गोवंश और मंदिर पर्यटन ही है उत्तर प्रदेश के 'सनातन बजट' का सार
जब दक्षिण भारत की गैर-बीजेपी सरकारें करों के असमान वितरण को लेकर परेशानी व्यक्त कर रही हैं, बीजेपी महाकुंभ में अवसर तलाश रही है।

नरेंद्र मोदी के अर्थशास्त्र ने एक और चमत्कार किया है- इसने सालाना बजट को धार्मिक दस्तावेज में बदल दिया है, जिसमें सबसे ज्यादा जिक्र मंदिर पर्यटन और हिन्दू मंदिरों का होता है। जिस समय दक्षिण भारत की गैर-बीजेपी सरकारें करों के असमान वितरण को लेकर परेशानी व्यक्त कर रही हैं, बीजेपी महाकुंभ में अपने लिए अवसर तलाश रही है। जिस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाकुंभ के लिए प्रदेश के खजाने से 7,500 करोड़ रुपये खर्च करके तीन लाख रुपये का करोबार हासिल करने का दावा कर रहे थे, ऐसे में भला उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना कहां पीछे रहने वाले थे।
20 फरवरी को जब प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विधानसभा में सालाना बजट पेश किया, तो उनके भाषण का पहला भाग पूरी तरह महाकुंभ को समर्पित था। कथित तौर पर 144 साल बाद आने वाले इस अवसर के पूरे महत्व को उन्होंने अपने बजट भाषण की शुरुआत में बता दिया। यही वह दावा था जिसने जिसने बड़ी संख्या में लोगों को प्रयागराज पहुंचा दिया।
प्रसंगवश यहां राजस्थान के 2025-26 के बजट का जिक्र भी जरूरी है। ठीक एक दिन पहले 19 फरवरी को राजस्थान विधानसभा में बजट पेश करते हुए उप-मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने बताया कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रयागराज में पवित्र स्नान के बाद महाकुंभ में जो घोषणाएं की थीं, उन्हें इसमें पूरा किया जा रहा है। इन घोषणाओं में मंदिरों के लिए विशेष प्रावधान करना और पुजारियों को दिए जाने वाले मानदेय को बढ़ाना भी शामिल है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री ने ठीक एक महीने पहले 19 जनवरी को अपनी पूरी कैबिनेट के साथ प्रयागराज के लिए उड़ान भरी थी। बजट की तैयारियों के लिए इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था। वहीं पर संगम स्नान के बाद राजस्थान मंडपम में उन्होंने कैबिनेट की बैठक भी की थी। शायद वहीं पर ये फैसले भी हुए।
उत्तर प्रदेश के वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में दो मुख्य थीम दिखाई देती हैं- गोवंश और मंदिर पर्यटन।
बजट में छुट्टा गोवंश के रख-रखाव के लिए 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस राशि के महत्व को इस बात से समझ सकते हैं कि इसी बजट में पूरे प्रदेश में खेलों के विकास के लिए सिर्फ 400 करोड़ रुपये की धनराशि का प्रावधान है। यानी खेलों के मुकाबले छुट्टा गोवंश को पांच गुना धनरशि मिली है। गो-सरंक्षण केन्द्रों के लिए 140 करोड़ रुपये रखे गए हैं जबकि पशु चिकित्सालयों के लिए 123 करोड़ रुपये का अलग से प्रावधान किया गया है।
एक और ध्यान देने वाली बात यह है कि बजट में गोवंश शब्द का इस्तेमाल किया गया है, मवेशी या पशुधन शब्द का नहीं। पूरे बजट से यह नहीं पता चलता कि अन्य उपयोगी और कारोबार और कृषि में इस्तेमाल होने वाले मवेशियों जैसे बकरी, घोड़ा, खच्चर वगैरह के बारे में सरकार की सोच क्या है?
प्रदेश में इस समय छुट्टा गोवंश की संख्या क्या है, इसके भरोसेमंद आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हमारे पास सिर्फ 2019 की पशु जनगणना के आंकड़े हैं जिसके हिसाब से प्रदेश में छुट्टा पशुओं की कुल संख्या 12 लाख के आस-पास है। मान लें कि इसमें से छुट्टा गोवंश 10 लाख हैं, तो इसका अर्थ हुआ कि प्रदेश सरकार ने हर छुट्टा घूमने वाली गाय, भैंस या बैल के लिए 20 हजार रुपये सालाना का इंतजाम कर दिया है। वह भी तब जब देश की सरकार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तौर पर छह हजार रुपये सालाना की धनराशि ही दे रही है।
प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि वह छुट्टा गोवंश की वजह से लोगों को हो रही समस्या का ऐसा समाधान निकालेंगे कि यही किसानों के लिए फायदे का सौदा बन जाएगा। यह समाधान क्या था, कोई नहीं जानता। बजट में भी इसका जिक्र नहीं है।
गोवंश के बाद उत्तर प्रदेश के बजट में जिस चीज पर जोर दिया गया, वह है धार्मिक पर्यटन। दिलचस्प है कि तीर्थयात्रा नहीं, धार्मिक पर्यटन शब्द का इस्तेमाल किया गया है। दूसरे शब्दों में कहीं तो धर्मस्थलों के आस-पास सरकार जो पैसा खर्च कर रही है, उसे मुख्य रूप से पर्यटन विभाग के खाते में चढ़ा दिया गया है। इस मद में 900 करोड़ रुपये से ज्यादा का प्रावधान किया गया है।
इनमें से 200 करोड़ रुपये वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर का कॉरिडोर बनाने में खर्च होंगे। इतना ही खर्च मिर्जापुर में विंध्यवासिनी मंदिर का परिक्रमा पथ तैयार करने में होगा। अयोध्या को विकसित करने के लिए 150 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। मथुरा के लिए 125 करोड़ रुपये की का प्रावधान है, तो चित्रकूट के लिए 50 करोड़ रुपये का। सीतापुर के नैमिषारण्य तीर्थ को विकसित करने के लिए 100 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। नैमिषारण्य में ही 100 करोड़ रुपये की लागत से वेद विज्ञान केन्द्र की स्थापना की जाएगी। सरकार की एक मुख्यमंत्री पर्यटन विकास योजना भी है, इसके लिए 400 करोड़ रुपये का प्रावधान अलग से है।
इन सनातन धर्मस्थलों के विकास के साथ ही प्रदेश सरकार बौद्ध सर्किट के विकास पर भी 60 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। पिछले साल इस सर्किट के विकास के लिए इतना ही प्रावधान किया गया था लेकिन रिवाईज्ड एस्टीमेट है 92.66 करोड़ रुपये। यानी एक तरह से बौद्ध सर्किट के विकास पर खर्च घटा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश के इस सालना बजट में एक और योजना पर काफी जोर दिया गया है। यह योजना है आर्टीफीशियल इंटैलीजेंस सिटी बनाने की। इसके लिए राजधानी लखनऊ को चुना गया है। राजधानी को एआई सिटी बनाने के लिए सरकार खर्च करेगी सिर्फ पांच करोड़ रुपये।
राजस्थान के बजट को देखें, तो वहां विभिन्न मंदिरों के विकास पर 541 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा तो बजट भाषण में ही है। विस्तार में जाएं, तो यह और ज्यादा भी हो सकता है।
गोवंश के कल्याण और मंदिर पर्यटन के अलावा ‘सनातन बजटिंग‘ की एक और विशेषता यह है कि इसमें अल्पसंख्यकों को लेकर चुप्पी साध ली जाती है। बजट भाषण में उनका जिक्र भी नहीं होता। यही उत्तर प्रदेश के बजट में भी देखा जा सकता है। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। उसमें कटौती भी कर दी जाती है। उत्तर प्रदेश के 2024-25 के बजट में अल्पसंख्यकों के लिए 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान था। इस बार उसे घटाकर 1,998 करोड़ रुपये कर दिया गया। प्रदेश की 20 प्रतिशत आबादी के लिए छुट्टा गोवंश के मुकाबले भी कम प्रावधान करने की जरूरत समझी गई।
2016-17 में प्रदेश के बजट में अल्पसंख्यकों के लिए 3,055 करोड़ रुपये का प्रावधान था जो धीरे-धीरे कम किया जा रहा है। बजट में मदरसों का कोई जिक्र भी नहीं है जो अभी भी प्रदेश के गरीब मुसलमानों की तालीम का एकमात्र जरिया हैं। अल्संख्यक छात्रों के लिए वजीफे में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है जबकि मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान की जरूरत थी। पिछली जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 50 प्रतिशत मुस्लिम लड़कियां ही स्कूलों में पहु्चं पाती हैं। उनमें भी ड्राॅपआउट रेट 80 प्रतिशत तक है। लेकिन ये सारी चिंताएं बजट में कहीं नहीं दिखतीं।
बजट पेश होने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह सनातन को समर्पित है। अगर सनातन को समर्पित बजट का यही अर्थ होता है कि खेलों के विकास या अल्पसंख्यकों के पिछड़ेपन को दूर करने से ज्यादा महत्व गोवंश और मंदिर पर्यटन को दिया जाए, तो निसंदेह यह बजट अपने लक्ष्य पाने में कामयाब रहा। यह सवाल जरूर बचा रहा जाएगा कि यह सब किस कीमत पर हुआ।
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