वन नेशन-वन इलेक्शन: चुनाव आयोग को चाहिए 6 महीने से एक साल तक का वक्त, कोविंद कमेटी की बैठक बुधवार को

एक देश-एक चुनाव के मुद्दे पर बनी कोविंद कमेटी की बैठक बुधवार को होने वाली है। ऐसे में द इंडियन एक्सप्रेस की वह रिपोर्ट महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग को एक साथ चुनाव कराने के लिए 6 महीने से एक साल तक का वक्त चाहिए।

कोविंद कमेटी की पहली बैठक 23 सितंबर को दिल्ली में हुई थी (फोटो - ऑल इंडिया रेडियो न्यूज़)
कोविंद कमेटी की पहली बैठक 23 सितंबर को दिल्ली में हुई थी (फोटो - ऑल इंडिया रेडियो न्यूज़)
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शालिनी सहाय

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने सोमवार (23 अक्टूबर, 2023) को एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया कि चुनाव आयोग ने वन नेशन, वन इलेक्शन पर बनी कोविंद कमेटी, विधि आयोग और केंद्र सरकार को स्पष्ट तौर पर बता दिय है कि उसे पूरे देश में सारे चुनाव एक साथ कराने के इंतजामों के लिए कम से कम 6 माह से एक साल तक का वक्त लग सकता है।

इस बाबत पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने सितंबर में कहा था कि वन नेशन-वन इलेक्शन का प्रस्ताव पिछले 8 साल से सामने है। उन्होंने कहा था कि विधि आयोग, नीति आयोग, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग इस मुद्दे पर एक तरह से सहमत हैं। ऐसे में विधि आयोग के पास इस बारे में सिफारिश करने में देरी करने का कोई औचित्य नहीं है।

हालांकि वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे पर काफी गहरे मतभेद भी सामने आए हैं, रावत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में दो बिंदु उठाए थे। एक बिंदु था कि 1952 से 1967 के बीच देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए विधान सभा चुनावों की मिसाल भी दी थी और कहा था कि दोनों के नतीजे अलग रहे थे। इससे साबित होता है कि भारतीय मतदाता इस मामले में काफी परिपक्व है, और यह आशंका कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे, गलत है।

रावत ने यह भी कहा था कि चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव के साथ कराने के दो उपायों का सुझाव दिया था। ऐसी विधानसभाएं जो हाल ही में चुनी गई हों और उनका अधिकांश कार्यकाल बाकी हो, उनमें चुनाव नहीं कराए जाएं, जबकि ऐसी विधानसभाएं जिनका कार्यकाल पूरा होने में कुछ ही महीने बचें हों उनके बाकी कार्यकाल के महीनों के लिए उन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।


लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग के सूत्रों का कहना है कि कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर की कमी के चलते ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) और वीवीपैट (वोटर वेरिफाइड पेपर ट्रेल) की मशीनों का उत्पादन प्रभावित हुआ है। यही कारण है कि नई ईवीएम और वीवीपैट खरीदने के लिए दिया गए बजट का 80 फीसदी हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ है, क्योंकि ईवीएम का उत्पादन करने व ली कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईए) नहीं बना पा रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक 2024 का ही लोकसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को अतिरिक्त 11.49 लाख कंट्रोल यूनिट, 15.9 लाख बैलट यूनिट और 12.37 लाख वीवीपैट यूनिट चाहिए होंगी, जो देश के 11.8 लाख पोलिंग स्टेशन पर लगाई जाएंगी।

बता दें कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव पर विचार के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी की एक और बैठक बुधवार (25 अक्टूबर) को होने वाली है। माना जा रहा है कि इस बैठक में कमेटी उन सिफारिशों को अंतिम रूप दे सकती है जिसमें ऐसा करने के लिए कमसे कम चार कानूनों में बदलाव के लिए संवैधानिक संशोधन करने होंगे।

लेकिन, विपक्ष का निरंतर यह मानना है कि एक साथ सारे चुनाव कराने का प्रस्ताव व्यवहारिक नहीं है और संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है। विपक्षा का तर्क है कि किसी भी कारण से अगर केंद्र की सरकार गिरती है (ऐसा पूर्व में हो चुका है), तो क्या सभी विधानसभाओं को भी भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा।

विपक्ष का कहना है कि वन नेशन-वन इलेक्शन एक जुमले के सिवा कुछ नहीं है और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का हथियार भर है। रोचक है कि विपक्ष के इन तर्कों पर न तो विधि आयोग और न ही चुनाव आयोग ने कोई जवाब दिया है।

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