कोरोना लॉकडाउन से जबरदस्ट आर्थिक संकट में भारतीय मीडिया उद्योग, आखिर क्यों आंखे मूंदे है सरकार!

कोरोना संकट के दौरान में जारी लॉकडाउन से भारतीय मीडिया जबरदस्त आर्थिक दबाव में है। अखबारों की प्रसार संख्या घटी है तो टीवी के विज्ञापन कम हुए हैं। पहले से ही सीमति संसाधनों पर चल रहा डिजिटल भी इससे प्रभावित है। ऐसे में सरकार आखिर

फोटो : Getty Images
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उमाकांत लखेड़ा

कोरोना महामारी के दौर में भारतीय मीडिया पर व्याप्त संकट अत्यधिक भयावह रुख अख्तियार कर रहा है। देश की अर्थव्यवस्था के संकट ने दुनिया के साथ ही मीडिया के आर्थिक तंत्र की कमर तोड़ दी है। प्रिंट मीडिया सबसे बुरे दौर में है। भारत में दो दशक से बहुत तेजी से आगे बढ़े टीवी चैनलों व एकाएक उभरे डिजिटल व पोर्टल मीडिया को अब अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बुरी तरह जूझने को विवश कर दिया।

भारत मीडिया को तमाम तरह की उलटबांसियों के बावजूद एक उभरती आर्थिक शक्ति के बतौर यहां मीडिया को भी स्वतंत्र व गतिमान, उद्योग के तौर पर देखा जाता रहा है। लॉकडाउन के संकट ने 25 मार्च के बाद से ही सबसे पहले प्रिंट व टेलीविजन मीडिया में सभी विज्ञापनों से आमद एकदम ठप हो गई। टीवी चैनलों का जिन निजी कॉरपारेट कंपनियों पर विज्ञापनों का बकाया भुगतान था, वह तो बंद हुआ ही आगे की विज्ञापन बुंकिग भी बंद हुई, पिछला भुगतान भी अटक गया। केंद्र सरकार के विज्ञापनों पर तो एक तरह से ताला ही लग गया।

2016 के आखिर में नोटबंदी और जीएसटी के दौर से ही भारतीय प्रिंट मीडिया की हालत पहले से ही खस्ता हालत में चल रही थी क्योंकि कई बड़े अखबार समूहों ने देश के कई हिस्सों से अपने संस्करण तो समेटे ही उन जगहों पर अपने स्टाफ की भी छुट्टी कर दी। संस्करणों वाले अखबारों ने लॉकडाउन के बाद से ही सबसे पहले अखबारों के पृष्ठों में भारी कटौती कर डाली। प्रिंटिंग ऑर्डर तो कम किए ही अपने प्रसार क्षेत्रों में भी कटौती कर दी क्योंकि बड़ी तादाद में अखबार बांटने वाले हॉकर व एजेंटों के सामने अखबार वितरण का संकट खड़ा हो गया। ज्यादातर क्षेत्रों में लोगों ने कोरोना वायरस के डर के मारे दरवाजे व बालकनियों पर गिरे अखबारों पर हाथ लगाना भी बंद कर दिया। इस मामले में टीवी चैनलों की टीआरपी पहले की अपेक्षा बढ़ी है। घरों में कैद लोगों के पास कोई और उपाय भी नहीं है।


इससे भी बड़ा संकट मीडिया उद्योग के उन हजारों-लाखों लोगों पर पड़ा जो पूरे देश के लोगों को सुबह सुबह ताजा तरीन खबरें पढ़ाने में पर्दे के पीछे जी जान से काम करते हैं। इनमें बड़ी तादाद में फील्ड से खबरें लाने वाले रिपोर्टर-पत्रकार से लेकर डेस्क व फीचर, ले आउट डिजाइन, प्रोडक्शन से लेकर सेल्स मार्केंटिग के पूरे चक्र का पहिया ही ठप हो गया। इस क्षेत्र में लाखों लोगों व उनके परिजनों पर संकट बढ़ा है। देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों ने अपने पत्रकारों के वेतन में भारी कटौती कर दी। इससे उन मीडिया कर्मियों पर सबसे ज्यादा संकट आन पड़ा है जो कई साल से मीडिया में काम करते आ रहे हैं। उनके मासिक वेतन से ही घर, कार की किश्तें, बच्चों के स्कूलों की मोटी फीसें जाती हैं और बीमार बुजुर्गों के महंगे ईलाज की भारी जिम्मेदारी है।

मीडिया समूहों को सबसे ज्यादा संकट अपने-अपने संस्थान के रेवेन्यू मॉडल के ध्वस्त हो जाने के कारण हुआ है। जब सर्कुलेशन नहीं है तो अधिकांश विज्ञापनदाताओं ने अगले दिन से मुठ्ठियां बंद कर दीं। दक्षिण भारत के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया ग्रुप मलयालम मनोरमा समूह की पत्रिका "द वीक" के संपादक एस सच्चिदानंद मूर्ति कहते हैं, "कोरोना संकट के लॉकडाउन के चलते जो संकट मीडिया उद्योग पर ऊपरी तौर पर दिख रहा है, वास्तव में संकट उससे भी बड़ा व भयावह है। सबसे ज्यादा मुश्किल सूचनाओं के संकट का है। लोगों की निर्भरता प्रिंट अखबारों के बजाय मात्र टीवी मीडिया पर बढ़ गई है। चैनलों की खबरें मात्र शहरों पर केंद्रित रहती हैं, ऐसी सूरत में देश के विशाल ग्रामीण भारत से जुड़ी हुई खबरें, सूचनाएं और उनके आसपास की घटनाओं से पूरे एक माह से भी ज्यादा वक्त से सारे लोग महरूम हैं।

प्रिंट मीडिया हो, टीवी मीडिया, उनके फील्ड रिपोर्टर, सहयोगी स्टाफ, कैमरामैन, फोटो जर्नलिस्ट और उनको लाने ले जाने वाले वाहन चालकों के स्वास्थ्य पर संकट खड़ा हो गया है। बड़ी तादाद में कोरोना संक्रमण रोगियों वाले अस्पतालों में समाचार संकलन करने वाले मीडिया कर्मियों की जान खतरे में पड़ गई है। कोलकाता में वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर रोनी राय की हाल में मौत कोरोना संक्रमण से हो गई। महाराष्ट्र देश ऐसा बड़ा राज्य है जहां लोगों तक रोज नई नई सूचनाएं और जानकारियां पहुंचाने वाले पत्रकार कोरोना की चपेट में आ गए।


दिल्ली में कुछ फोटोग्राफर व स्टाफ भी चपेट में है। काम के दौरान पत्रकारों को सुरक्षा के बारे में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को न तो कोई दिशा निर्देश दिए गए हैं और ना ही राज्य सरकारें इस काम के लिए आगे आयी हैं। देश के कई पत्रकार संगठनों ने केंद्र व राज्य सरकारों से मांग की है कि वे इस कोरोना महामारी की चपेट में आए पत्रकारों का भी सरकारी कर्मचारियों की भांति जीवन बीमा कराएं तथा कठिन विपरीत परिस्थितियों में काम करने की वजह से संक्रमित होने पर सरकारी खर्च पर उनका उपचार हो और मृत्यु की दशा में वही मुआवजा मिले जो जरूरी सेवा में जुटे पुलिसकर्मियों को मिल रहा है।

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