‘सुप्रीम’ फैसले के खिलाफ सड़क पर व्यापारी, बोले, ग्रीन पटाखों की नहीं है जानकारी, कैसे बेचें, मौन है पुलिस

दिल्ली के पटाखा व्यापारियों ने कहा कि ग्रीन पटाखों के बारे में पुलिस से बात की गई थी। पुलिस ने कहा था कि एक दिन के अंदर वह एक सूची तैयार कर दे देगी, लेकिन जब दूसरे दिन इस बारे में पुलिस से पूछा गया तो उसने कहा कि सूची तैयार करने में 2 दिन और लगेंगे।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण अपने उच्च स्तर पर है। इस बीच दिवाली मनाई जा रही है। लेकिन इस बार शायद पटाखों की उनती गांजू सुनाई नहीं दे रही है, जिनती की अमूमन दिवाली पर सुनाई दिया करती थी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला, जिसमें कोर्ट ने प्रदूषण को देखते हुए यह साफ कर दिया था कि दिवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखे ही जलाए जा सकते हैं। लेकिन यही ग्रीन पटाखे अब दिल्ली के व्यापारियों और पुलिस के लिए अबुझ पहेली बन गए हैं।

दिल्ली के सदर बाजार में व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया। व्यापारियों ने कहा कि उन्हें खुद नहीं पता है कि आखिर ग्रीन पटाखे क्या होते हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीन पटाखे बाजार में भी उपलब्ध नहीं हैं। व्यापारियों ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हमने इस बारे में पुलिस से बात की थी। पुलिस ने कहा था कि एक दिन के अंदर वह एक सूची तैयार कर दे देगी कि किस पटाखे को बेचना है और किसे नहीं। लेकिन जब दूसरे दिन पुलिस से पूछा गया कि सूची मुहैया कराए तो पुलिस ने कहा कि सूची तैयार करने में दो दिन और लगेंगे।” व्यापारियों का कहना है कि आज दिवाली है। ऐसे अब वे क्या करें। उनका कहना है कि यह कौन बताएगा कि आखिर किन पटाखों को बेचना है और किसे नहीं।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, ग्रीन पटाखे वे हैं, जिनसे कम प्रदूषण होता है। कोर्ट ने अपने फैसले यह जिम्मेदारी भी तय की थी कि अगर किसी इलाके में नियम टूटे तो उस इलाके का एसएचओ जिम्मेदार होगा। जाहिर व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग पटखों के कारोबार से जुड़ा हुआ है। और अब वह उम्मीद भरी नजरों से पुलिस की ओर देख रहा है, लेकिन पुलिस है कि वह मौन है।

जानकारों के मुताबिक, बाजार में ज्यादातर पटाखे चाइनीज हैं। इन पटाखों से ज्यादा प्रदूषण फैलता है। लोगों का कहना है कि पहले ग्रीन पटाखों की कुछ दुकानें थीं, लेकिन वो भी इस लिए बंद हो गई क्योंकि चाइनीज पटाखों के सामने वे बाजार में टिक नहीं पाईं। जब नहीं बिकीं तो इस तरह की दुकानें बंद हो गईं।

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Published: 07 Nov 2018, 4:55 PM