कोरोना से हुई मौतों की जांच तक नहीं करवा पाई, लेकिन रिलीफ फंड में मिले दान के पैसे से वाह-वाही लूटती रही खट्टर सरकार ?

हरियाणा कोरोना रिलीफ फंड के नाम पर वसूले गए करोड़ों रुपये की क्‍या बंदरबाट हुई है? यह सवाल शिद्दत से राज्‍य में उछल रहा है। जो सरकार ऑक्‍सीजन की कमी से हुई मौतों की जांच नहीं करवा पाई।

फोटो: सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा कोरोना रिलीफ फंड के नाम पर वसूले गए करोड़ों रुपये की क्‍या बंदरबाट हुई है? यह सवाल शिद्दत से राज्‍य में उछल रहा है। जो सरकार ऑक्‍सीजन की कमी से हुई मौतों की जांच नहीं करवा पाई। कोरोना से हुई मौतों की वास्‍तविक संख्‍या तक जानने में कोई दिलचस्‍पी नहीं दिखाई। कोरोना में तबाह हुए लोगों को मदद के नाम पर एक पैसा तक देने की नीयत नहीं दिखाई। उस सरकार ने बाबा रामदेव की कोरोनिल खरीदने के लिए राहत कोष में आए करोड़ों देने में बिल्‍कुल वक्‍त नहीं गवाया। कोरोना के नाम पर बनाए गए खट्टर सरकार के रिलीफ फंड में उन दर्जा कर्मचारियों तक ने अपना वेतन दान कर दिया था, जो फ्रंट लाइन वर्कर के तौर पर खुद मॉस्‍क और सेनिटाइजर तक लिए जूझ रहे थे।

हरियाणा की मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल सरकार के कोरोना रिलीफ फंड में लोगों ने पाई-पाई जोड़ कर इस नीयत से दान दिया था कि भयावह त्रासदी में यह मदद लोगों का दर्द कम करने में सहायक होगी। लेकिन इस फंड का क्‍या सही उपयोग हो पाया? 28 फरवरी 2022 तक हरियाणा कोरोना राहत कोष में मिले 318.91 करोड़ में से सरकार महज 142.79 करोड़ का ही इस्‍तेमाल कर पाई, जिस पर भी सवालों की फेहरिस्‍त लंबी है। बाबा रामदेव की कोरोनिल खरीदने में भी राहत कोष में मिले दान के पैसे का इस्‍तेमाल किया गया है। पंचकूला स्थित स्‍टेट आयुष सोसायटी को इसके लिए 5.23 करोड़ का भुगतान किया गया है। आरटीआई से हुए खुलासे में राज्‍य सरकार ने खुद बताया था कि कोरोनिल किट के कोरोना मरीजों के उपचार में प्रभावी होने का कोई रिकॉर्ड उसके पास नहीं है। कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों के इलाज में कोरोनिल किट के उपयोगी होने के बारे में कोई टेस्ट और जांच रिपोर्ट भी आयुष विभाग में नहीं थी। कोरोनिल के उपयोग से कोरोना निगेटिव हुए मरीजों की सूची और संख्या का कोई रिकॉर्ड भी सरकार के पास नहीं था। आरोप लगा था कि योगगुरु रामदेव की कंपनी पर सरकार बेवजह मेहरबान होकर कोरोना रिलीफ फंड को लुटा रही है।


रिलीफ फंड से 8.22 करोड़ रुपये सरकार ने गृह विभाग के जरिए रेलवे को दिए हैं। यह पैसा शायद मजदूरों के किराये के तौर पर रेलवे को भुगतान किया गया है। इससे एक बात साफ है कि दान के पैसे से मजदूरों को अपने राज्‍य रेलवे के जरिये भेजकर सरकार वाह-वाही लूट रही थी। मेडिकल इक्विपमेंट पर सरकार ने 41 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। असंगठित क्षेत्र के कामगारों को मदद के नाम पर 35.43 करोड़ दिए गए हैं। इससे फिर सवाल उठता है कि कोरोना काल में मजदूरों की मदद का श्रेय भी सरकार क्‍या दान के पैसे से ही ले रही थी। 1.25 करोड़ रुपये पंचकूला स्थित नेशनल आयूष मिशन को इम्‍यूनिटी बूस्‍टर और दवाओं के लिए दिए गए हैं। 6.53 करोड़ डिस्‍ट्रेस राशन के लिए कन्‍फेड को दिए गए हैं। डॉक्‍टर और पैरामेडिकल स्‍टॉफ की रहने जैसी सुविधाओं के लिए भी 20.17 करोड़ का भुगतान पर्यटन निगम को राहत कोष से किया गया है। लिक्विड मेडिकल ऑक्‍सीजन और कुछ दूसरी मदों में 5.50 करोड़ खर्च किए गए हैं। 5.50 करोड़ रुपये क्रॉयोजनिक टैंकर आदि के लिए ट्रांसपोर्ट कमिश्‍नर को दिए गए हैं। गरीबी रेखा से नीचे आने वाले 79 लाभार्थियों को अनुदान के तौर पर 1.58 करोड़ दिए गए हैं।

प्राइवेट अस्‍पतालों में इलाज कराने वाले बीपीएल परिवारों के 2001 दावों का निपटान करते हुए 1.05 करोड़ का भुगतान किया गया है। कोरोना की तबाही गुजर जाने के बाद बड़े जोर-शोर से शुरू किए 500 बेड के अस्‍थाई अस्‍पताल के लिए पानीपत के डीसी को भी 0.24 करोड़ रुपये राहत कोष से दिए गए हैं। होम आईसोलेशन में इलाज कराने वाले कोरोना मरीजों को 5000 प्रति व्‍यक्ति के हिसाब 3.47 करोड़ रुपये दिए गए हैं। हिसार के डीसी को भी 500 बेड के अस्‍थाई अस्‍पताल के लिए 0.50 करोड़ का भुगतान किया गया है। रेलवे को 0.16 करोड़ का एक और भुगतान दिखाया गया है। इसी तरह डॉक्‍टर और पैरामेडिकल स्‍टॉफ को रहने की सुविधा देने के लिए हरियाणा पर्यटन निगम को 5.98 करोड़ का एक और पेमेंट दिखाया गया है। यहां भी फिर सवाल है कि एक सरकार के ही निकाय के दरवाजे भयावह त्रासदी के वक्‍त भी फ्रंट लाइन वर्कर के ठहरने के लिए क्‍या नहीं खोले जा सकते थे। इसके लिए भी दान के पैसों का इस्‍तेमाल किया गया। एक ऐसे मुश्किल वक्‍त में जब गुरुद्वारे तक लोगों की मदद के लिए पूरी तरह खोल दिए गए थे तो क्‍या सरकार यह काम नहीं कर सकती थी।


कोविड ड्यूटी में अस्‍पतालों में देखभाल करने वालों के ठहरने पर भी फरीदाबाद डीसी को 0.38 करोड़ का पेमेंट किया गया है। बेरी, हांसी, अंबाला, रोहतक और हिसार के सफाई कर्मचारियों को मदद के तौर पर 0.60 करोड़ दिए गए हैं। राहत कोष के पैसों के कई अतार्किक इस्‍तेमाल के बावजूद सवाल इस पर भी हैं कि इतनी मौतों और बर्बादी के बाद भी कोरोना रिलीफ फंड के करीब 176 करोड़ का सरकार अभी तक प्रयोग ही नहीं कर पाई। इनेलो के अभय चौटाला के सवाल के जवाब में हरियाणा कोरोना राहत कोष का यह ब्‍यौरा खुद मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल ने विधानसभा में सदन के पटल पर रखा है। लेकिन इस ब्‍यौरे से इतर सरकार की नीयत वहां भी बेनकाब हो गई जब कोविड-19 महामारी के दौरान पिछले दो वर्षों में राज्‍य के अधिवक्‍ताओं, चार्टर्ड अकाउंटेंट व नक्‍शानवीसों को किसी तरह की मदद देने का सवाल भाजपा के ही अंबाला शहर से विधायक असीम गोयल ने सरकार से पूछा। खुद मुख्‍यमंत्री ने लिखित में इसका जवाब देते हुए कहा है कि पिछले दो वर्षों में किसी भी तरह की वित्‍तीय सहायता उपरोक्‍त वर्गों को नहीं प्रदान की गई है। हरियाणा कोरोना रिलीफ फंड बनाने का मकसद कोरोना त्रासदी में लोगों की बेहतर मदद कर पाना था। यही वजह थी कि खुद मुश्किल में फंसे दर्जा चार कर्मचारियों से लेकर ग्रामीण इलाके से भी लोगों ने पाई-पाई जोड़ कर राहत कोष में योगदान दिया था। कुछ कर्मचारी तो ऐसे भी थे, जिन्‍होंने अपने घर में बिना बताए ही पूरा वेतन दान कर दिया था। लेकिन कोरोना रिलीफ फंड के इस्‍तेमाल की हकीकत तो कम से कम सरकार की नेकनीयति की पूरी तरह तस्‍दीक नहीं करती।

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Published: 13 Apr 2022, 6:01 PM