कोविड में सुपरस्प्रेडर बन सकते हैं भीड़भाड़ वाले स्थान या कार्यक्रम, BHU के अध्ययन में जताई गई चिंता

डब्लूएचओ द्वारा एक सामूहिक सभा को किसी भी ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें ऐसे लोगों की सभा शामिल है जो संक्रमण फैलाने की क्षमता रखते हैं। अतीत में यह भी देखा गया है कि सामूहिक सभाएं मानवजनित रोगों के फैलने में मदद करती हैं।

फोटोः GettyImages
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नवजीवन डेस्क

देश में एक बार फिर तेजी से बढ़ रहे कोरोना वायरस के केसों के बीच बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन से चिंताजनक बात सामने आई है। बीएचयू के मुताबिक उसके एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के समय भीड़भाड़ वाले स्थान या भीड़भाड़ वाले कार्यक्रम सुपरस्प्रेडर बन सकते हैं। विश्वविद्यालय का कहना है कि कोविड-19 ने सामाजिक मेल-मिलाप के तरीके को तो बदला ही है, साथ ही हमारे स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था के लिए भी गंभीर चुनौतियां पेश की हैं।

बीएचयू के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के प्रसार और वैश्विक आबादी पर इसके दुष्प्रभाव को रोकने के लिए कई प्रोटोकॉल जारी किए हैं, जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनना प्रमुख हैं। इसके अलावा, डब्लूएचओ ने भीड़भाड़ वाले स्थानों और कार्यक्रमों से बचने का भी सुझाव दिया है। डब्लूएचओ द्वारा एक सामूहिक सभा को किसी भी ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें ऐसे लोगों की सभा शामिल है जो संक्रमण फैलाने की क्षमता रखते हैं।

अतीत में यह भी देखा गया है कि सामूहिक सभाएं मानवजनित रोगों के फैलने में मदद करती हैं। उदाहरण स्वरूप 2009 की महामारी इन्फ्लूएंजा या मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम से संबंधित कोरोना वायरस और 2013 मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम का प्रकोप। हालांकि, बीमारी के संचरण और प्रसार में इस तरह की सामूहिक सभाओं की सटीक भूमिका का पूरी तरह से आकलन वैज्ञानिक रूप से नहीं हो पाया था।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मुताबिक भारत में अल्फा वेरिएंट (बी 1 1 7) के भौगोलिक और सामयिक विस्तार का अध्ययन करते हुए दुनिया भर के सात संस्थानों के पंद्रह वैज्ञानिकों की एक टीम ने पंजाब में अल्फा वैरिएंट जनित कोविड-19 मामलों की असामान्य वृद्धि पाई, जो भारत के अन्य राज्यों में अल्फा वैरिएंट के प्रसार से बिलकुल अलग थी।


दिसंबर 2020 में अल्फा वैरिएंट दक्षिण-पूर्वी यूनाइटेड किंगडम में सबसे पहले मिला था, जिसे डब्लूएचओ ने वैरिएंट ऑफ कंसर्न घोषित किया। यूके से निकलकर धीरे-धीरे, यह भारत के कई राज्यों में फैल गया। विशेषकर उत्तर भारत में इसके कारण काफी संख्या में कोरोना मामले सामने आए। इसको समझने के लिए, टीम ने भारत से 3085 अल्फा वैरिएंट के जीनोमिक सीक्वेंस का विश्लेषण किया।

बीएचयू ने बताया कि इस अध्ययन की पहली लेखिका जाह्न्वी पारासर ने कहा कि उत्तरी भारत में अल्फा वैरिएंट प्रमुख रूप से उपस्थित था और इस वैरिएंट की कई फाउन्डिंग शाखायें देखी गईं। भारत में अल्फा वैरिएंट का प्रसार प्रमुख रूप से दिल्ली, चंडीगढ़ और पंजाब के राज्यों में था जहां इसकी 44 जेनेटिक शाखायें मौजूद थीं। उल्लेखनीय है कि तीन शाखाओं को छोड़कर भारत में अल्फा वैरियंट की सभी 44 शाखाएं दिल्ली, पंजाब और चंडीगढ़ में मौजूद थीं।

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा पंजाब में कोरोना का अचानक आया उछाल प्राकृतिक नहीं था। तकनीकी रूप से, इसका फैलाव बहुत ही तेज था और नाम मात्र के फाउंडर्स क्लस्टर से जुड़ा था। पंजाब से प्राप्त जीनोमिक सीक्वेंस स्वतंत्र वंशावली के बजाय कुछ ही क्लस्टर्स से जुड़े थे। इस तरह के फाउंडर क्लस्टर आमतौर पर सुपर-स्प्रेडर इवेंट्स, जैसे, इनडोर मीटिंग्स या किसी बड़ी सभा के कारण देखने को मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संभवत: अधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों या कार्यक्रमों से संक्रमण सामान्य से 5-10 गुना तेजी से बढ़ा।


कलकत्ता विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. राकेश तमांग ने कहा कि इस अध्ययन में, हम इस सवाल पर प्रत्यक्ष प्रमाण प्रदान करते हैं कि बड़ी सामाजिक सभाओं ने कैसे कोविड-19 को फैलने में मदद की। अमृता विश्वविद्यापीठम केरल में एसोसिएटेड प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सुरवझाला ने कहा कि हमारे वैज्ञानिक निष्कर्ष वैरिएंट के प्रसार और बड़ी सभाओं से जुड़े लोगों को संक्रमण के अधिक जोखिम को दर्शाते हैं।

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