करोड़ों के खर्च से चलने वाली यूपी की गौशालाओं में तड़प-तड़प कर मर रही हैं गायें, आखिर क्यों चुप है योगी सरकार !

चुनावों का शोर खत्म होने के साथ ही गोरक्षा का शोर भी थम गया है। पर दुखद कि गायों को बचाने की बात कोई नहीं कर रहा। आवारा पशुओं से निबटने के नाम पर यूपी में जगह-जगह गोशालाएं और गोसदन तो खोल दिए गए लेकिन बदइंतजामी का आलम है कि गायें यहां भी मर रही हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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गोरक्षा के लिए शराब से लेकर मंडी समिति तक पर सेस के पैसे इकट्ठा करते दो साल हो गए और इस दौरान बजट में गोरक्षा के लिए चार गुना बढ़ोत्तरी कर दी गई, लेकिन प्रदेश भर में स्थायी-अस्थायी गो-सदनों में गाय तड़प-तड़प कर मर रही हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ महराजगंज में पूर्वी यूपी के सबसे बड़े मधवलिया गो सदन में जून के पहले सप्ताह में 57 से अधिक गायों की मौत हो गई। गो सदन में 1 जून को 6, 2 को 17, 3 को 15, 5 जून को 14 और 6 जून को पांच गायों की मौत हो चुकी है। यहां कई गायों की हड्डी-हड्डी दिख रही है। गो सदन की खाली जमीन पर भले ही वन विभाग के पौधरोपण का लक्ष्य पूरा होता हो, पेड़ की छांव नहीं दिखती। परिसर का एक तालाब सूख चुका है, दूसरे की तलहटी में ही पानी बचा है। गो सदन का निरीक्षण करने पहुंचे सीडीओ पवन अग्रवाल ने उस रजिस्टर को ही हटवा दिया जिसमें मौतों का आकड़ा दर्ज होता था। अब यह रजिस्टर एसडीएम निचलौल के कब्जे में हैं।


करीब 500 एकड़ में फैले पूर्वांचल के सबसे बड़े मधवलिया गो-सदन में गोरखपुर समेत आसमाजवादी पार्टीस के जिलों से करीब 4 हजार गो-वंश को ठूस तो दिया गया लेकिन मुक्कमल व्यवस्था नहीं की गई। अधिकारी भी मानते हैं कि गोसदन में नए शेड बनने के बाद बमुश्किल 1,000 गायों की देखरेख हो सकती है। गो-सदन में दो सुपरवाईजर और 22 गो-सेवक की तैनाती है। इनके मानदेय पर महीने में करीब एक लाख रुपये खर्च होते हैं, हालांकि इन्हें जनवरी माह से मानदेय नहीं मिला है। डेढ़ एकड़ में बोया गया हरा चारा सिंचाई के अभाव में सूख चुका है।

पहले इसके संचालक बीजेपी नेता जितेंद्र पाल थे। विभिन्न विवादों की वजह से बीते 28 जनवरी को जिलाधिकारी ने उन्हें हटा दिया और एसडीएम के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय कमेटी को गो-सदन की जिम्मेदारी दे दी। गो-सदन प्रभारी और एसडीएम देवेंद्र कुमार का कहना है कि मरने वाली ज्यादातर गायें बूढ़ी और कमजोर थीं। जो पशु मरे हैं, उनमें से अधिकतर के पेट में पालीथिन की पुष्टि हुई है। वहीं पशुपालन विभाग में निदेशक डिजीज एण्ड कंट्रोल ड\ एस के श्रीवास्तव का कहना है कि मधवलिया में बड़ी संख्या में गो-वंश हैं। स्थानीय अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की जा रही है। कांग्रेस नेता गोपाल शाही कहते हैं कि गोसदन के नाम पर तीन पशु चिकित्सकों की तैनाती है, उन्हें पहले क्यों नहीं पता चला किगायों की पेट में प\लीथिन है।

गोरखपुर नगर निगम पिछले चार महीने से अभियान चलाकर छुट्टा गायों और सांड को पकड़ रहा है। नगर आयुक्त अंजनी कुमार सिंह के मुताबिक, 2745 गाय और सांड मधवलिया भेजे गए हैं। इनके चारे के लिए गोसदन के खाते में 66 लाख रुपये अधिक की रकम ट्रांसफर की जा चुकी है। सहायक नगर आयुक्त संजय शुक्ला का कहना है कि प्रति गाय एक दिन के चारे के लिए 30 रुपये का भुगतान हो रहा है। गोसदन से जैसे ही डिमांड आएगी, और रुपये ट्रांसफर कर दिये जाएंगे। गायों के मरने की कोई सूचना नहीं मिली है।

पूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश सिंह का कहना है कि अचानक 57 गायों के मरने की हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। मुख्यमंत्री को गो-सदन का निरीक्षण कर दोषी अफसरों को बर्खास्त करना चाहिए। गोसदन की 180 एकड़ जमीन पर खेती होती है, लेकिन इसका लाभ पशुओं को नहीं मिल रहा है।


बदइंतजामी के शिकार हैं गोसदन

प्रदेश में 516 पंजीकृत और 4,149 अस्थायी गोशाला हैं। पशुपालन विभाग के मुताबिक, 31 जनवरी, 2019 तक प्रदेश में निराश्रित पशुओं की संख्या सात लाख 33 हजार 606 थी। इनमें से 3 लाख पशुओं को इन्हीं गो-सदनों में संरक्षित किया गया है। मुश्किल यह है कि गोसदन में गाय तो रख दी गईं, लेकिन जून की गर्मी में चारे-पानी की व्यवस्था नहीं की गई। फर्रूखाबाद के कटरी धर्मपुर में बंदइतजामी से गायों की मौतों का सिलसिला बीते वर्ष नवंबर से ही जारी है। नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने बीते वर्ष दिसंबर में बरेली में कान्हा उपवन का लोकार्पण किया था। लेकिन तीन दिनों के भीतर ही तीन बछड़ों और एक सांड़ की मौत हो गई थी।

गोरखपुर के फर्टिलाइजर में नगर निगम द्वारा संचालित कांजी हाउस में भी बीते दिनों तीन गायों की मौत हो गई। तब निगम के अफसरों ने गायों के बीमार होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया था। अलीगढ़ के टप्पल गांव की गौशाला में 400 पशुओं की क्षमता है लेकिन रखे गए हैं 2,000 गो-वंश के जानवर। मेरठ की गोपाल गौशाला में भी छुट्टा पशुओं की संख्या हजार के पार है।


बजट दिया, प्रगति नहीं देखी

जनवरी में यूपी सरकार द्वारा पेश बजट में गोशालाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए 248 करोड़ आवंटित हुए थे। यह दो वर्ष पहले तक महज 60 करोड़ रुपये थे। इससे पहले योगी सरकार ने 16 नगर निगमों को 10-10 करोड़ का बजट कान्हा उपवन और चारे के लिए दिया था। पिछले साल 69 शहरी निकायों में गोशालाओं के निर्माण के लिए 10 लाख से 30 लाख रुपये की धनराशि जारी की गई थी। इनका उपयोग सिर्फ लखनऊ और बरेली में ही हो पाया। गोरखपुर में मार्च महीने में ही 8 करोड़ की लागत से कान्हा उपवन के तैयार होने का दावा था लेकिन अभी 80 फीसदी भी निर्माण नहीं हो सका है। गोरखपुर के गाजे गड़हा गांव में 5 एकड़ में गो संरक्षण केद्र और गोशाला का निर्माण अधूरा है। बस्ती में 2.5 करोड़ तो रुधौली में 2 करोड़ की लागत से निर्माणाधीन कान्हा हाउस का निर्माण अधूराहै।

शराब पर सेस से गो-रक्षा

गोरक्षा के लिए यूपी सरकार ने शराब पर सेस लगाकर 165 करोड़ रुपये वसूलने का खाका तैयार किया है। बीयर की बोतलों पर 1 से 3 रुपये तो वहीं होटल और बार में विदेशी शराब पर 10 और बीयर की बोतल पर 5 रुपये वसूले जा रहे हैं। मंडी शुल्क से होने वाली आय का दो फीसदी, प्रदेश के लाभकारी उद्यमों एवं निर्माणदायी संस्थाओं के लाभ का 0.5 प्रतिशत भी गो-संरक्षण में लगाया जा रहा है।

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Published: 14 Jun 2019, 9:45 AM