बिलकिस बानो केस से जुड़ी एक और 'शर्मनाक' सच्चाई आई सामने! रिहा होने से पहले 1000 दिन से ज्यादा जेल के बाहर रहे दोषी

गुजरात सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे के मुताबिक, मामले का दोषी रमेश चंदना 1576 दिनों के लिए जेल से बाहर था (पैरोल कुल 1198 दिन और फरलो 378 दिन) यह उन 11 दोषियों में सबसे ज्यादा दिनों तक जेल से बाहर रहा।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप मामले के दोषियों को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई है। यह चौंकाने वाली बात उसी हलफनामे से सामने आई है, जिसे गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किया है और बताया है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद ही इस मामले के दोषियों को रिहा किया गया था। 'द इंडियन एक्सप्रेस' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात सरकार के हलफनामे से यह पता चला है कि इस मामले के हर 11 में से 10 दोषियों को औसतन 1 हजार से ज्यादा दिनों की छुट्टी पैरोल, फरलो और अस्थाई जमानत के रूप में जेल से मिली थी। वहीं, 11वें दोषी को 998 दिनों तक जेल से बाहर रहा था। सभी को अच्छे व्यवहार का हवाला देते हुए गुजरात की बीजेपी सरकार ने इसी साल 15 अगस्त के दिन रिहा कर दिया था।

गुजरात सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे के मुताबिक, मामले का दोषी रमेश चंदना 1576 दिनों के लिए जेल से बाहर था (पैरोल कुल 1198 दिन और फरलो 378 दिन) यह उन 11 दोषियों में सबसे ज्यादा दिनों तक जेल से बाहर रहा।

नवजीवन ग्राफिक्स
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क्या होता है पैरोल और फरलो?

किसी कैदी को हिरासत के दौरान पैरोल और फरलो के तहत अस्थायी तौर पर जेल से रिहा किया जाता है। नियम के तहत कैद की कम अवधि की सजा के मामलों में अधिकतम एक महीने की पैरोल दी जा सकती है। गौर करने वाली बात यह है कि इसके लिए कैदी को कोई खास वजह बतानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है। वहीं, लंबी अवधि की सजा के मामलों में कैदी को अधिकतम 14 दिनों के लिए फरलो दी जाती है। कैदी को फरलो मांगने के लिए किसी खास वजह बताने की जरूरत नहीं पड़ती है।


गुजरात सरकार ने SC में पेश हलफनामे में क्या कहा है?

गुजरात सरकार ने सोमवार को एक हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों को 14 साल जेल की सजा पूरी करने के बाद रिहा कर दिया गया है, क्योंकि उनका व्यवहार अच्छा पाया गया और उनकी रिहाई को केंद्र ने भी मंजूरी दी थी।

हलफनामे में कहा गया, "भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार की सहमति/अनुमोदन से अवगत कराया। राज्य सरकार ने सात अधिकारियों - जेल महानिरीक्षक, गुजरात, जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई, और सत्र न्यायालय, मुंबई की राय पर विचार किया।”

हलफनामे के मुताबिक, राज्य सरकार के अनुमोदन के बाद 10 अगस्त, 2022 को कैदियों को रिहा करने के आदेश जारी किए गए। इस मामले में राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्तावों पर विचार किया, जैसा कि अदालत द्वारा निर्देशित किया गया था और 'आजादी का अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूप में कैदियों को रिहा किया गया।

क्या है पूरा मामला?

गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में 3 मार्च, 2002 को भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी। इसी दौरान बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था, उस दौरान वह गर्भवती थीं। भीड़ ने जिन लोगों की हत्या की थी, उनमें बिलकिस बानों की तीन साल की बेटी भी शामिल थी।

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