सरकारी कारगुजारी से भारत के वैक्सिनेशन अभियान पर संदेह के बादल, ‘गायब’ वैक्सीन बनी अबूझ पहेली

सरकार का दावा है कि देश के सभी वयस्कों के वैक्सीनेशन का अभियान इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने मई में अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अभी की गति से, इस साल अंत तक सिर्फ 33 प्रतिशत भारतीयों को ही टीके के दोनों डोज लग पाएंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

ए जे प्रबल

बात पिछले साल अगस्त की है। भारत बायोटेक के संस्थापक और प्रबंध निदेशक डॉ. कृष्णा एल्ला की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। उन्होंने पीने के पानी की एक बोतल की ओर उंगली दिखाई और नाटकीय तरीके से कहा कि उनकी कंपनी जिस वैक्सीन को विकसित कर रही है, उसका एक डोज पानी के बोतल से भी कम कीमत वाला होगा। वस्तुतः उन्होंने कहा कि वैक्सीन की जो कीमत होगी, उससे पानी की बोतल की कीमत पांच गुना ज्यादा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो अगर पानी के एक बोतल की कीमत 100 रुपये भी मानें, तो डॉ. एल्ला वैक्सीन के एक डोज की कीमत 20 रुपये रख रहे थे।

यह मानना चाहिए कि ऐसा करते हुए उन्होंने कीमत में लाभ का कुछ प्रतिशत जोड़ ही लिया होगा। 20 रुपये की कीमत पर 10 प्रतिशत मुनाफे का हिसाब रखें और कंपनी एक माह में एक करोड़ डोज बेचे, तो उसे 2 करोड़ रुपये मिलेंगे। इस हिसाब से अगर वह 2 करोड़ डोज बेचती, तो उसे दोगुना फायदा होता। 250 रुपये प्रति डोज के हिसाब से लाभ का प्रतिशत वही रहेगा। हां, कंपनी का लाभ उसी तरह 25 करोड़ या 50 करोड़ हो जाएगा। सरकार को यह 250 रुपये प्रति डोज के हिसाब से बेचा जा रहा है, जबकि होटल और निजी अस्पताल इसके लिए 800 से 1,600 रुपये तक वसूल रहे हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अदार पूनावाला तक ने भी आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि सरकार को 250 रुपये प्रति डोज की दर से बेचने पर भी एसआईआई को मुनाफा हो रहा है। लेकिन कंपनी को राज्य सरकारों को 400 रुपये प्रति डोज और निजी अस्पतालों को 600 रुपये प्रति डोज की दर से बेचने की अनुमति दी गई है। निजी अस्पतालों को अपनी इच्छा के मुताबिक कोई भी राशि चार्ज करने की अनुमति दे दी गई है। कुछ राज्यों में अपवादों को छोड़ दें, तो भारत एकमात्र देश है जहां वैक्सीन निःशुल्क नहीं दी जा रही हैं। वस्तुतः, यह एकमात्र देश है, जहां एक ही कंपनी द्वारा निर्मित एक ही वैक्सीन कई दामों पर बेची जा रही है।

पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने मई के अंतिम सप्ताह में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और एचसीएल की अपने कर्मचारियों और उनके परिवार वालों को वैक्सीन दिलाने के निश्चय के लिए प्रशंसा की। लेकिन जब राज्य सरकारें शिकायतें कर रही हैं कि उन्हें कहीं से वैक्सीन नहीं मिल रही है, ऐसे में, चिदम्बरम ने इन कंपनियों से वैक्सीनों की सप्लाई के स्रोत की सूचना देने की मांग की। उन्होंने पूछा कि ‘तो, आखिर, ये कॉरपोरेट कहां से सप्लाई की उम्मीद कर रहे हैं? उचित तरीका तो इन दो घरेलू उत्पादकों की क्षमता, उत्पादन, डिस्पैच, सप्लाई और उपभोक्ताओं की सूची की सीएजी से पूरे ऑडिट कराना है।’


गायब वैक्सीनः ‘गायब’ वैक्सीन की पहेली एक अन्य मसला है जिसकी परतें सुलझाई जानी हैं। जब पूछा गया कि भारत के सभी वयस्कों को कब तक वैक्सीन दी जा सकेगी, तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से लेकर विदेश मंत्री तक ने उत्तर दिया है कि यह अभियान इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मई में अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अभी की गति से, इस साल के अंत तक सिर्फ 33 प्रतिशत भारतीयों को वैक्सीन के दोनों डोज लग पाएंगे।

अभी सप्लाई और उत्पादन की बाधाएं तो हैं ही, अगर विकसित देशों ने अपने नागरिकों के लिए तीसरे डोज का भी फैसला लिया, तो भारत में यह प्रतिशत और कम ही रहेगा। वैसे, नीति आयोग के सदस्य ने दावा किया है कि इस साल के अंत तक भारत के पास वैक्सीन के 216 करोड़ डोज होंगे और 90 करोड़ वयस्कों को पूरी तरह वैक्सिनेट करने के लिए ये पर्याप्त हैं। लेकिन उनके आंकड़े में 8 वैक्सीन शामिल हैं जिनमें से 5 को मई के अंत तक भारत में या अन्य कहीं भी अधिकृत नहीं किया गया था।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1 जून को जो आंकड़े छापे हैं, वह बताते हैं कि भारत की तुलना में 81 देशों ने अपने नागरिकों के अधिक प्रतिशत को वैक्सीन दे दिए हैं। इससे पहले के हफ्ते में यह संख्या 75 थी। भारत में यह संख्या कम क्यों होती जा रही है? सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 जून तक चार फीसदी भारतीयों, मतलब 4.5 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज दिए जा चुके हैं। जुलाई तक सरकार ने 25 करोड़ लोगों को वैक्सीन दे देने का लक्ष्य रखा है।

कोवैक्सीन के डोजः सुप्रीम कोर्ट और केरल हाईकोर्ट को दिए दो शपथ पत्रों में केंद्र सरकार ने दावा किया कि हैदराबाद के भारत बायोटेक के पास हर माह कोवैक्सीन के 2 करोड़ डोज निर्माण की क्षमता है। आश्चर्यजनक तौर पर, सरकारी आंकड़ों ने बताया कि 27 मई तक भारतीयों को कोवैक्सीन के 2.1 करोड़ डोज दिए गए। अगर भारत बायोटेक का स्पष्टीकरण भी मानें, तो उत्पादन की ‘क्षमता’ वास्तविक उत्पादन के बराबर नहीं होती है। अगर यह आधी हो, तब भी जनवरी और मई के बीच भारत बायोटेक को लगभग 5 करोड़ डोज बना लेने चाहिए थे।


ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि वैक्सीन के शेष डोज कहां गए? सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रश्नों के साथ ही कई अन्य सवालों के जवाब सरकार से मांगे हैं। इसकी सुनवाई अब 30 जून को होने की संभावना है। उम्मीद है, सरकार उस समय तक उचित जवाब दे देगी। तब तक, लगता है, भारत के वैक्सिनेशन अभियान पर संदेह के बादल छाए ही रहेंगे।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 04 Jun 2021, 6:02 PM