकसाया जा रहा है।" उन्होंने अंद्राबी की पीएसए की मांग की आलोचना करते हुए इसे "दंडात्मक और सांप्रदायिक मानसिकता" का प्रतिबिंब बताया। इल्जिजा ने कहा, "कश्मीरियों को सिर्फ इसलिए 'आतंकवादी' करार देना क्योंकि उन्होंने किसी ऐसी बात पर अपना गुस्सा व्यक्त किया जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और पुलिस से उन पर पीएसए लगाने को कहना भाजपा की दंडात्मक और सांप्रदायिक मानसिकता को दर्शाता है।"
नेशनल कॉन्फ्रेंस के श्रीनगर से सांसद और शिया नेता रूहुल्लाह मेहदी ने भी इस घटना और अंद्राबी की प्रतिक्रिया की निंदा की। उन्होंने इस पट्टिका को "अहंकार को बढ़ावा देने" का प्रयास बताया और कहा कि "इस मामले में पीएसए के इस्तेमाल की कोई भी बात सिर्फ ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसी है।"
सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के मुख्य प्रवक्ता और जदीबल के विधायक तनवीर सादिक ने कहा कि प्रतिष्ठित दरगाह में बुत स्थापित करना इस्लाम के खिलाफ है, जो बुतपरस्ती की मनाही करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं कोई धार्मिक विद्वान नहीं हूं, लेकिन इस्लाम में बुतपरस्ती की सख्त मनाही है, जो सबसे बड़ा पाप है। हमारे ईमान की बुनियाद तौहीद है।’’
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