कोरोना वैक्सीन सिर्फ दवा नहीं बिजनेस भी है, इसलिए नेताओं और बाजार पर भी रखें नजर

दुनिया भर में कहर बरपाने वाले कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन बस आने ही वाली है। लेकिन ये वैक्सीन सिर्फ दवा ही नहीं है, बहुत बड़ा वैश्विक धंधा भी और एक किस्म का राष्ट्रवाद भी। इसलिए इसके सामने आते ही नेताओं और बाजार पर नजर रखना जरूरी है

प्रतीकात्मक फोटो
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एम सोमशेखर

साल 2020 की शुरुआत लोगों और देशों के कोविड-19 की चपेट में आने के साथ हुई। कुछ ही महीनों में यह वैश्विक महामारी बन गई और सभी देश इस पर नियंत्रण के उपायों से जूझने लगे। कोरोना वापरयसे दुनिया भर में 6.7 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं जबकि15 लाख से ज्यादा की मृत्यु हो चुकी है। फिर भी इस महामारी का कोई अंत नहीं दिख रहा है। इस दृष्टि से यह साल निराशा और आशा के बीच झूलने वाला रहा। लेकिन साल का अंत होते-होते कोरोना रोकने वाली कम-से- कम चार वैक्सीन बाजार में आने की उम्मीद बंध गई है और वैक्सिनेशन करने और रोग पर नियंत्रण के लिए यह सब कुछ बड़े व्यापार और राजनीतिक चुनौती के तौर पर बदल गया है।

कोरना वायरस ने महज लोगों का स्वास्थ्य ही खतरे में नहीं डाला है, अर्थव्यवस्थाओं का भी नाश हो गया है। अरबों-खरबों डॉलर अब भी डूब रहे हैं और इनसे जूझने और जीतने के लिए जब तक वैश्विक तथा समन्वयवादी प्रयास नहीं किए जाते हैं, इनसे उबरना ‘अत्यंत कठिन’ काम है।

आमतौर पर जन्म लेने के बाद से 10 साल तक की उम्र के बच्चों को वैक्सीन दिए जाते हैं। न्यूमोनिया-संबंधी और फ्लू-जैसे वैक्सीन कभी- कभी वयस्कों को भी दिए जाते हैं। अधिकतर, यह सब किसी खास इलाके या महामारी वाले क्षेत्र में किया जाता है। लेकिन कोविड-19 के मामले में अंतर यह है कि लगभग पूरी दुनिया ही इस वैक्सीन का बाजार हो सकती है। इसका मतलब है कि 7.8 अरब की पूरी वैश्विक आबादी को सुरक्षा देने की जरूरत है।


मेडिकल विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सामूहिक रोग प्रतिरोधक शक्ति हासिल करने के लिए कम-से-कम 70 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन देने की जरूरत है। इसका मतलब है 5.5 अरब लोग। अधिकतर प्रभावी वैक्सीन दो डोज वाले होते हैं। इसका मतलब है 11 अरब डोज। ऐसे में, कम समय में इस काम को पूरा करने के लिए वैक्सीनों, निर्माताओं और मजबूत सप्लाई चेन के पूरे गुच्छे की मांग की जा रही है।

स्वाभाविक तौर पर इस तरह की बड़ी मांग भारतीय वैक्सीन उत्पादकों और बड़ी फार्मा कंपनियों के लिए जबर्दस्त अवसर हैं। उन्होंने इसे तुरंत समझ लिया और डॉ. रेड्डीज, हेटेरो, अरबिंदो, जायडस कैडिला और स्ट्राइड्स फार्मा वैश्विक और देसी सहयोग के जरिये इस बड़े कारोबार के एक हिस्से को पाने के प्रयास में लग गई हैं। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बिल गेट्स ने लगातार कहा है कि दवाओं और वैक्सीनों में अपनी मजबूती की वजह से भारत दुनिया की आधी से अधिक जरूरतों के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाने वाला होगा। फार्मा क्षेत्र में काफी दिनों से काम कर रहे राष्ट्रमंडल फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राव वदलामुदी ध्यान दिलाते हैं कि वैक्सीनों के उत्पादन के अतिरिक्त इसके लिए शीशी, सिरिंज बनाने, इसकी पैकेजिंग, बॉक्स, कोल्ड स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन के पूरे सहायक उद्योग भी आगे बढ़ेंगे।

सार्वजनिक तौर पर जो सूचनाएं सामने आई हैं, उसके अनुसार, फायजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना मेसेंजर आरएनए (एम-आरएनए) आधारित टीके बना रहे हैं और इनकी कीमत 20 से 50 डॉलर प्रति डोज होगी। ऑक्सफोर्ड- एस्ट्राजेनेका-सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने भारत में दो डोज के लिए 1,000 रुपये का संकेत दिया है। रूस के स्पुतनिक वैक्सीन के निर्माताओं ने अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए प्रति डोज 10 डॉलर में उपलब्ध कराने की घोषणा की है। अलग-अलग देशों में कीमतें अलग-अलग होंगी और वैश्विक वैक्सीन गठबंधन हो, तो यह कीमत और कम होगी जिससे कम आय वाले 100 देशों को मदद पहुंचने की आशा है। इन सबके बावजूद वैक्सीनों के इतिहास में पहली बार बाजार दांव पर लगा हुआ है।


राजनीतिक तौर पर मजबूत नेतृत्व वाले और जिनके यहां रेगुलेटरी संरचना है, वैसे देशों- मसलन, अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ यूरोपीय यूनियन वाले देशों ने आगे बढ़कर वैक्सीन हासिल करने और इस प्रक्रिया को तेज करने की कोशिशें तेज कर दी हैं। रूस, चीन, भारत और ब्राजील भी अपने प्रयासों में पीछे नहीं हैं। एक वक्त तो यह इतनी तेज थी और अपने देश को ही सुरक्षित करने की ख्वाहिश इतनी अधिक थी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को वैक्सीन राष्ट्रवाद-जैसी स्थिति पैदा करने के प्रति सावधानी बरतने को कहना पड़ा।

फिर भी, कई धनी देशों ने फाइजर- बायोएनटेक और मॉडर्ना के वैक्सीन की आपूर्ति की पहले ही बुकिंग कर ली है। ब्रिटेन वैक्सीन शुरू करने वाला पहला देश भी बन गया है। वहां सबसे ज्यादा जरूरत (इमर्जेंसी) के आधार पर फाइजर वैक्सीन देने की शर्त लागू कर दी गई। दिसंबर के दूसरे हफ्ते में वहां 90 वर्षीया महिला को वैक्सीन दी गई और इस तरह वह वैक्सीन लेने वाली पहली व्यक्ति बन गईं। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन कुछ ही हफ्तों में इमर्जेंसी के आधार वाली शर्त लागू करने वाले हैं। रूस में सरकार ने स्पुतनिक-वी देना शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि चीन ने भी अपना वैक्सीन देना शुरू कर दिया है।

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