क्रांतिकारी गीतकार और लोकगायक 'गदर' का निधन, राहुल गांधी ने जताया दुख, विरासत को सबके लिए बताया प्रेरक

मेडक जिले के तूपरान में 1949 में एक दलित परिवार में जन्मे गदर ने 1969-70 के दशक में तेलंगाना आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और आंदोलन के समर्थन में कई गीतों को अपनी आवाज दी। वह अपने क्रांतिकारी गीतों से 'जनता के गायक' के रूप में लोकप्रिय हो गए।

क्रांतिकारी गीतकार और लोकगायक 'गदर' का निधन
क्रांतिकारी गीतकार और लोकगायक 'गदर' का निधन
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नवजीवन डेस्क

पूर्व माओवादी विचारक और क्रांतिकारी गीतकार और लोकगायक गदर का संक्षिप्त बीमारी के बाद आज हैदराबाद के एक निजी अस्पतताल में निधन हो गया, जहां उन्हें 10 दिन पहले दिल का दौरा पड़ने के बाद भर्ती कराया गया था। वह 74 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी विमला और एक बेटा और एक बेटी हैं। उनके दूसरे बेटे चंद्रुडु का 2003 में निधन हो गया था।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गदर के निधन पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने गदर के साथ अपनी एक फोटो शेयर करते हुए ट्वीट किया, "तेलंगाना के प्रतिष्ठित कवि, गीतकार और क्रांतिकारी कार्यकर्ता श्री गुम्मडी विट्ठल राव के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। तेलंगाना के लोगों के प्रति उनके प्यार ने उन्हें हाशिए पर मौजूद लोगों के लिए अथक संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उनकी विरासत हम सभी को प्रेरणा देती रहेगी।"

मेडक जिले के तूपरान में 1949 में एक दलित परिवार में जन्मे गदर का मूल नाम गुम्मदी विट्ठल राव था, लेकिन वह अपने मंच नाम गदर से लोकप्रिय हो गए। वह उस्मानिया यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों से ही एक क्रांतिकारी गायक और नक्सलवाद के प्रति सहानुभूति रखने वाले थे। उन्होंने 1969-70 के दशक में तेलंगाना आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और आंदोलन के समर्थन में कई गीतों को अपनी आवाज दी।

वह लोगों की समस्याओं को उजागर करने वाले अपने क्रांतिकारी गीतों से 'जनता के गायक' के रूप में लोकप्रिय हो गए। उन्होंने तेलुगु फिल्म 'मां भूमि' और 'रंगुला काला' में भी काम किया। 'मां भूमि' में उन्होंने 'बंदेंका बंदी कट्टी' गाया, जो एक लोकप्रिय गाना बन गया। वह 1980 के दशक में भूमिगत हो गए और एक यात्रा थिएटर समूह जन नाट्य मंडली की स्थापना की। सरल गीतों के साथ अपने भावपूर्ण, मधुर लोक गीतों के लिए जाने जाने वाले गदर ने लोगों, विशेषकर युवाओं को माओवादी विचारधारा की ओर आकर्षित किया। यह समूह बाद में भाकपा (माले) की सांस्कृतिक शाखा पीपुल्स वॉर बन गया, जिसका 2004 में सीपीएम बनाने के लिए माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) में विलय हो गया।


सन् 1997 में गदर की हत्या का प्रयास भी हुआ था, जब अज्ञात लोगों ने हैदराबाद के बाहरी इलाके में उनके आवास पर उन पर गोली चला दी थी। हालांकि वह हमले में बच गए, लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी में गोली फंसी रह गई जो अभी भी लगी है। उन्होंने हत्या के प्रयास के लिए पुलिस और तत्कालीन तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।

तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार और पीपुल्स वॉर के बीच 2004 में पहली सीधी बातचीत में गदर ने क्रांतिकारी लेखकों और कवियों वरवरा राव और कल्याण राव के साथ मिलकर माओवादियों के दूत के रूप में काम किया था। माओवादी पार्टी के साथ अपने कार्यकाल के दौरान, गदर ने चुनावी राजनीति के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया और चुनावों के बहिष्कार का आह्वान किया।

लेकिन 2017 में उन्होंने माओवाद छोड़ दिया और खुद को 'आंबेडकरवादी' घोषित कर दिया।गदर ने बाद में उसी वर्ष खुद को मतदाता के रूप में नामांकित किया और अपने जीवन में पहली बार उन्होंने 2018 में अपना वोट डाला। ऐसी अटकलें थीं कि वह कांग्रेस में शामिल होंगे। उनके पुत्र जी.वी. सूर्य किरण 2018 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। गदर ने भी कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के लिए प्रचार किया, लेकिन उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

पिछले साल अक्टूबर में गदर प्रचारक के.ए. पॉल की प्रजा शांति पार्टी (पीएसपी) में शामिल हो गए और मुनुगोडे विधानसभा उपचुनाव में पार्टी के लिए प्रचार करने का फैसला किया। हालांकि, इस साल जून में गदर ने घोषणा की थी कि वह गदर प्रजा पार्टी बना रहे हैं। उन्होंने पार्टी के पंजीकरण के लिए भारत निर्वाचन आयोग को एक आवेदन भी प्रस्तुत किया।


गदर ने मीडियाकर्मियों से कहा था कि यह लोगों की पार्टी होगी। उन्होंने कहा था कि चूंकि जीने का अधिकार ही खतरे में है, इसलिए हमारी पार्टी भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त इस बुनियादी अधिकार की रक्षा के लिए लड़ेगी। उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि वह चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उन्होंने कहा था कि निर्वाचन क्षेत्र का फैसला पार्टी करेगी। उन्होंने कहा, “जब मैं एक व्यक्ति के रूप में लड़ रहा था, तो मैंने कहा था कि मैं (तेलंगाना के मुख्यमंत्री) केसीआर के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा, लेकिन अब एक पार्टी है और वह निर्वाचन क्षेत्र का फैसला करेगी।”

उनकी आखिरी सार्वजनिक उपस्थिति 2 जुलाई को खम्मम में थी, जब उन्होंने कांग्रेस की विशाल सार्वजनिक सभा में राहुल गांधी को गले लगाया था। मंच पर गदर की उपस्थिति आश्चर्यजनक थी। राहुल गांधी से हाथ मिलाने के बाद गदर ने उन्हें गले लगाया और दर्शकों की जोरदार तालियों के बीच कांग्रेस नेता के गालों को चूमा भी था। राहुल गांधी ने भी गदर को सम्मान देते हुए अपनी बगल की सीट पर बैठने के लिए आमंत्रित किया था।

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