रोजगार के नाम पर युवाओं को बार-बार भरमाने का नतीजा है रेलवे परीक्षाओं को लेकर लगी आग

बिहार और यूपी समेत विभिन्न हिस्सों में बवाल के बाद सरकार तरह-तरह के तर्क दे रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एनटीपीसी परीक्षा और नतीजों को लेकर कोविड और परीक्षा लेने वाली एजेंसी का बहाना बना दिया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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शिशिर

रेलवे परीक्षाओं के मसले पर जो आग लगी हुई है, वह रोजगार के नाम पर केन्द्र सरकार के बार-बार भरमाने की कोशिश का नतीजा है।

निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा मार्च, 2019 में की। उससे पहले फरवरी, 2019 में पांच दिनों के अंतराल पर रेलवे ने एनटीपीसी (नॉन टेक्निकल पॉपुलर ग्रेड) के 35,281 पदों और ग्रुप-डी के 1,03,769 पदों के आवेदन के लिए विज्ञापन निकाले। यह कुल 1.39 लाख पदों के लिए दो वैकेंसी के जरिये मैट्रिक से लेकर स्नातक तक के युवाओं को साधने की कोशिश थी। लेकिन, करीब डेढ़ साल तक सरकार ने इसकी परीक्षा तक नहीं ली। कोरोना-लॉकडाउन की मार के दौरान लाखों ट्वीट्स के जरिये जब युवाओं ने परीक्षा के लिए दबाव बनाया तो सरकार ने एनटीपीसी परीक्षा कराने का फैसला किया। कितने बच्चों ने परीक्षा दी? उत्तराखंड में तब तक जितने आधार कार्ड जारी हो चुके थे, उससे भी करीब 10 लाख ज्यादा, यानी 1.25 करोड़ बच्चों ने एनटीपीसी के लिए परीक्षा दी।

सब जानते हैं कि एक तो रोजगार का दिनों दिन किस तरह अकाल होता गया है और दूसरे कि यह सरकार सरकारी नौकरियां कम से कम करती जा रही, तो एनटीपीसी परीक्षा के लिए स्नातक पास बच्चों ने भी इंटर पास वाले पद भरे और ग्रुप-डी में भी इंटर-स्नातक वालों ने। एनटीपीसी वाली परीक्षाएं दिसंबर, 2020 से अप्रैल, 2021 के बीच हुईं। याद कीजिए, यह वही समय था जब कोविड में ऑक्सीजन संकट से देश में लाखों लोग मर रहे थे। इसके बाद फिर सरकार सो गई। लेकिन युवा जग गए हों, तो किसी को सोने थोड़े न देने वाले। परिणाम के लिए करीब 70 लाख परीक्षार्थी ट्वीट-रीट्वीट करने लगे, तब जाकर अभी 14-15 जनवरी को परिणाम आए।

इसके विज्ञापन में बताया गया था कि पद की संख्या से 20 गुना को शॉर्टलिस्ट किया जाएगा। पहले यह 10 गुना के करीब होता। यह प्रीलिम्स परीक्षा थी। लेकिन सरकार ने इसकी गिनती में खेल कर दिया। पदों की संख्या के हिसाब से परिणाम 19.99 गुना तो दिया लेकिन यह संख्या परीक्षार्थियों की नहीं, रोल नंबर की थी। करीब सात लाख हेडकाउंट की जगह यह रोल नंबर काउंट था। हेडकाउंट करीब पौने चार लाख के आसपास रहा। मतलब, एक ही परीक्षार्थी ने एनटीपीसी के कई पदों पर परीक्षा पास की, तो हरेक के परिणाम में उसका रोल नंबर अलग-अलग दिखाकर कुल संख्या का गणित पूरा कर लिया गया।

प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले बिहार के अग्रणी शिक्षक भूपेश कुमार कहते हैं कि ‘जाहिर तौर पर इंटर स्तरीय परीक्षा में भी स्नातक वाले बैठें तो उनका परिणाम अच्छा हुआ। मतलब, इंटर वालों का हक स्नातक वालों ने मार लिया। एनटीपीसी परीक्षा परिणाम को लेकर हो रहे बवाल की वजह यही है। इंटर पास परीक्षार्थी भारी संख्या में बाहर हो गए हैं जिस पर वह भड़के हुए हैं।’


इंटर पास वालों के गुस्से का लोहा गरम ही था कि 24 जनवरी, 2022 को ग्रुप-डी की परीक्षा 23 फरवरी, 2022 से शुरू कराने की घोषणा हुई। वैसे, सिर्फ जानकारी के लिए कि पहले यह सितंबर-अक्तूबर, 2019 में ही होनी थी। लेकिन अब परीक्षा फरवरी में कराने के साथ परीक्षा प्रणाली में बदलाव की सुधार-अधिसूचना भी जारी कर दी गई। इसमें बताया गया कि मैट्रिक-आईटीआई वालों की ग्रुप-डी परीक्षा में अब तक सिर्फ एक कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट का प्रावधान था जिसे बदलकर एनटीपीसी या अन्य बड़ी परीक्षाओं जैसा कर दिया गया। इसमें भी सीबीटी-2, यानी मेन्स की तरह परीक्षा लेने की नई व्यवस्था बना दी गई। नियुक्ति के लिए मूल विज्ञापन जारी करते समय इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं था, तो बेरोजगार युवकों का भड़कना स्वाभाविक ही है।

वैसे, परीक्षा शुल्क के जरिये भी सरकार ने कमाई तो पहले ही कर ली है। सिर्फ एनटीपीसी परीक्षा शुल्क से हुई कमाई का गणित देखें तो एससी, एसटी, एक्स सर्विसमैन, दिव्यांग, महिलाएं, ट्रांसजेंडर और अल्पसंख्यक श्रेणी के अभ्यर्थियों को 250 रुपये और शेष श्रेणियों के लिए 500 रुपये निर्धारित शुल्क थे। सीबीटी-1 में शामिल होने पर विशेष श्रेणी वालों को 250 में बैंक शुल्क काटकर शेष राशि वापस करने का प्रावधान था जबकि 500 रुपये जमा करने वालों को सीबीटी-1 देने पर 400 रुपये में से बैंक शुल्क काटकर पैसा वापस होना था।

करीब 1.25 करोड़ परीक्षार्थियों में से 30,28,250 तो अनारक्षित श्रेणी के ही अभ्यर्थी थे। मतलब, 100 रुपये रखे गए तो 30.28 करोड़ तो अनारक्षित वालों का पैसा परीक्षा शुल्क के नाम पर पूरी तरह रख ही लिया गया। इसके अलावा, मार्च- अप्रैल 2019 से करीब साल से सवा साल तक सभी 1.25 करोड़ अभ्यर्थियों से आवेदन शुल्क के नाम पर ली गई अरबों की राशि पर ब्याज कमाया, सो अलग। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे सुमित कहते हैं कि इस तरह का गोरखधंधा इन दिनों परीक्षा लेने वाली तमाम सरकारी एजेंसियों की कमाई का जरिया है। युवा फॉर्म भरकर उम्मीद बांधे रहते हैं और सरकार उन उम्मीदों के नाम पर जमा राशि से ब्याज कमाती है।

अब क्या रास्ता?

बिहार और यूपी समेत विभिन्न हिस्सों में बवाल के बाद सरकार तरह-तरह के तर्क दे रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एनटीपीसी परीक्षा और परिणाम को लेकर कोविड और परीक्षा लेने वाली एजेंसी का बहाना बना दिया है। वह कह रहे हैं कि सवा करोड़ से ज्यादा आवेदन आए तो परीक्षा लेने के लिए एजेंसी हायर करने में समय लग गया। एजेंसी चुनी गई तो कोरोना आ गया। लेकिन 20 गुना शॉर्टलिस्टिंग को लेकर अब वह किसी नए फॉर्मूले को खोजने की बात कह रहे हैं।


रेलवे मुख्यालय ने छात्रों के गुस्से की वजह को समझने और बीच का रास्ता निकालने के लिए पांच सदस्यों वाली कमिटी गठित की है। यह कमिटी निकल चुके परिणाम को बिना प्रभावित किए हुए और ज्यादा उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने का रास्ता ढूंढ़ेगी। साथ ही ग्रुप-डी में सीबीटी-2 को लेकर अनुशंसा भी देगी। अभ्यर्थियों को 16 फरवरी तक इससे संबंधित सुझाव देने कहा गया है। 4 मार्च तक यह कमिटी अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत करेंगी। मतलब, ग्रुप-डी की 23 फरवरी से शुरू होने वाली परीक्षा अब आगे कभी होगी।

इसका सीधा-सा अर्थ है कि सरकार इसे फिर लटकाने जा रही है।

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