महाराष्ट्र-हरियाणा के नतीजों से बीजेपी के खड़े हुए कान, उत्तराखंड सीएम बदले जाने की अटकलें तेज़

उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है। प्रदेश बीजेपी के कई नेता और पार्टी के ही विधायकों सीएम की कार्यशैली और उनकी योग्यता से संतुष्ट नहीं हैं। उधर महाराष्ट्र-हरियाणा के नतीजों ने भी बीजेपी के कान खड़े कर दिए हैं। ऐसे में उनकी कुर्सी पर खतरा नजर आ रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

क्या हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में झटका मिलने के बाद बीजेपी का अगला टारगेट उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने का है ! इस सवाल पर उत्तराखंड की राजनीति में गर्माहट शुरू हो गई है। पार्टी के भीतर अब यह चर्चा गर्म हो गई है कि 19 बरस पहले यूपी से अलग करके बनाए गए इस राज्य में बीजेपी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को नहीं बदला तो अगले चुनाव तक बीजेपी की हालत हरियाणा - महाराष्ट्र से भी बदतर हो सकती है।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता जो उत्तराखंड के हालात पर करीब से नजर रखते हैं मानते हैं कि अब प्रदेश में मुख्यमंत्री बदला जाना पार्टी की मजबूरी हो गई है। कई प्रमुख लोगों जिनमें आरएसएस के भी प्रमुख लोग शामिल हैं, विगत एक साल से यह फीडबैक है कि त्रिवेंद्र सिंह के राज में ब्यूरोक्रेसी इतनी हावी कभी नहीं रही जितनी आज है। उनकी छवि मुख्यमंत्री की न होकर नौकरशाही के यस मैन की तरह बन गई है।

सीएम के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि फाईल पढ़ने की भी उनमें समझ नहीं। बीजेपी उत्तराखंड में वरिष्ठ नेता रविंद्र जुगरान उन्हें एक विजनहीन मुख्यमंत्री बताते हुए कहते हैं, "उनमें ऐसा कोई गुण या प्रतिभा नहीं, जिसके आधार पर वे इस राज्य को आगे बढ़ा सकें।" मुख्यमंत्री बदले जाने की खबरों पर वे कहते हैं, "जो नया सीएम आएगा वह ईमानदार होगा इसकी क्या गारंटी है।"

सबसे ज्यादा नाराज पार्टी के ही विधायक हैं, जो दबी जुबान से खुलकर मुख्यमंत्री के व्यवहार और कार्यशैली से नाराज हैं। उनके क्षेत्र के कई काम महीनों से मुख्यमंत्री कार्यालय में लटके पड़े हैं। लेकिन कोई काम आगे नहीं बढ़ता। हरियाणा व महाराष्ट्र की तुलना में उत्तराखंड मात्र इसलिए कुछ भिन्न है क्योंकि यहां क्षेत्रीय पार्टियों का कोई वजूद नहीं। टक्कर बीजेपी व कांग्रेस में सीधी है।

बीजेपी में तो एक वर्ग ऐसा भी है जो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से त्रिवेंद्र सिंह रावत की तुलना करने से नहीं हिचकिचाता। प्रदेश में मुख्यमंत्री विरोधी पार्टी के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "त्रिवेंद्र सिंह को पार्टी आलाकमान इसलिए ढो रहा है क्योंकि प्रचारक होने के नाते वे खट्टर की तरह पीएम मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पहले से जानते हैं।" खट्टर की तरह राज्य बीजेपी का कोई नेता उन्हें पसंद नहीं करता। लेकिन चूंकि कोई विकल्प नहीं है इसलिए हाईकमान के डर से नेता मीडिया में ऑन रिकार्ड कुछ बोलने का साहस नहीं बटोरते।


मीडिया में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने व सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग रोकने के लिए हाल में देहरादून में 50 किमी तक स्कूली बच्चों की मानव श्रृंखला बनाने को लेकर पूरे देहरादून में चक्का जाम करने के लिए मुख्यमंत्री रावत की खूब किरकिरी हुई है। रविंद्र जुगरान ने अपनी ही सरकार के इस तरह के कार्यक्रमों को ढकोसला बताते हुए कहा, "सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बावजूद अगर दूकानों में ऐसी थैलियां डंप हैं तो जिलाधिकारी का काम है कि वे छापेमारी करें और जिला खाद्य आपूर्ति विभाग को जवाबदेह बनाएं। इसकी सजा स्कूली बच्चों को कई घंटो सड़कों पर खड़ा करके क्यों दी जा रही है।"

कई गैर राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि उत्तराखंड की बुनियादी समस्याओं से मीडिया और आम लोगों का ध्यान हटाने के लिए सड़कों पर इस तरह पाखंड रचाने के लिए मुख्यमंत्री इस तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं।

तीन दशक पुराने राज्य आंदोलन व 19 बरस पूर्व प्रदेश स्थापना से लेकर अब तक राज्य के हालात व सरकारों से निराश लोग मानते हैं कि यहां सबसे ज्यादा बर्बादी हुई और समस्याओं का अंबार लगा है तो इसका मूल कारण है देहरादून में अस्थायी राजधानी बनाए रखना। 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी वाले प्रदेश को शहरीकरण के नरक में तब्दील करना। बकौल उनके बिल्डरों व प्रॉपर्टी डीलरों को लाभ पहुंचाने के लिए 18-19 बरस से इस राज्य की हर सरकार जानबूझकर ऐसी नीतियों पर चल रही है, जिससे सरकार में बैठे नेताओं, नौकरशाहों व सत्ता के दलालों को जमीन व संपत्ति इकट्ठा करने की खुली छूट मिले।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ 2009 के आसपास प्रदेश में कृषि मंत्री रहते हरी खाद का बीज यानी ढेंचा बीज घोटाले में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज त्रिपाठी ने आयोग की जांच रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई करने के बजाय अपने को खुद ही क्लिन चिट दे डाली। मामला नैनीताल हाईकोर्ट में लंबित है। रावत के अलावा उनके सबसे खास आईएएस अधिकारी ओमप्रकाश समेत कई दूसरे लोग कई करोड़ की इस सरकारी लूट में लिप्त पाए गए। इन पर कार्रवाई के बजाय राज्य सरकार की पूरी मशीनरी कोर्ट में घोटालेबाजों को बचाने में जी जान से जुटी है।


राजधानी गैरसैण का मामला सबसे ज्यादा ज्वलंत है। बीजेपी ने 2017 चुनाव में वहां स्थायी राजधानी बनाने का वायदा किया था। 1994 में मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिली। वह वायदा कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक हर पार्टी करती रही है। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार पूरी तरह चुप्पी मारकर बैठ गई है। 108 स्वास्थ्य हेल्पलाईन के सैकडों कर्मचारी वेतन व सेवा शर्तों के लिए कई माह से आंदोलनरत हैं। आयुर्वेद कॉलेज के मालिक केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, प्रदेश के मंत्री हरक सिंह रावत व बाबा रामदेव हैं। हैरत यह है सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद लाखों की फीस बढ़ा दी गई, कोई सुनवाई नहीं। करीब 500 करोड़ रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला बीजेपी के गले की फांस बना हुआ है।

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