उज्ज्वला की आंच में कहीं झुलस न जाएं चुनावी नतीजे, BJP को इस बात की है चिंता, दाम बढ़े पर सब्सिडी नहीं

पांच साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के मौके पर पीएम मोदी ने मजदूर दिवस को बलिया से उज्ज्वला योजना लॉच की थी। तब दावा था कि गरीबों को फ्री में कनेक्शन मिलेगा। देखते-देखते प्रदेश में 1,47,86,745 कनेक्शनधारक हो गए। लेकिन माह-दर-माह इसे रिफिल कराने वालों की संख्या लगातार कम हो रही है।

फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स
फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स
user

के संतोष

सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे- इस विधा में केंद्र सरकार ने जैसे महारत हासिल कर ली है। उज्जवला योजना भी इससे अछूती नहीं। कहने को गरीबों को लकड़ी पर खाना पकाने से मुक्ति दिलाने वाली अभूतपूर्व योजना। इसकी सफलता के दावे के लिए इस योजना के अतर्गत बांटे गए नए कनेक्शन की संख्या गिना देना तथ्यात्मक रूप से सही भी है और सरकार की सकारात्मक ब्रांडिंग के लिए मुफीद भी। लेकिन जरा-सी खोजबीन से झूठ की परतें उखड़ भी जाती हैं। बस, दो सवालों की रोशनी में योजना को तौलिए, सब कुछ सामने होगा। पहला, जिन्होंने उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन लिए, उनमें से कितने सिलेंडर भरवा रहे हैं। और दूसरा, सिलेंडर की कीमत तो बढ़ती गई लेकिन सब्सिडी क्यों नहीं बढ़ी।

वैसे तो उज्जवला योजना की जमीनी हकीकत के उदाहरण देश भर में हैं लेकिन हमने इसके लिए योगीराज का रुख किया। वजह भी है। पांच साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने मजदूर दिवस को बलिया से उज्ज्वला योजना लॉन्च की थी। तब दावा था कि गरीबों को फ्री में कनेक्शन मिलेगा। देखते-देखते प्रदेश में 1,47,86,745 कनेक्शन धारक हो गए। लेकिन माह-दर-माह इसे रिफिल कराने वालों की संख्या लगातार कम हो रही है। पहले फ्री के नारे के झांसे में और अब सब्सिडी की लिकेज के चलते 30 फीसदी से अधिक उपभोक्ताओं ने सिलेंडर-चूल्हे को शो-पीस में रख दिया है। हालांकि चुनावी वर्ष में बीजेपी के रणनीतिकारों को चिंता सताने लगी है कि कहीं विधानसभा 2022 के चुनावी नतीजे उज्ज्वला की आंच में झुलस न जाएं। इसीलिए कभी छोटे सिलेंडर से बड़े को एक्सचेंज करने की योजना लॉन्च हो रही है तो कभी उज्ज्वला के लाभार्थियों के खाते में नकदी भेजी जा रही है।

उज्ज्वला की आंच में कहीं झुलस न जाएं चुनावी नतीजे, BJP को इस बात की है चिंता, दाम बढ़े पर सब्सिडी नहीं

सोनभद्र जिले के राबर्ट्सगंज के तियरा ग्राम की सुखवंती चार महीने से लकड़ी के चूल्हेपर खाना पका रही हैं। सुखवंती कहती हैं, ‘जब तक चूल्हेऔर सिलेंडर की कीमत नहीं वसूल ली गई, एक रुपये भी सब्सिडी नहीं आई। अब सब्सिडी तो आ रही है लेकिन सिलेंडर भराने का पैसा बढ़ता जा रहा है। कैसे रिफिल कराएं?’ पिछले छह महीने में रसोई गैस की कीमत 225 रुपये बढ़ी है लेकिन खाते में आने वाली सब्सिडी में एक रुपये भी नहीं बढ़ा। ऐसे में गरीब सिलेंडर रिफिल कराए कैसे?’

गोरखपुर जिले के पीपीगंज कस्बे की नगीना देवी ने 9 अगस्त, 2019 को उज्ज्वला का कनेक्शन लिया था। अंतिम बार बीते वर्ष 10 सितंबर को रिफिल कराया था। नगीना देवी बताती हैं कि‘कोरोना के समय तीन सिलेंडर की कीमत खाते में आई जिससे रिफिल करा लिया। अब लकड़ी और उपले पर खाना पकाने की मजबूरी है।’ शामली जिले में उज्ज्वला के 95 हजार 737 कनेक्शन में 30 हजार से अधिक की आग बुझ चुकी है। आर्यपुरी निवासी सितारा बताती हैं कि ‘शुरू में सिलेंडर की कीमत 550 रुपये थी। लगभग 250 रुपये तक की सब्सिडी आ रही थी। सिलेंडर 300 रुपये का पड़ता था।’ कैराना गैस सर्विस के मालिक प्रेमचंद का कहना है कि ‘सब्सिडी कम होने से 30-40 प्रतिशत उपभोक्ता रिफिल नहीं करा रहे।’

घट कैसे रही सब्सिडी

पेट्रोलियम कंपनी से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि घरेलू रसोई गैस पर कितनी सब्सिडी मिलेगी, यह सरकार तय करती है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में घरेलू रसोई पर महज 64 रुपये सब्सिडी मिल रही है जबकि कीमत 881 रुपये पहुंच गई है। पिछले छह महीने में रसोई गैस की कीमतों में 225 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन सब्सिडी में एक रुपये की भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

हमारे आसपास ऐसे तमाम वाकये हैं कि लोगों ने उज्जवला योजना के तहत मिले सिलेंडर को रिफिल कराना छोड़ दिया है। लेकिन इसे जुड़ा कोई आंकड़ा किसी के पास नहीं। यूपी के किसी जिले के जिला आपूर्ति अधिकारी या फिर पेट्रोलियम कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी को यह नहीं पता कि उज्ज्वला के कितने सिलेंडर रिफिल हो रहे हैं। शामली के जिला पूर्ति अधिकारी ओम हरि उपाध्याय बताते हैं कि ‘गैस कनेक्शनों की संख्या की तो जानकारी है लेकिन उनमें से कितने रिफिल नहीं करा रहे, इसका पता नहीं है।’


3 साल में 300 रुपये बढ़ गए रसोई गैस के दाम

दिसंबर 2018 में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 906 रुपये थी। तब ग्राहकों के खाते में 396.22 रुपये बतौर सब्सिडी मिलती थी। इस प्रकार ग्राहकों को 510 रुपये देना पड़ा था। मार्च, 2019 में सिलेंडर की कीमत 794.50 रुपये थी। तब ग्राहकों के खाते में 290.18 रुपये सब्सिडी आ रहा था। तब ग्राहकों को गैस सिलेंडर के लिए 504 रुपये देना पड़ा था। वर्ष 2020 के जनवरी माह में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 816 रुपये थी। ग्राहकों के खाते में 243.57 रुपये सब्सिडी मिली। तब ग्राहकों गैस सिलेंडर के लिए 573 रुपये देने पड़े। वर्तमान में रसोई गैस की कीमत 881 रुपये पहुंच गई है। ग्राहक के बैंक एकाउंट में 66 रुपये बतौर सब्सिडी पहुंच रही है, यानी ग्राहक को रसोई गैस के एवज में 815 रुपये देने पड़ रहे हैं।

रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों की बढ़ोतरी को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी लगातार आंदोलन कर रही है। गोरखपुर में पिछले दिनों पेट्रोल पंप पर लगी पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर कालिख पोतने के आरोप में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। मामले में पैरवी करने वाले उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य और कांग्रेस नेता मधुसूदन त्रिपाठी कहते हैं कि‘पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों की बढ़ोतरी के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ही जिम्मेदार हैं। ऐसे में उनके खिलाफ नारेबाजी गलत कैसे है?’

लोगों का यह गुस्सा वाजिब ही है क्योंकि आंकड़ों की बाजीगरी करके थोड़े ही समय के लिए बरगलाया जा सकता है। लोगों को हकीकत जानने के लिए आंकड़ों के झरोखे से देखने की जरूरत नहीं। उनके आसपास ऐसे तमाम वाकये बिखरे पड़े हैं जो हकीकत बता रहे हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia