कोरोना से पैदा स्वास्थ्य संकट ने तोड़ कर रख दी अर्थव्यवस्था की कमर, सोच से कहीं अधिक व्यापक है इसका असर: आरबीआई

रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना महामारी से पैदा स्वास्थ्य संकट आम सोच से कहीं अधिक गहरा है और इसने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है। आरबीआई ने कहा है कि इसे काबू में करने के लिए सरकार को भविष्य की ऐसी लहरों के लिए तैयार रहना होगा।

फोटो : Getty Images
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आईएएनएस

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय संकटों की तुलना में, स्वास्थ्य संकट वास्तविक अर्थव्यवस्था पर अधिक व्यापक और दुर्बल करने वाला हो सकता है। रिपोर्ट में स्वास्थ्य संकट को देखते हुए एक जोखिम की स्थिति का अनुमान लगाया गया है और भविष्य की लहरों के लिए तैयार रहना को कहा गया है। इसमें कहा गया है कि 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के परिदृश्य में निजी निवेश गायब है और इसे पुनर्जीवित करना जरूरी है। रिपोर्ट में उद्यमशीलता पर जोर देने की बात कही गई है।

केंद्रीय बैंक ने कहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण की दर काफी चिंताजनक है। इतनी तेजी से बढ़ते संक्रमण के बीच स्वास्थ्य ढांचे को क्षमता के लिहाज से विस्तारित करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आगे चलकर वृद्धि लौटने और अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की स्थिति में यह महत्वपूर्ण होगा कि सरकार बाहर निकलने की एक स्पष्ट नीति का पालन करे और राजकोषीय बफर बनाए जिसका इस्तेमाल भविष्य में वृद्धि को लगने वाले झटकों की स्थिति में किया जाए।

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आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महामारी आर्थिक परिदृश्य के समक्ष सबसे बड़ा जोखिम है। सरकार द्वारा निवेश बढ़ाने, क्षमता का इस्तेमाल अधिक होने तथा पूंजीगत सामान के आयात बेहतर रहने से अर्थव्यवस्था में सुधार की गुंजाइश बन रही है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि महामारी के खिलाफ व्यक्तिगत देशों के संघर्ष के बजाय सामूहिक वैश्विक प्रयासों से निश्चित रूप से बेहतर नतीजे हासिल होंगे। रिपोर्ट में महामारी की तैयारी के संदर्भ में सतर्कता बरतने की हिदायत दी गई है।

रिपोर्ट कहती है कि महामारी ने भारत में न केवल लाखों लोगों की जान ली है, बल्कि इसका आर्थिक प्रभाव भी काफी बड़ा है और इसी वजह से वर्ष 2020 में उत्पादन और रोजगार के लिहाज से नुकसान दर्ज किया गया है, जो कि विश्व स्तर पर और भारत में इतिहास में अभूतपूर्व स्थिति रही है। यह अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 9.5 करोड़ अतिरिक्त लोग इस दौरान अत्यधिक गरीबी में जीने को मजबूर हुए हैं, जिनमें से 8 करोड़ से अधिक कुपोषित हैं और यह ट्रेंड ज्यादातर कम आय वाले देशों में देखा गया है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि ठीक एक साल पहले जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोविड-19 को महामारी घोषित किया था और भारत ने मार्च में सख्त लॉकडाउन लगाया था तभी से एक गहरी निराशा और जोखिम सेंटिमेंट बड़े पैमाने पर पैदा हो गया है। आरबीआई ने कहा है कि महामारी की वजह से लोगों का जीवन बाधित हो गया है और जीवन शैली मौलिक रूप से बदल गई है। भारत में, गतिविधि के कुछ क्षेत्रों विशेष रूप से गहन संपर्क वाले क्षेत्रों में गहरा घाव देखने को मिला है, जबकि अन्य जैसे कृषि और संबद्ध गतिविधियों, सूचना प्रौद्योगिकी, राजमार्ग अवसंरचना, ट्रैक्टर बिक्री, रेलवे भाड़ा, बिजली की मांग और घरेलू व्यापार ने दुर्लभ लचीलापन दिखाया है।

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