फिर अधर में धारावी पुनर्विकास योजना, जगह-जगह लगे 'नो एंट्री टु अडानी' के पोस्टर

यहां के लोगों के पुनर्वास के लिए बनाई गई योजना का ठेका अडानी ग्रुप को मिला है। यह जिस किस्म से विवादों में घिर गई है, उसके बाद स्वाभाविक ही संदेह के बादल घिर आए हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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धारावी में इन दिनों जगह-जगह पोस्टर लगे हैंः 'नो एंट्री टु अडानी'। एशिया की इस सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती के पुनर्विकास का ठेका नवंबर में अडानी ग्रुुप को दिया गया है लेकिन यहां के निवासी इसका विरोध कर रहे हैं। स्टॉक बाजार में इस ग्रुप ने जिस किस्म का गोता खाया है, उसने इस पुनर्विकास योजना को और भी अनिश्चित बना दिया है। इस ठेके के लिए सऊदी अरब की एक कंपनी ने सबसे ऊंची बोली लगाई थी लेकिन उसे यह ठेका नहीं मिला। इसके बाद उसने इस विवादास्पद ठेके को कोर्ट में चुनौती दी है।

यहां के लोग इस कारण भी विरोध कर रहे क्योंकि अडानी ग्रुप ने प्रभावित होने वाले लोगों से कोई बात नहीं की। इनलोगों की चिंता कई किस्म की है। यह बस्ती 600 एकड़ में फैली हुई है। लोगों की शिकायत है कि उनके पुनर्वास के लिए सिर्फ 100 एकड़ की जगह रखी गई है। उन्हें आशंका है कि शेष जमीन रीयल इस्टेट के लिए उपयोग की जाएगी जो डेवलपर के लिए भारी लाभ सुनिश्चित करेगी और लोगों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

उनकी अन्य शिकायत है कि पुनर्वास योजना किसी नए और विश्वसनीय सर्वे के बिना ही तैयार की गई है। उनका आरोप है कि अभी के जो आंकड़े तैयार किए गए हैं, वे 2011 की योजना पर हैं जबकि सर्वेक्षण ने हजारों योग्य लोगों को छोड़ दिया है। धारावी पुनर्विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र कोर्डे दावा करते हैं कि धारावी के आधे विधिसम्मत लोगों को छोड़ दिया गया है। कोर्डे का कहना है कि काफी सारे लोग ऐसे हैं जो 1985 से यहां रह रहे हैं लेकिन सर्वेक्षणों में उन्हें जगह नहीं मिली है। वह कहते हैं कि अडानी ग्रुप और राज्य सरकार को पहले नई जगह पर बसाने और पुनर्वास के लिए योग्यता को लेकर संदेहों को दूर करने की जरूरत है। धारावी बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष बाबूराव माने कहते हैं कि 'हमें बताया गया है कि धारावी पुनर्विकास के हिस्से के तौर पर 54,000 वैध और अधिकृत संरचनाएं होंगी। शेष लोग बेघरबार हो जाएंगे।'


अनिल कासरे कहते हैं कि 'धारावी में लगभग 4,000 इडली विक्रेता और इस महानगर में साइकिलों पर चाय बेचने वाले 5-6 हजार लोग रहते हैं। ऐसी महिलाएं भी यहां हैं जो जटिल कढ़ाई करती हैं और नकली जेवर तैयार करती हैं। उन्हें आशंका है कि पुनर्विकास योजना उन्हें इन कारोबार से बाहर कर देगी या उनके कामकाज को और महंगा कर देगी।' वह कहते हैं कि धारावी कम लागत वाली वस्तुओं के उत्पादन के लिए जानी जाती है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां उच्च स्तर की कुशलता और कम उत्पादन लागत की वजह से धारावी से तैयार या आधा तैयार उत्पाद लेती हैं। वह कहते हैं कि अगर इस अनौपचारिक और असंगठित सेक्टर को अस्थिर किया जाता है, तो ग्लोबल टेंडर वियतनाम या बांग्लादेश की तरफ खिसक जाएगा और धारावी के छोटे उद्यमी घाटे में रहेंगे और ज्यादा ही गरीब हो जाएंगे।

वह कहते हैं कि 'धारावी अपने आप में शहर है और इसके मुद्दे जटिल हैं। लेकिन ठेका हासिल करने के बाद भी अडानी ग्रुप ने हमलोगों से बात करने की जरूरत नहीं समझी। अब हम भी उनके साथ बात करना नहीं चाहते।' यहां के लोग देर शाम में धारावी की गलियों और सेक्टरों में प्रदर्शन-बैठकें कर रहे हैं। वे अडानी को आवंटित ठेके पर पुनर्विचार की सरकार से मांग कर रहे हैं।

मोटा-मोटी आकलन है कि धारावी की व्यावसायिक इकाइयों का वार्षिक टर्नओवर लगभग एक बिलियन अमेरिकी डॉलर है। असंगठित सेक्टर की इकाइयां सूटकेस से लेकर चमड़े के सामानों, लाइटवेट चमड़े के जैकेट से लेकर जूते तक का उत्पादन करती हैं। यहां बटन, शर्ट कॉलर से लेकर चमकीले फैब्रिक, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग इकाइयों से लेकर मिठाइयों, नमकीन और दवाओं तक की इकाइयां हैं। वस्तुतः धारावी इस महानगर के खाते-पीते वर्गों को कई किस्म की सेवाएं उपलब्ध कराती है। भले ही कई इकाइयां नियमों के हिसाब से अवैध हैं लेकिन वे ग्लोबल ब्रांड के लिए चीजों के निर्माता कहे जाते हैं। धारावी में उत्पादन करने वाले लोग जिम्मी चू और लुइस फिलिप-जैसे ब्रांडों के नाम लेते हैं और गर्व से बताते हैं कि धारावी में चमड़े के कारीगर और जूते बनाने वाले दुनिया में सबसे अच्छों में गिने जाते हैं।


गैरलाइसेंसशुदा व्यवसाय द्वारा चलाई जा रही समानांतर अर्थव्यवस्था के पुनर्वास की संभावना न्यूनतम है और पुनर्विकास का सबसे अधिक विरोध उनकी ओर से ही हो रहा है। यह प्रतिरोध राजनीतिक बैठकों में अभिव्यक्त भी हो रहा है और विपक्षी पार्टियां शायद ही महत्वपूर्ण बीएमसी चुनाव से पहले इसे ठंडे बस्ते में जाने देंगी। इन चुनावों की घोषणा जल्द ही होने की उम्मीद है।

धारावी में रह रहे लोग भारत के लगभग सभी हिस्सों से आकर बसे हैं और वे कम-से-कम 18 भाषाएं बोलते हैं। यह बात शिव सेना (उद्धव) के लिए आकर्षण का विषय है क्योंकि अब यह मराठी बोलने वाले भूमि पुत्रों से इतर अपनी पहचान बनाना चाह रही है। धारावी से उठ रही मांग को स्वर देना उसके लिए अवसर की तरह है। इसका अंदाजा अडानी ग्रुप को है। संभवतः इसलिए भी ग्रुप के चेयरमैन ने उद्धव ठाकरे से जाकर मुलाकात की। चचेरे भाई एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे भी उद्धव से मिल आए हैं। लेकिन शिव सेना (उद्धव) अडानी ग्रुप को दिए गए ठेके की जांच की मांग करते हुए मुंबई को बंद करने की अपनी योजना पर काम करती दिख रही है। मुंबई कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत भी कहते हैं कि ग्रुप जिस तरह विभिन्न तरह के विवादों में घिर रहा है, इस मसले की जांच भी जरूरी है। एक अन्य प्रमुख पार्टी एनसीपी की भी इसी किस्म की राय है।

पुनर्विकास के लिए धन जुटाने की ग्रुप की क्षमता को लेकर भी मुंबई में पिछले हफ्ते काफी चर्चा रही। इस योजना के लिए 30,000 करोड़ की जरूरत है। लोग मानते हैं कि यह योजना काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण है। लेकिन एक प्रमुख बिल्डर सुनील मंत्री का मानना है कि अडानी ग्रुप की काफी पहुंच है और उसके लिए पैसे जुटाने और अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेन्ट को अपने साथ जोड़ने में कोई बड़ी समस्या नहीं होगी।

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