इलेक्शन हाईवे: मथुरा में बीजेपी विधायक और कार्यकर्ताओं की खुली बगावत, इस बार टूट जाएगा ‘ड्रीम गर्ल’ का सपना

फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी की मथुरा सीट खतरे में है। बीजेपी विधायकों और कार्यकर्ताओं ने खुलकर बगावत का ऐलान कर दिया है हेमा मालिनी को दोबारा टिकट दिए जाने पर नाराज़गी जताई है। ऐसे में एक ही सीट से दोबारा एमपी बनने का ड्रीम गर्ल का सपना चकनाचूर होता नजर आ रहा है

फोटो : सोशल मीडिया
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धैर्य माहेश्वरी

बॉलीवुड की ड्रीम गर्ल और बीजेपी सांसद हेमा मालिनी को इस बार के चुनाव में सिर्फ मथुरा के आम लोगों बल्कि अपनी ही पारटी के एक धड़े के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। मथुरा में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नेशनल हेरल्ड को बताया कि स्थानीय नेता और कार्यकर्ता नहीं चाहते थे कि इस बार फिर से हेमा मालिनी को मथुरा से उम्मीदवार बनाया जाए। उनका कहना है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उम्मीदवार के चयन में स्थानीय कार्यकर्ताओं र मथुरा के विधायक की अनदेखी की है। इतना ही नहीं हेमा मालिनी को दोबारा मैदान में उतारे जाने से मथुरा के ग्रामीण इलाकों में भी नाराजगी है। इन इलाकों ने 2014 में बीजेपी को जबरदस्त समर्थन दिया था।

मथुरा लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 5 विधानसभा सीटों में 4 पर बीजेपी ने 2017 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। बीजेपी समर्थकों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि इस बार या तो स्थानीय विधायक और यूपी में मंत्री श्रीकांत शर्मा को टिकट मिलेगा या किसी और एमएलए को उम्मीदवार बनाया जाएगा।

दरअसल बीजेपी की मौजूदा सांसद और इस बार फिर से उम्मीदवार हेमा मालिनी के खिलाफ कार्यकर्ताओं की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। यह आम धारणा है कि वे न सिर्फ वोटर बल्कि कार्यकर्ताओं से भी नहीं मिलती हैं और उन तक पहुंचना मुश्किल होता है।

स्थानीय नेताओं का कहना है कि हेमा मालिनी जब नामांकन दाखिल करने गईं तो उनके साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नहीं थे, इसका सीधा अर्थ है कि वे भी हेमा मालिनी को यहां से उम्मीदवार के तौर पर नहीं चाहते थे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘योगी भी चाहते थे कि मथुरा से इस बार श्रीकांत शर्मा को टिकट मिले।‘

मथुरा के बाहरी इलाके में छतिकारा गांव के रहने वाले राजपूत बलवीर सिंह बताते हैं कि, “वह एक सेलेब्रिटी हैं। कई बार जब यहां के लोग और कार्यकर्ता उनसे मिलने गए तो उन्होंने कहा कि उनके पास स बदबू आती है। इस इलाके में वे मुश्किल से ही नजर आती हैं। बलवीर ने 2014 में बीजेपी को वोट दिया था। उनका कहना है कि उस बार हेमा मालिनी को नहीं बल्कि मोदी लहर को वोट दिया था।

उन्होंने बताया कि, “हमारे गांवल के बहुत से लोग बीजेपी के समर्थक रेह हैं।” बलवीर के गांव में राजपूतों और ठाकुरों की तादाद ज्यादा है। इन दोनों ही जातियों को बीजेपी का समर्थक माना जाता है। इसी वोट बैंक के आधार पर 2017 में बीजेपी यूपी की सत्ता में आई। बलवीर के मुताबिक, “हमने मोदी जी को एक मौका दे दिया क्योंकि उन्होंने बहुत सारे वादे रिए थे। यहां तक कि नोटबंदी के बाद भी हमने बीजेपी को यूपी विधानसभा चुनाव में वोट दिया। हमे लगा था कि सरकार को नोटबंदी से जो कालाधन मिला है, वह खातों में जमा होगा।” बलवीर आगे कहते हैं कि, “लेकिन, हुआ क्या। काला पैसा तो आया ही नहीं। किसानों को अभी तक खेतों के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा है। फसलों के न्यूनतम दाम भी नहीं बढ़े हैं। हर वादा एक जुमला ही साबित हुआ है।”

बलवीर बताते हैं कि बीजेपी जिस तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा चुनाव में उठा रही है उसके पीछे मंशा क्या है। वे कहते हैं कि, “इस बार हम मूर्ख नहीं बनने वाले। हम मुद्दों और जमीनी हकीकत पर वोट देंगे न कि टीवी पर आ रहे भाषणों और विज्ञापन को देखकर।”

वे बताते हैं कि इस बार के चुनाव में वे गठबंधन के उम्मीदवार आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह के साथ हैं। उन्होंने बताया कि, “वह हमारे अपने हैं। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया है। और इस बार तो जाट भी उन्हें समर्थन दे रहे हैं। पिछली बार तो जाटों ने बीजेपी को वोट दिया था।”

गौरतलब है कि मथुरा में जाटों की आबादी करीब 4.5 लाक है और वे इस सीट पर निर्णायक स्थिति में हैं। इसके अलावा करीब 3 लाख की आबादी जाटवों की है, जबकि ठाकुर करीब 2.5 लाख और करीब 2 लाख मुस्लिम हैं।

चुनाव माहौल पर टिप्पणी करते हुए चार बार के विधायक प्रदीप माथुर बताते हैं, “हेमा मालिनी को यहां हमेशा बाहरी ही समझा गया। 2014 में तो वे मोदी लहर पर सवार होकर जीत गई थीं। लेकिन इस बार कोई भी मोदी पर विश्वास नहीं कर रहा। हेमा मालिनी तो एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही हैं।” उन्होंने कहा कि, “हेमा मालिनी ने उस गांव तक के लिए कुछ नहीं किया जिसे उन्होंने गोद लिया था, जबकि उस गांव को राधा का जन्मस्थान माना जाता है।”

माथुर कहते हैं कि इस बार के चुनाव में मुसलमान और जाटव कांग्रेस उम्मीदवार महेश पाठक की तरफ जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि “बीएसपी के साथ आरएलडी का गठबंधन होने के बावजूद बीएसपी का कोर वोट बैंक जाटव आरएलडी के साथ नहीं है क्योंकि जाटों और जाटवों में परंपरागत बैर है। ऐसे में मथुरा सीट से कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं कहीं अधिक हैं।“

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